-एमडीडीए का लक्ष्य है कि यह परियोजना राज्य की सर्वश्रेष्ठ शहरी पुनर्विकास मॉडल के रूप में स्थापित हो: बंशीधर तिवारी
-परंपरा के संग आधुनिकता का संगम बनेगा आढ़त बाजार : मोहन सिंह बर्निया
देहरादून। मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) की ओर से आढ़त बाजार पुनर्विकास परियोजना के क्रियान्वयन को लेकर आज प्राधिकरण सभागार में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता सचिव मोहन सिंह बर्निया ने की, जिसमें विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया।
निर्माण की स्थिति पर विस्तृत समीक्षा
बैठक में सबसे पहले लेखपाल नजीर अहमद ने आढ़त बाजार के निर्माण कार्य की वर्तमान स्थिति से सचिव को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि प्राधिकरण स्तर पर अधिकांश कार्य पहले ही पूरे किए जा चुके हैं और शेष कार्य को निर्धारित समय-सीमा में पूरा किया जा रहा है। सचिव मोहन सिंह बर्निया ने कहा कि आढ़त बाजार पुनर्विकास परियोजना शहर के पुराने व्यापारिक ढांचे को नया जीवन देने की दिशा में एक ठोस कदम है। हमारा प्रयास है कि सभी कार्य पारदर्शिता और गुणवत्ता के साथ तय समय में पूरे हों, ताकि व्यापारियों व आमजन को शीघ्र ही इसका लाभ मिल सके।
भू-स्वामियों के आवंटन व भुगतान की प्रक्रिया शुरू होगी
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि जिन भू-स्वामियों की पत्रावलियाँ किसी न्यायिक प्रक्रिया या वाद-विवाद में लंबित नहीं हैं, और जिनका स्वामित्व विधिवत सिद्ध हो चुका है, उन्हें शीघ्र ही भू-खण्ड आवंटन एवं धनराशि वितरण की प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा।
3 नवंबर से रजिस्ट्री कार्य शुरू करने के निर्देश
सचिव मोहन सिंह बर्निया ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि 3 नवंबर 2025 से रजिस्ट्री कार्य प्रारंभ किया जाए। इसके तहत पात्र भू-स्वामियों की रजिस्ट्री समयबद्ध रूप से पूरी की जाएगी, जिससे परियोजना के अगले चरणों को गति मिल सके।
15 दिनों में स्वयं ध्वस्तीकरण का शपथ पत्र अनिवार्य
बैठक में निर्णय हुआ कि रजिस्ट्री से पूर्व प्रत्येक भू-स्वामी से एक शपथ पत्र (अफिडेविट) लिया जाएगा, जिसमें यह उल्लेख होगा कि रजिस्ट्री की तिथि से 15 दिनों के भीतर वे अपने प्रभावित निर्माणों को स्वयं ध्वस्त करेंगे।यदि निर्धारित अवधि में ऐसा नहीं किया जाता, तो एमडीडीए, पीडब्ल्यूडी और जिला प्रशासन संयुक्त रूप से ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करेंगे। इस प्रक्रिया में भू-स्वामी को किसी प्रकार की आपत्ति स्वीकार नहीं होगी।
शहरी विकास और पुनर्गठन की दिशा में कदम-मोहन सिंह बर्निया
सचिव मोहन सिंह बर्निया ने कहा कि परियोजना का उद्देश्य केवल भौतिक ढांचे का निर्माण नहीं, बल्कि पुराने व्यापारिक क्षेत्र को नई ऊर्जा और पहचान देना है। हम देहरादून के केंद्र में एक ऐसा आधुनिक बाजार विकसित कर रहे हैं जो स्थानीय पहचान को बनाए रखते हुए सुविधाजनक, स्वच्छ और सुव्यवस्थित हो। एमडीडीए के अनुसार, इस परियोजना को पारदर्शिता, जनसुविधा और समयबद्ध क्रियान्वयन की भावना से आगे बढ़ाया जा रहा है ताकि शहर का यह ऐतिहासिक क्षेत्र नई पहचान के साथ पुनर्जीवित हो सके।
उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने कही महत्वपूर्ण बात
उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने इस पहल को देहरादून के विकास का महत्वपूर्ण अध्याय बताया। उन्होंने कहा आढ़त बाजार पुनर्विकास परियोजना शहर के सौंदर्यीकरण के साथ-साथ व्यापारिक ढांचे को नई दिशा देगी। यह एमडीडीए की प्राथमिकता है कि विकास कार्यों में किसी भी नागरिक को असुविधा न हो और सभी प्रक्रियाएँ न्यायसंगत ढंग से पूरी हों। उन्होंने यह भी कहा कि प्राधिकरण का लक्ष्य है कि यह परियोजना राज्य की सर्वश्रेष्ठ शहरी पुनर्विकास मॉडल के रूप में स्थापित हो।
ये सभी अधिकारी रहे उपस्थित
बैठक में संयुक्त सचिव गौरव चटवाल, अधिशासी अभियंता सुनील कुमार, टीम-ए के सहायक अभियंता राजेन्द्र बहुगुणा, टीम-B के सहायक अभियंता निशांत कुकरेती अपनी टीम के सदस्यों के साथ उपस्थित रहे।
