प्रकृति की मार से कराह रहा जोशीमठ

देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड का एक खूबसूरत शहर जोशीमठ इन दिनों भूधंसाव की चपेट में है। भूधंसाव के चलते इस शहर के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है। प्रकृति की मार से यह शहर कराह रहा है, दरक रहा है। जोशीमठ संस्कृति और अध्यात्म का संवाहक होने के साथ ही देश का सीमा प्रहरी भी है। ढाई हजार से लेकर 3050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ से नंदा देवी, कामेट, दूनागिरी जैसी हिमाच्छादित पर्वत चोटियों का नयनाभिराम दृश्य देखते ही बनता है। देश के चारधामों में से एक बदरीनाथ का शीतकालीन गद्दीस्थल होने का इसे गौरव प्राप्त है। यह भविष्य बदरी का भी द्वार है। विश्व प्रसिद्ध हिम क्रीड़ा केंद्र औली का प्रमुख पड़ाव भी जोशीमठ है। नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण होने के चलते इसका आकर्षण कम नहीं है, लेकिन प्रकृति की मार से यह शहर कराह रहा है, दरक रहा है।
जोशीमठ में घरों में दरारें पड़ गई हैं, जमीन के नीचे पानी की हलचल सुनाई दे रही है। जमीन के नीचे से पानी के फव्वारे फूट रहे हैं। जमीन के धंसने से समूचा जोशीमठ धंस रहा है। सैकड़ों भवन रहने लायक नहीं बचे हैं। कई जगह जमीन पर भी चैड़ी दरारें उभरने लगी हैं। पूर्व में तमाम चेतावनियों के बाद भी जोशीमठ को बचाने के प्रयास नहीं हुए, वहां भारी भरकम इमारतों का जंगल उगता गया। 20 से 25 हजार की आबादी वाला ये शहर अनियंत्रित विकास की भेंट चढ़ रहा है, शहर का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।
जमीन धंसने के कारण इन दिनों जोशीमठ सुर्खियों में बना है। अब तक अपने शांत स्वभाव की तरह ही खबरों की भीड़ से दूर ही रहता था लेकिन धरा की कंपकंपाहट और दरारों ने इसे शायद अशांत होती प्रकृति का आईना बनाकर इन दिनों प्रस्तुत कर दिया है। नर और नारायण पर्वतों के बीच बसे जोशीमठ का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना ही आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा पुनः धर्म की स्थापना का शुभ कर्म है।
जोशीमठ का एक नाम ज्योर्तिमठ भी है। यह उत्तराखंड का एक प्रमुख नगर है। जोशीमठ आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत लोगों की विशेष पसंद रहा है। उत्तराखंड में जिस स्थान पर अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम होता है, उस स्थान पर ही जोशीमठ स्थित है। आत्मा का ज्ञान जिसे प्राप्त करना होता है वो यहां आकर ध्यान की अलौकिक ऊर्जा से स्वयं को उर्जित करता है। आदिगुरु शंकराचार्य ने स्वयं यहां पर मठ की स्थापना की थी।
सनातन धर्म की पुनः स्थापना के लिए निकले अद्वेत सिद्धांत के प्रचारक आदिगुरु शंकराचार्य जिन्हें भगवान शंकर का अंश अवतार भी कहा जाता है, उन्होंने चार मठों की स्थापना अपने जीवनकाल में की थी। उन्हीं में से एक जोशीमठ भी है। कहा जाता है कि यहां स्वयं आदिगुरु ने ध्यान के द्वारा ज्ञान की प्राप्ति की थी। जोशीमठ की स्थापना करने के बाद उन्होंने यहां की गद्दी अपने शिष्य टोटका को सौंप दी थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार जब हिरण्यकश्यप का संहार कर भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में अत्यंत क्रोधित थे तो उनका क्रोध शांत करने के लिए भक्त प्रहलाद ने मां लक्ष्मी के कहने से यहां तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान का क्रोध शांत हुआ था।

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