जल के बिना जीवन संभव नहीं, विश्व जल दिवस पर लें जल संरक्षण का संकल्प

-हेमचन्द्र सकलानी-
किसी भी राज्य प्रदेश देश की सुख समृद्धि के लिए आवश्यक है कि वहां निरंतर प्रवाहित होने वाले व्यापक जल के स्रोत हों। यदि हवा के बिना जीवन संभव नहीं तो यह भी निश्चित है कि जल के बिना भी जीवन संभव नहीं है पूरे ब्रह्मांड में अभी तक केवल पृथ्वी पर ही जीवन पाया गया है सिर्फ इस कारण कि पृथ्वी पर ही जल है। यदि जल न होता तो पृथ्वी कितनी ग्रुप होती इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह हरी भरी वसुंधरा जो हमें दिखाई पड़ती है जल के कारण ही है जीव जंतु पशु पक्षी हरियाली और दुनिया का विकास मात्र जल के कारण हुआ। वैज्ञानिकों ने यह तो अपने सूत्रों से ज्ञात कर लिया कि जीवन की उत्पत्ति सर्वप्रथम जल धाराओं के तट पर हुई। विश्व की प्रसिद्ध संस्कृति और सभ्यताएं मिस्र, मेसोपोटामिया, सिंधु घाटी, नील घाटी, यंग सी, की सभ्यताएं नदियों के तट पर विकसित हुए हैं। आज पृथ्वी का तीन चौथाई भाग समुद्र से घिरा हुआ है, विश्व के लोगों के आवागमन का, जहाजों से व्यापार का सबसे बड़ा माध्यम यही समुद्र की विशाल जल राशि है। समुद्र का पानी भले ही खारा हो, पर इसी नमकीन पानी का वाष्पीकरण होता है जो भाप बनकर उड़ता है फिर पृथ्वी पर बरसता है, पृथ्वी के गर्भ में मीठे जल के खजाने के रूप में छिप जाता है, पर्वतों के शिखरों पर बर्फ के रूप में गिर कर ग्लेशियरों का निर्माण करता है फिर नदियों झरनों को जन्म देता है तालाबों झीलों को भरता है।
जैसे जैसे मानव ने उन्नति की उसका दुष्प्रभाव पर्यावरण पर पड़ा, पृथ्वी पर पड़ा, मौसम पर पड़ा, वायु पर पड़ा,अंतरिक्ष पर पड़ा, जल पर पड़ा है। इन सब के दूषित होने से इसके परिणाम मनुष्य को देर से ही सही एक न एक दिन गंभीर रूप से भुगतने पड़ेंगे। विश्व के अधिकतर जलाशय, कुंड, तालाब, नदियां प्रदूषण का शिकार हो गई हैं क्योंकि मानव द्वारा समस्त गंदगी कूड़ा करकट मल मूत्र सड़े गले शव कारखानों का विषैला रसायन आज इनमें घुल रहा है। वे समुद्र जो हमें पानी देते हैं उनमें विश्व के सारे देशों का मलवा जा रहा है सारे देशों के निकटवर्ती समुद्र तटों का पानी गंदा होने के साथ ही विषैला भी हो रहा है। अब तक खरबों लीटर डीजल पेट्रोल जैसे तेलों और रसायनों के के जहाज समुद्र में डूब कर समुद्र के पानी को तेजाब का रूप दे चुके हैं यही पानी जब भाप बनकर उड़ेगा और ग्लेशियरों पर पानी और बर्फ बनकर गिरेगा, नदियों के रूप में बहेगा या मानवीय बस्तियों के ऊपर या फिर खेतों पर पेड़ पौधों में बरसेगा तब उसके परिणाम क्या निकलेंगे इस पर किसी ने शायद विचार नहीं किया।
यजुर्वेद यह संदेश प्राचीन काल से ही दिया गया है कि जल को दूषित न करो, वनस्पतियों को नष्ट मत करो, शुद्ध रखो पौष्टिक गुणों से युक्त रखो। हमारे देश के प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों,देवी देवताओं ने प्रदूषण की समस्या की ओर ध्यान दिलाया। अपने एक मंत्र के द्वारा पद्मपुराण में कहा गया है की गंगा जल में थूकना,मल मूत्र करना या फेंकना, कूड़ा करकट डालना, गंदा जल डालना पाप नहीं माह पाप है। ऐसा करने वाले को महापापी बताया गया है। पृथ्वी पर जिसने भी जन्म लिया मानव पशु पक्षी कीट पतंगे,वनस्पति सबके ये जल अमृत बना। कहने को वायु प्रथम स्थान पर है लेकिन वायु में यदि जल कण न हों, नमी न हो तो वायु भी व्यर्थ होगी। सभी वेदों में जल के गुणों का उल्लेख किया गया है।
बिना जल के किसी चीज का विकास संभव नही है। यजुर्वेद में जल को स्वास्थ्यवर्धक आयुवर्धक रोगनाशक जीवन को उत्पन्न करने वाला बताया गया है क्योंकि जल में अनेक प्रकार के ओषधि तत्व मौजूद रहते हैं अतः इसे सर्वोत्तम वैद्य भी कहा गया है। आपको दूध, फलों के रस, मदिरा, अमृत से सब बहुत कुछ मिल सकता है लेकिन स्वाद रहित,मिठास रहित, रंगरहित जल से जीवन मिलता है और जीवन जीवित रहता है। अतः सभी देशवासियों के उत्तरदायुत्व बनता है कि अपने आसपास के जल स्रोतों को सुरक्षित साफ स्वच्छ शुद्ध निर्मल बनाए रखे की सभी शपथ लें, स्कूलों में बच्चों को अभी से जल के महत्व के बारे में बताना चाहिये,यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि बिना स्वच्छ जल के जीवन संभव ही नहीं है।