कत्थक नृत्यांगना शिंजिनी कुलकर्णी के नृत्य-राग से भक्ति में झूमा विरासत

-यूपीईएस यूनिवर्सिटी में “जगजीत सिंह का जीवन और ग़ज़लें” पर आयोजित हुआ टॉक शो

 –अश्विनी भिडे का संगीत और गीत-गायन बना विरासत की महफिल की शाही शान

  देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के यूपीईएस यूनिवर्सिटी में विरासत की ओर से आयोजित हुए “जगजीत सिंह का जीवन और ग़ज़लें” विषय पर टॉक शो से वातावरण बेहतरीन आकर्षक एवं भव्य बना रहा है I आकर्षण का केंद्र बने इस टॉक शो में महान ग़ज़ल उस्ताद की विरासत का जश्न मनाया गया। प्रथम सत्र में दो प्रतिष्ठित पैनलिस्ट राजेश बादल और शशि केसवानी शामिल हुएजिन्होंने जगजीत सिंह के जीवन और करियर से जुड़े कुछ रोचक किस्से और अनसुनी कहानियों का जिक्र किया इस बेहद आकर्षक कार्यक्रम की शुरुआत मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह के पहले डिजिटल एल्बमजिसे लंदन में रिकॉर्ड किया गया थाको लेकर यादगार रूप में की गई इस अवसर पर एक मैजिक के बारे में बातचीत से हुई। वक्ताओं ने इसके निर्माण के पीछे के समर्पण और जुनून पर ज़ोर दिया और बताया कि कैसे टीम अक्सर रात भर काम करती थीसुबह तक हर सुर को सुनती और निखारती थी। श्री शशि केसवानी ने जगजीत सिंह की मशहूर गजल पर लिखी गई “कहाँ तुम चले गए”…… पुस्तक के बारे में बात कार्यक्रम में साझा की और कहा कि यह न केवल जगजीत सिंह की संगीत यात्रा का वृत्तांत हैबल्कि जीवन के बहुमूल्य सबक भी देती है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक जानकारी से कहीं आगे बढ़कर संगीत और भावनाओं के माध्यम से एक सार्थक जीवन जीने का तरीका सिखाती है। कार्यक्रम के टॉक शो में श्री राजेश बादल ने जगजीत सिंह के शुरुआती जीवन के बारे में दिल को छू लेने वाले किस्से सुनाए। सिख परिवार में जन्मे जगजीत सिंह का पालन-पोषण एक अनुशासित माहौल में हुआ जहाँ चाय और मांसाहारी भोजन की अनुमति नहीं थी। उनके पिता ने उन्हें गुरुद्वारे में बानी गाते और अरदास करते हुए एक गायक के रूप में देखा था। श्री बादल ने कहा कि कैसे जगजीत सिंह ने अपने गुरु से संगीत सीखा अपने पिता की शुरुआती अस्वीकृति के बावजूद जगजीत के समर्पण ने उन्हें अपना प्रशिक्षण जारी रखने के लिए प्रेरित किया। एक यादगार घटना साझा की गई जब उनके गुरु बॉलीवुड की एक धुन गाने पर उनसे नाराज़ हो गए थेएक ऐसा क्षण जिसने युवा कलाकार की जिज्ञासा और बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाया टॉक शो में एक प्रस्तुति दिखाई गईजिसमें उनके जन्मस्थानउनके पहले सार्वजनिक प्रदर्शन और गीतकार सुदर्शन फ़कीर के साथ उनके सहयोग को दर्शाया गया।  चर्चा में जगजीत सिंह के निजी जीवन पर भी चर्चा हुईजिसमें उनकी युवावस्था की भी एक मार्मिक कहानी शामिल थीजिसमें एक लड़की के बारे में बताया गया था जिसे वे कभी बहुत पसंद करते थे और कैसे उनके संगीत समारोह में हुई एक नोकझोंक उनके प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देने पर प्रशंसा में बदल गई। फिर बातचीत उनकी भावी पत्नी चित्रा सिंह से उनकी मुलाकात पर केंद्रित हो गई। श्री बादल ने बताया कि कैसे जगजीत सिंह ने अपने एल्बम लॉन्च के लिए एचएमवी के साथ काम करने के लिए मुंबई आने पर अपनी पगड़ी और दाढ़ी हटा दी थी। इस फैसले ने शुरुआत में उनके पिता के साथ मतभेद पैदा कर दिए थे। हालाँकिवर्षों बादउनकी सफलता और विनम्रता ने उनके रिश्ते को फिर से पटरी पर ला दिया। वक्ताओं ने चित्रा सिंह के प्रारंभिक जीवनकम उम्र में देबू दत्ता से उनके विवाह और अंततः उनके अलगाव ने उन्हें जगजीत सिंह के साथ संगति और संगीतमय सामंजस्य कैसे प्राप्त करने में मदद कीइस पर भी चर्चा की। साथ मिलकरउन्होंने “बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी” और “समवन समव्हेयर” जैसे कालातीत एल्बम बनाएजो 1980 के दशक में भारतीय संगीत में मील के पत्थर बन गए।

