मासिक धर्म पर मानसिकता बदलने की जरूरतः डॉ. सुजाता संजय

पीरियड्स के बारे में जागरूकता लड़कों एवं पुरूषों मे भी जरूरी: डॉ. प्रतीक

देहरादून: डॉ. सुजाता संजय ने बताया कि पीरियड्स एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिससे एक महिला हर महीने गुजरती है। महिलाओं के लिए इसे एक बेहद जरूरी माना जाता है, हालांकि इस दौरान उन्हें कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं को साफ -सफाई का भी खास ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि साफ -सफाई की कमी की वजह से कई बार कई तरह की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस यानी वर्ल्ड मेन्सट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता है।

विश्व मासिक धर्म दिवस के अवसर पर सोसायटी फॉर हैल्थ एजुकेशन एंड वूमैन इम्पावरमेन्ट ऐवेरनेस सेवा द्वारा वेबिनार के माध्यम से बालिकाओं को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता हेतु 120 से भी अधिक छात्राओं एवं शिक्षिकाओं को जागरूक किया गया तथा 50 बालिकाओं को सेनेट्री नेपकिन वितरित किये गये। इसके साथ ही मासिक धर्म की प्रक्रिया के दौरान ध्यान रखी जाने वाली स्वच्छता एवं बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं के बारे में जागरूक किया गया।

संजय ऑर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता संजय ने बताया कि मासिक धर्म को लेकर आज भी कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई है। साथ ही इसे लेकर कई लोग आज भी रूढ़िवादी सोच का शिकार है। इसके अलावा गांव ही नहीं शहरों में भी कई महिलाएं ऐसी हैं जो पीरियड से जुड़ी जरूरी चीजों के बारे में अनजान है। ऐसे में पीरियड्स सर्वाइकल कैंसर या योनि संक्रमण जैसी गंभीर समस्याओं की वजह बनती है। ऐसे में महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता का ख्याल रखने के मकसद से हर साल मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है इस दिन का मुख्य उद्देश्य पीरियड से जुड़ी अहम जानकारी लोगों तक पहुंचाना है ताकि महिलाएं किसी भी बीमारी का शिकार होने से बचे।
यह लड़की की जिंदगी का ऐसा संक्रमण काल है कि इससे वह किशोरावस्था में प्रवेश करती है और फिर बालिग। यह सभी लड़कियों के जीवन में बदलाव का अहम वक्त होता है। ऐसे वक्त में उन्हें परिवार, सहेली, समुदाय, अध्यापक, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के उचित परामर्श, जानकारी की सख्त जरूरत होती है, ताकि वे विभिन्न भ्रंातियों के जाल में आने से बचें और मासिक धर्म के दारौन स्कूल मिस नहीं करें। भारत एक ऐसा मुल्क है, जहां किशोर लड़कियों की तादाद बहुत अधिक है।
डॉ. सुजाता संजय ने बताया कि मासिक धर्म एक प्रक्रिया है, जो महिलाओें में 20 से 30 दिन पर आती है। जो 4 से 5 दिनों तक रहता है। हर लड़कियां जब 11 से 12 साल की होती है, तो उस समय इस चक्र के शुरूआत होने का समय आता है। यही समय है जब लड़कियों को इस संबंध में उचित सलाह देकर जागरूक किया जाए। गांव -देहात में अक्सर कई कारणों से महिलाएं सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं जैसे कि पैसे की कमी जागरूकता की कमी और सैनिटरी नैपकिन की सुलभता में कमी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं माहवारी दिनों कपड़े से काम चलाती हैं जिसे स्वच्छ और सुरक्षित नहीं माना गया है। लेकिन यह चलन उनकी सेहत के लिए हानिकारक है और इस अज्ञानता से स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं और यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर प्रजनन मार्ग में संक्रमण हेपेटाइटिस बी का संक्रमण मूत्र मार्ग में संक्रमण और ऐसी अन्य अत्यंत गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। हर साल लगभग 20 मिलियन लड़कियां स्कूल की पढ़ाई छोड़ देती हैं क्योंकि स्वच्छता का कोई साधन केवल लड़कियों का शौचालय और सैनिटरी नैपकिन वहां कुछ भी नहीं मिलता है।

डॉ. सुजाता संजय ने कहा कि समाज में अंध विश्वास व्याप्त है कि मासिक आना एक अपवित्र चीज है। पर हकीकत यह है कि यह पवित्र चीज है, और हर स्त्री के जिंदगी का यह अहम हिस्सा है। महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि आधे से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है। आजकल टीवी, इंटरनेट पर आज हर तरह की सामग्री मौजूद है जिसने लोगों की सोच मासिक धर्म के बारे में बदली है लेकिन अभी भी काफी लोग इस बारे में खुलकर बातें नहीं कर रहे हैं। लोगों को समझना होगा कि मासिक धर्म कोई अपराध नहीं है बल्कि प्रकृति की ओर से दिया गया महिलाओं को एक तोहफा है।

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