-वर्तमान प्रौद्योगिकी व डिजिटल युग में मातृभाषाओंं सहित बहुभाषी शिक्षा, चुनौतियों का समाधान करने का अचूक अस्त्र,मंत्र साबित होंगे: एड किशन भावनानी
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फ़रवरी को मनाए जा रहे पर्व पर इस साल की थीम का विषय, बहुभाषी सीखने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना- चुनौतियां और अवसर, है| इस साल का विषय बहुभाषी शिक्षा को आगे बढ़ाने और सभी के लिए गुणवत्ता शिक्षण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है। वर्तमान प्रौद्योगिकी और डिजिटल युग की प्रौद्योगिकी में आज शिक्षा में कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है। यह सभी के लिए समान और समावेशी आजीवन सीखने के अवसरों को सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासों में तेजी ला सकता है।
साथियों बात अगर हम अन्तर्राष्ट्रीय मातृदिवस मनाने की करें तो, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी को आयोजित एक विश्वव्यापी वार्षिक उत्सव है । पहली बार यूनेस्को द्वारा 17 नवंबर 1999 को घोषित किया गया था, इसे औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2002 में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 56/262 को अपनाने के साथ मान्यता दी गई थी। मातृभाषा दिवस एक व्यापक पहल का हिस्सा है। 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 61/266, में अपनाई गई दुनिया के लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी भाषाओं का संरक्षण और जिसने 2008 को अंतर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष के रूप में भी स्थापित किया। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार बांग्लादेश की पहल थी। बांग्लादेश में, 21 फरवरी उस दिन की वर्षगांठ है जब बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान ) के लोगों ने बांग्ला भाषा की मान्यता के लिए लड़ाई लड़ी थी। यह भारत के पश्चिम बंगाल में भी मनाया जाता है।
साथियों बात अगर हम भारत सहित दुनिया में बोली जाने वाली भाषाओं की करें तो, दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6-7 हज़ार भाषाओं में से कम से कम 43 फ़ीसदी लुप्तप्राय हैं। केवल कुछ सौ भाषाओं को वास्तव में शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक डोमेन में जगह दी गई है, और डिजिटल दुनिया में सौ से भी कम का उपयोग किया जाता है। अकेले भारत में 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाएं, लगभग 1635 मातृभाषाएं और 234 पहचानयोग्य मातृभाषाएं हैं| अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस इस बात की याद दिलाता है कि भाषा हमें कैसे जोड़ती है, हमें सशक्त बनाती है और दूसरों को हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने में हमारी मदद करती है। इसी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हर साल भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।
साथियों बात अगर हम भारत में भाषाओं और हमारी जनसंख्यकीय तंत्र की करें तो हम भारतीय नागरिक विश्व में सबसे अधिक सौभाग्यशाली हैं, जहां मानवीय बौद्धिक क्षमता व भाषाई ज्ञान का अपार मृदुल बहुभाषी नागरिकों में अणखुट ख़जाना है। हमारी मातृभाषा ही निवेदिता हमारी शक्ति है। हर भारतीय मातृभाषा का गौरवशाली इतिहास समृद्धि व साहित्य है। भारतीय अनेकता में एकता की मिठास से वैश्विक स्तर पर भारतीय भाषा और साहित्य की प्रतिष्ठा बढ़ी है, जिसे रेखांकित करना हर भारतीय के लिए गौरव की बात है।
साथियों बात अगर हम हमारी मातृभाषा और भाषाई विविधता के ख़जाने को रेखांकित करने के महत्व की करें तो भारतीय बौद्धिक क्षमता विश्व प्रसिद्ध है और 135 करोड़ जनसंख्यकीय तंत्र में हर व्यक्ति के पास अपने ढंग की एक विशेष कला है जो उसे उनके भाषाई इतिहास साहित्य, पूर्वजों से मिली है जिसका उपयोग करने के लिए उनके पास उचित और पर्याप्त प्लेटफार्म नहीं है और अगर है भी तो सभी के लिए नहीं है कुछ ही लोगों के लिए है जिसे हमें रेखांकित कर उनके लिए अपना कौशल दिखाने विश्वविद्यालय स्तरपर ग्रामीण क्षेत्रों में भाषाई विविधता के कड़ियों को जोड़ने एक अभियान चलाना होगा और उस कौशल को बाहर निकालकर हमें तराशना होगा और आत्मनिर्भर भारत में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