टॉक शो का समापन एक भावुक क्षण में हुआजिसमें देहरादून के ही दून स्कूल में जगजीत सिंह के अंतिम प्रदर्शन पर एक प्रस्तुति दी गईजिसके बाद उनकी दुखद मृत्यु हो गई और बाद में वे कोमा में चले गए। उनके निधन ने एक गहरा शून्य छोड़ दिया खासकर एक कार दुर्घटना में अपने बेटे को खोने के बाद !

सुविख्यात कत्थक नृत्यांगना शिंजिनी कुलकर्णी के नृत्य-राग से भक्ति में झूमा विरासत

 शिंजिनी ने अपनी मनमोहक एवं आकर्षक प्रस्तुति से जीता सभी श्रोताओं का दिल

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में मशहूर कत्थक नृत्यांगना शिंजिनी कुलकर्णी ने अपने राग एवं कथक की मधुर नृत्य से सभी श्रोताओं का हृदय जीत लिया उन्होंने अपनी भाव भंगिमाओं और लयबद्ध निपुणता से सभी का मन मोह लिया उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत वंदना से की उनके साथ संगत संगीत मंडली में तबले पर पंडित शुभ महाराज व पंडित योगेश गंगानीस्वर और हारमोनियम पर जयवर्धन दाधीचपखावज पर सलमान वारसीसारंगी पर जनाब वारिस खान व पद्धांत पर आर्यव आनंद ने बेहतरीन साथ देकर विरासत की महफिल को और भी खुशनुमा और भक्तिमय बना दिया कालका बिंदादीन वंश की नौवीं पीढ़ी में जन्मी शिंजिनी कुलकर्णी कथक के महानायक पंडित बिरजू महाराज की पोती हैं। तीन साल की उम्र से ही शिंजिनी ने अपने दादा के संरक्षण में कथक का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया थाउनके अनुसारहमारे घर में सीखना एक संस्कार है। शिंजिनी की पहली गुरु उनकी मौसी ममता महाराज थींजिन्होंने परिवार के सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा दी। बाद में बिरजू महाराज उनके गुरु बने और उनके बाद उनके सबसे बड़े भाई पंडित जयकिशन जी महाराज उनके गुरु बने। वह इस विशाल विरासत का भार बड़ी खूबसूरती से उठाती हैंलेकिन उनका कहना है कि उनकी विरासत एक व्यक्ति के लिए बहुत बड़ी हैपूरा कथक जगत उनकी विरासत को संभाल रहा है। उन्होंने खजुराहो नृत्य महोत्सवसंकट मोचन समारोहताज महोत्सवचक्रधर समारोहकालिदास महोत्सवकथक महोत्सव आदि जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में प्रस्तुति दी है। उन्होंने भारत और विदेश के विभिन्न शहरों जैसे न्यूयॉर्कसैन फ्रांसिस्को आदि में कई एकल और समूह प्रस्तुतियाँ दी हैंऔर अपने करियर के छोटे से समय में ही दर्शकों से स्नेहपूर्ण प्रशंसा और आशीर्वाद प्राप्त किया है। खास बात यह है कि उनका बॉलीवुड से भी नाता रहा हैऔर अपने नाना की तरह यह रिश्ता भी छोटा ही रहा है। उन्होंने मुजफ्फर अली की फिल्म जांनिसारबंगाली फिल्म हर हर ब्योमकेश और रवि किशन के साथ एक भोजपुरी फिल्म में अभिनय किया है। शिंजिनी नवगठित शुद्ध शास्त्रीय संगीत पर आधारित तालवाद्य बैंड-लयाकारी की भी सदस्य हैं। उन्हें अपने दादाजी की नृत्यकलाओं जैसे नृत्य केलिसंपादनहोली उत्सवकृष्णयान और लोहा आदि का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उन्हें तराना फाउंडेशन का युवा प्रतिभा पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय कटक नृत्य महोत्सव में नृत्य शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें संगीत कला निकेतनजयपुर द्वारा परंपरा सम्मान प्रदान किया गया। दूसरे खंड में शिंजिनी ने “लक्ष्य” नामक एक विशेष प्रस्तुति दीजो सूर्य की खोज को दर्शाती एक नृत्य रचना है। प्रस्तुति का समापन अभिनय खंड के साथ हुआजहाँ उन्होंने भाव पक्ष अभिव्यक्ति परक पहलू में एक ठुमरी का सुंदर प्रदर्शन कियाजिससे श्रोता उनकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति और सूक्ष्म कलात्मकता से मंत्रमुग्ध हो गए। शिंजिनी ने अपनी नृत्य प्रस्तुति में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों पंडित राजन साजन मिश्रडागर बंधुपंडित जसराज और कई अन्य महान कलाकारों की भक्ति रचनाओं को सम्मिलित किया।

