देहरादून। पर्वतीय शैली में निर्मित बाणासुर किले में पत्थरों का उपयोग किया गया है। इसकी बनावट प्राकृतिक मीनार की तरह है। बाणासुर का किला भगवान श्रीकृष्ण द्वारा संसार से बुराई का नाश करने की गवाही देता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का अपहरण करने पर श्रीकृष्ण ने इसी जगह पर बाणासुर का मान-मर्दन किया था। इस किले के एतिहासिक महत्व को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के माध्यम से इसे संरक्षित किया गया है। ऊंचाई और खास भौगोलिक स्थिति के चलते इस किले से चारों दिशाओं का नजारा साफ दिखाई देता है। बाणासुर राजा बलि के सौ पुत्रों में से एक था। वह भगवान शिव का अनन्य उपासक था। घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने बाणासुर को चार वरदान दिए थे, लेकिन अपनी बुराइयों की वजह से राक्षस के रूप में जाना जाता है। पत्थरों से निर्मित बाणासुर का किला बाणासुर की ताकत दर्शाता था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के अपहरण पर श्रीकृष्ण ने बाणासुर का संहार किया।
बाणासुर के किले से लोहाघाट नगर का शानदार नजारा दिखता है। माना जाता है कि इस स्थान पर किले का निर्माण चंद राजाओं ने अपनी सीमा की निगरानी के लिए कराया था। इससे नेपाल व अन्य स्थानों से होने वाले आक्रमणों की पूर्व-सूचना मिल जाती थी। एबट माउंट की तरह यहां से भी आप हिमालय की चोटियों का दीदार कर सकते हैं। बाणासुर का किला लोहाघाट में समुद्र तल से 1859 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण मध्यकाल में किया गया था। एक और मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने यहां बाणासुर नाम के एक दानव की हत्या की थी। यह किला लोहाघाट से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर कर्णरायत नामक स्थान के पास स्थित है। कर्णरायत से बाणासुर किले तक लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने के बाद पहुंचा जा सकता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बाणासुर का वध किया गया था, क्योंकि उसने श्रीकृष्ण के पौत्र का अपहरण कर लिया था। इस स्थल से एक ओर हिमालय की भव्य श्रृंखलाओं का दृश्य देखा जा सकता है तो दूसरी ओर लोहाघाट स्थित मायावती आश्रम और अन्य नैसर्गिक छटाओं का भी आनन्द लिया जा सकता है।
इस किले के दो प्रवेश द्वार हैं। लम्बाकार बने इस किले के वर्तमान स्वरूप को देखकर यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि इस किले का निर्माण कम से कम तीन अलग-अलग कालों में हुआ होगा। किले के चारों कोनों पर चार सुरक्षा बुर्ज बने हुए हैं। चांदपुर गढ़ी की तरह ही बाणासुर के किले में भी दीवारों बाहर देखने के लिए रोशनदान या प्रकाशछिद्र हुए हैं। इन 85 छिद्रों की निचली सतह ढालदार है, सम्भवत यह आकार इनके सामरिक उपयोग में मददगार होता होगा। प्राचीन काल में जल का कोई उचित श्रोत ना होने के कारण पानी की दिक्कत रहा करती थी जिसके लिए बाणासुर के किले में आयताकार कुँआ मुख्य भवन के बीचोंबीच बनाया गया था। तेरह मीटर लम्बा और पांच मीटर चैड़ा यह जल संग्राहक लगभग 8 मीटर गहरा है और इसमें नीचे तक उतरने के लिए सीढ़ियां भी बनी हैं। ऐसा माना जाता है कि जब इस किले का उपयोग किया जाता होगा तो उन दिनों निश्चित रूप से इसी जल कुंड का पानी किले के निवासियों के उपयोग में आता होगा। यह भी हो सकता है कि उन दिनों युद्ध आदि की स्थितियों में इस कुंड को किसी बाहरी जल स्रोत के पानी से भरा जाता होगा। किले की दक्षिणी दिशा में कर्णकरायत क्षेत्र में जल स्रोतों की अधिकता आज भी इन क्षेत्र के बेहद उपजाऊ होने की एक बड़ी वजह है। संभवतः ऐसे ही किसी जल स्रोत ने अतीत में बाणासुर के किले को एक बेहतरीन दुर्ग के रूप में अपनी उपयोगिता दिखाने का मौका दिया होगा। ऐसे ही अनेक लोगों ने अपनी अपनी रोचक कहानियों के साथ कीले के मानचित्र को दर्शाया हैं।
609 total views, 1 views today