छठ पर्व के समापन पर स्वच्छता का महाअभियान
गंगा की गोद में गूंजा श्रमदान का बिगुल — श्रद्धा, सेवा और स्वच्छता का अद्भुत संगम
नगर निगम हरिद्वार एवं आईटीसी मिशन सुनहरा कल द्वारा दो दिवसीय व्यापक स्वच्छता अभियान का सफल संचालन
हरिद्वार। आस्था, अनुशासन और पर्यावरणीय चेतना के प्रतीक छठ महापर्व के अवसर पर हरिद्वार की पवित्र धरती पर गंगा तटों ने एक अद्भुत दृश्य देखा—जहाँ श्रद्धा की आरती के साथ सेवा और स्वच्छता का दीप भी प्रज्वलित हुआ।
नगर निगम हरिद्वार एवं आईटीसी मिशन सुनहरा कल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “बृहद स्वच्छता अभियान” ने यह सशक्त संदेश दिया कि छठ केवल सूर्योपासना का पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी, पर्यावरणीय अनुशासन और जन-भागीदारी का उत्सव भी है।
🌿 पहले दिन – गंगा तटों पर स्वच्छता का सृजन
27 अक्टूबर को हाथी पुल, सुभाष घाट एवं धनुषपुल घाट पर विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया। नगर निगम के निरीक्षक श्री सेमवाल एवं संजय शर्मा के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने श्रमदान करते हुए घाटों से लगभग 700 किलोग्राम अपशिष्ट सामग्री एकत्र कर उसका पर्यावरण-अनुकूल निस्तारण सुनिश्चित किया। घाटों पर स्थापित स्वच्छता जागरूकता कैनोपी में श्रद्धालुओं को गंगा की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें बताया गया कि “गंगा हमारी जीवनरेखा, संस्कृति की आत्मा और अस्तित्व की पहचान है। इसकी स्वच्छता और संरक्षण प्रत्येक नागरिक का पावन कर्तव्य है।”
समापन दिवस–श्रम और समर्पण का उत्कर्ष
28 अक्टूबर को छठ पर्व के समापन पर हरिद्वार के गंगा घाटों पर श्रमदान का अद्भुत उत्सव देखने को मिला। हाथी पुल एवं विष्णु घाट पर वरिष्ठ स्वच्छता इंस्पेक्टर अर्जुन एवं अशोक कुमार के मार्गदर्शन में स्वयंसेवकों ने श्रमदान करते हुए लगभग 900 किलोग्राम अपशिष्ट सामग्री एकत्र कर वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारित की।
स्वयंसेवकों ने गीले और सूखे कचरे को पृथक-पृथक एकत्र कर यह उदाहरण प्रस्तुत किया कि अनुशासन और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही स्वच्छता अभियान की रीढ़ हैं।
विष्णु घाट पर आयोजित जागरूकता संवाद के दौरान श्रद्धालुओं को यह प्रेरक संदेश दिया गया—“गंगा हमारी धरोहर है — इसकी स्वच्छता हमारी जिम्मेदारी। जब हम गंगा को स्वच्छ रखते हैं, तब हम अपनी संस्कृति और आने वाली पीढ़ियों को भी सुरक्षित रखते हैं।” सहयोगी संस्थाओं की सशक्त भागीदारी — सामूहिक चेतना की मिसाल इस दो दिवसीय अभियान की सफलता में आईटीसी मिशन सुनहरा कल की सहयोगी संस्थाओं —श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम, तथा लोकमित्र, के कार्यकर्ताओं ने नगर निगम हरिद्वार के साथ मिलकर सक्रिय सहभागिता निभाई।
इन संस्थाओं के समन्वित प्रयासों से न केवल घाटों की स्वच्छता सुनिश्चित हुई, बल्कि जन-जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता को भी नई ऊर्जा मिली। स्वयंसेवकों ने घाटों पर उपस्थित श्रद्धालुओं से संवाद कर यह संदेश फैलाया कि छठ केवल आत्मशुद्धि का पर्व नहीं, बल्कि पर्यावरणीय पवित्रता और सामूहिक अनुशासन का उत्सव भी है।
स्वच्छता से सेवा – सेवा से संस्कार: अभियान के समापन पर नगर निगम अधिकारियों, स्वयंसेवकों और सामाजिक संस्थाओं ने यह सामूहिक संकल्प लिया कि—
“हम सब मिलकर गंगा की निर्मल धारा और हरिद्वार के घाटों की स्वच्छता को सदैव बनाए रखेंगे। यह केवल हमारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और आस्था का प्रतीक है।”यह दो दिवसीय महाअभियान इस बात का जीवंत उदाहरण बन गया कि जब प्रशासन, समाज और नागरिक एकजुट होकर कार्य करें, तो स्वच्छता कोई कार्यक्रम नहीं रह जाती—वह संवेदना, संस्कृति और सामूहिक चेतना का आंदोलन बन जाती है।
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