अश्विनी भिडे का संगीत और गीत-गायन बना विरासत की महफिल की शाही शान

शास्त्रीय संगीत में जाने-माने गायक कलाकार अश्विनी भिडे ने आज “विरासत” में अपनी आकर्षक प्रस्तुति देखा विरासत की महफिल को शाही शाम बना डाला उन्होंने राग केदार में एक बंदिश “पायो जी मैंने राम रतन…..” के साथ अपना बेहतरीन गायन प्रस्तुत कियाउनकी अगली प्रस्तुति एक बंदिश थी, “चतर सुघर बलमा” उनके साथ हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्रातबला बैंड पर पंडित मिथिलेश झा तथा तानपुरा पर उनके शिष्य शरयु दाते ने शानदार संगत दी देकर वातावरण भक्तिमय बनाया I

अश्विनी भिडे मुंबई की एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायिका हैं। वह जयपुर-अतरौली घराने की परंपरा से जुड़ी हैं। मुंबई में एक मजबूत संगीत परंपरा वाले परिवार में जन्मी अश्विनी ने वायलिन वादक डीके दातार के बड़े भाई नारायणराव दातार से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने गंधर्व महाविद्यालय से संगीत विशारद की शिक्षा पूरी की। तब से वह अपनी मां माणिक भिडेजो गणसरस्वती किशोरी अमोनकर की शिष्या थींसे जयपुर-अतरौली शैली में संगीत सीख रही हैं। अश्विनी ने वर्ष 2009 में रत्नाकर पै के निधन तक उनसे भी मार्गदर्शन प्राप्त किया। वह अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडलमुंबई से संगीत विशारद हैं। उन्हें आईटीएम विश्वविद्यालय (ग्वालियर) से मानद डी लिट की उपाधि भी प्राप्त है। उन्हें बंदिश और बंदिश-रचना की गहरी समझ है और उन्होंने अपनी कई बंदिशें रची हैंजिन्हें उन्होंने अपनी पुस्तकराग रचनांजलि में प्रकाशित किया है। वह भजनोंखासकर कबीर के भजनों की अपनी प्रस्तुति के लिए भी जानी जाती हैं। राग के व्याकरण पर उनकी अचूक पकड़ उनकी आवाज़ की मधुरता और आत्मीयता को कम नहीं करती। हालाँकि अपने प्रशिक्षण और स्वभाव के कारण वह एक शुद्ध शास्त्रीय गायिका हैंफिर भी वह ठुमरी-दादरा और भजन-अभंग शैलियों में पारंगत हैं संस्कृत में उनकी धारा प्रवाहता ने श्रुतियों और श्लोकों के समावेश से उनके प्रदर्शनों की सूची को और समृद्ध किया है। उन्हें हिंदुस्तानी संगीत गायन के लिए संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कार मिला। यही नहीं,उन्होंने टोरंटोकनाडा के आगा खान संग्रहालय सहित कई स्थानों पर राग-माला संगीत सोसायटीटोरंटो के लिए प्रस्तुति दी है। अश्विनी आकाशवाणी और दूरदर्शन की एक उच्चतम श्रेणी‘ कलाकार हैं और कई संगीत सम्मेलनों का अभिन्न अंग रही हैं। वह प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान से सम्मानित होने वाली पहली महिला हिंदुस्तानी गायिका हैं।

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