उत्तर भारत में पराली जलाने पर रोकथाम के लिए किसानों को न्यूहॉलैंड एग्रीकल्चर निःशुल्क प्रशिक्षण दे रही

-फसल अवशेष प्रबंधन की स्थायी समाधान तकनीक पेश कर जहरीला वायु प्रदूषण रोकने का लक्ष्य

पंतनगर। किसान पराली जला कर पर्यावरण प्रदूषण करने से बचें इसमें उनकी मदद के लिए न्यूहॉलैंड एग्रीकल्चर ने फसल अवशेष प्रबंधन के स्थायी समाधान के प्रशिक्षण की शुरुआत की है। न्यूहॉलैंड और किसान विकास केंद्र (केवीके) कृषि सहकारी के सहयोग से अगले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के हजारों किसानों को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाएगा। किसानों द्वारा खेतों में ही पराली जलाने से जो जहरीला प्रदूषण फैलता है उससे हर वर्ष पूरे भारत के लाखों लोगों के लिए स्वास्थ्य का संकट खड़ा हो जाता है। हालांकि सरकार ने इस पर रोक लगा रखी है पर किसान आज भी जल्द अगली फसल की बुवाई के लिए खेतों में ही पराली जलाने के पुराने ढर्रे पर काम करने को विवश हैं। इस प्रशिक्षण से किसान फसल अवशेष को खेत से बाहर निकालने के विकल्प और पराली बेच कर लाभ कमाने की जानकारी प्राप्त करेंगे।
श्री रवि सिंह, क्षेत्रीय बिक्री प्रबंधक (फसल समाधान), उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ने बताया, ‘‘मजदूरों की कमी, खेत से फसल अवशेष निकालने के बढ़ते खर्च और फसल कटनी की गैर-मशीनी पद्धति की वजह से पराली जलाने की समस्या साल-दर-साल बढ़ रही है। इस प्रशिक्षण के तहत किसानों को फसल के अगले सीजन से पहले स्थायी पराली प्रबंधन का ज्ञान, उपकरण और तकनीक प्राप्त होंगे।’’ प्रशिक्षण में न्यूहॉलैंड किसानों को स्थायी मशीनी कृषि प्रक्रियाओं और पद्धतियों का व्यावहारिक ज्ञान सुलभ कराएगी। कम्पनी के एक्सपर्ट यह दिखाएंगे कि आधुनिक खेती के उपकरणों और तकनीकियों की मदद से किसान कैसे पराली को गट्ठर बना कर लाभदायक उपयोग कर सकते हैं जैसे पशु आहार, कम्पोस्ट खाद, बायोमास एनर्जी के लिए ईंधन और पैकेजिंग मटीरियल। न्यूहॉलैंड ने हाल में ही अयोध्या, चंदौली, दादरी और पंतनगर के कृषि विकास केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों को कृषि उपकरणों की बड़ी रेंज का योगदान दिया है। न्यूहॉलैंड की यह कोशिश भी है कि किसानों का कारोबारी संबंध कागज उद्योग, गौशाला और बायोमास पावर प्लांट से बने जिससे पराली के गठ्ठरों का उद्योग और व्यवसाय जगत में उपयोग बढ़ेगा।