साथियों बात अगर हम भाषाई विविधता को एक माला में पिरोने की करें तो इसमें राजभाषा हिंदी को एक सखी के रूप में प्रयोग करना होगा और हमारी भाषाई विविधता को हमारी शक्ति बनाना होगा। भारत खूबसूरत मानवीय बोलियों भाषाओं का एक विश्व प्रसिद्ध अभूतपूर्व संगम है। भारत 68 फ़ीसदी युवाओं वाला एक युवा देश है जहां युवाओं को अपनी मातृभाषा में बोलने पर गर्व महसूस होना चाहिए।
साथियों बात अगर हम अपनी विशाल मातृभाषाओंं और भारतीय भाषाओं के साहित्यग्रंथों की करें तो यह हमारी पहचान है। यूं तो भारत में बावीस भाषाओं को संविधान में मान्यता दी गई है परंतु पूरे भारत की बात करें तो यहां भाषाएं व उपभाषाएं हजारों की संख्या में होंगी, जिसकी रक्षा करना और विलुप्तता से बचाने की ज़वाबदारी हमारे आज के युवाओं के ऊपर है क्योंकि आज हमारे देश की 68 प्रतिशत आबादी युवा है और इस युवा भारत के युवाओं को ही हमारी संस्कृति मातृभाषाओं, भाषाओं को जीवित रखना है। इसलिए हमें अपनी मातृभाषा को महत्व देना होगा और अपने समाज, घर, क्षेत्र में अपनी मातृभाषा में बात करना होगा ताकि उसे हम विलुप्तता से बचा सके!!! आज इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ गई है, क्योंकि आज के बदलते परिवेश में हमारे देश में पाश्चात्य संस्कृति का प्रचलन कुछ तेज़ी से बढ़ रहा है। खासकर के युवाओं में इसका क्रेज अधिक महसूस किया जा रहा है जो बड़े शहरों से होकर अब हमारे छोटे शहरों गांवों में भी फैलने की संभावना बढ़ गई है। जिसका संज्ञान बुजुर्गों को लेना होगा और युवाओं को अपनी मातृभाषा में बोलने, संस्कृति, साहित्यग्रंथों, भाषाओं की तरफ ध्यान आकर्षित कराकर उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन देना होगा ताकि भारतीय धरोहर को विलुप्तता से बचाया जा सके। हमने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के माध्यम से कई बार देखा, पड़ा, वह सुना है कि हमारे माननीय उपराष्ट्रपति का संज्ञान इस भाषाई क्षेत्र की ओर बहुत अधिक है!! और हर मौके पर इस दिशा में सुझाव, मार्गदर्शन, अपील प्रोत्साहन देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते जो काबिले तारीफ है!!!
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति की दिनांक 12 दिसंबर 2021 को एक विश्वविद्यालय में स्थापना दिवस समारोह को संबोधन करने की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने इस संबंध में विश्वविद्यालयों से भारतीय भाषाओं में उन्नत अनुसंधान करने तथा भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में सुधार लाने का सुझाव लाने की अपील की, जिससे कि उनकी व्यापक पहुंच तथा शिक्षा क्षेत्र में उपयोग को सुगम बनाया जा सके। उन्होंने ने आज विभिन्न भारतीय भाषाओं में साहित्यिक ग्रंथों के अनुवादों की संख्या बढ़ाने के लिए सक्रिय तथा ठोस प्रयासों की अपील की। इस संबंध में उन्होंने क्षेत्रीय भारतीय साहित्य की समृद्ध धरोहर को लोगों की मातृभाषाओं में सुलभ कराने के लिए अनुवाद में प्रौद्योगिकीय उन्नति का लाभ उठाने का सुझाव दिया। यह देखते हुए कि भूमंडलीकरण का व्यापक प्रभाव है, उन्होंने जोर देकर कहा कि यह अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि युवा अपनी सांस्कृतिक विरासत से संपर्क बनाए रखे। पहचान बनाने तथा युवाओं में आत्मविश्वास को बढ़ावा देने में भाषा के महत्व को देखते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को अपनी मातृभाषा में बोलने में गर्व का अनुभव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 का लक्ष्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना तथा बच्चों की मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना है। उन्होंने कहा कि अनिवार्य रूप से उच्चतर शिक्षा तथा तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए भी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। अतः अगर हम उपरोक्त गुणों का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी 2022 बहुत महत्वपूर्ण है तथा मात्र भाषाएं हमारी भावनाओं को संप्रेषित करने एक दूसरे से जोड़ने सशक्त बनाने है सुनीता संवाद एकजुटता को प्रेरित करने का अचूक अस्त्र मंत्र है तथा वर्तमान प्रौद्योगिकी व डिजिटल युग में मातृभाषा सहित बहुभाषी शिक्षा चुनौतियों का समाधान करने का अचूक अस्त्र मंत्र साबित होंगे।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ, एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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