नेताओं-नौकरशाहों की जिम्मेदारी के बगैर भ्रष्टाचार को मिटाना असंभव

योगेंद्र योगी। भारत एक तरफ वैश्विक ताकत बनने की दिशा में अग्रसर है, वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की जंजीर इसके बढ़ते कदम को रोक रही है। ऐसा देश का शायद ही कोई चुनाव होगा जिसमें प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार का जिक्र नहीं किया हो। मोदी ने लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार पर प्रहार करने में कसर बाकी नहीं रखी। संसद में दिए गए भाषण में उन्होंने कहा था कि मेरे लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई चुनावी जीत या हार के पैमाने पर नहीं है। मैं चुनाव जीतने या हारने के लिए भ्रष्टाचार से नहीं लड़ रहा हूं। यह मेरा मिशन है, मेरा विश्वास है। मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार एक ऐसा दीमक है जिसने देश को खोखला कर दिया है। मैं इस देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने और आम लोगों के मन में भ्रष्टाचार के खिलाफ नफरत पैदा करने के लिए पूरे दिल से काम कर रहा हूं। प्रधानमंत्री के देश से पूरी तरह भ्रष्टाचार के खात्मे के प्रति प्रतिज्ञा लेने के बावजूद यदि यह संक्रामक रोग की तरह बढ़ता ही जा रहा है तो इसके लिए ज्यादातर राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं। क्षेत्रीय दलों की हालत यह है कि उनका एकमात्र मकसद किसी भी हालत में सत्ता में बने रहना है। इसके लिए बेशक भ्रष्टाचार से किसी भी हद तक समझौता क्यों न करना पड़े। यही वजह रही है कि इंडिया गठबंधन लगातार चुनावों में शिकस्त खाता रहा है।
आश्चर्य यह है कि लोकसभा चुनावों और राज्यों के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बावजूद विपक्षी दलों ने भ्रष्टाचार को कभी भी प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। भ्रष्टाचार को लेकर हालात ये हैं कि जैसे ही कोई भी विपक्षी दल भ्रष्टाचार का जिक्र करता है, तत्काल सत्तारुढ़ दल न सिर्फ उसके बचाव में उतर आता है बल्कि विपक्षी दल के कारनामे गिनाने लगता है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में मनमानी करने पर आमदा हैं। यदि केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय कोई कार्रवाई करता है तो राज्य के सत्तारुढ़ दल इसे बदले की कार्रवाई करार देने लगते हैं। इसका उदाहरण पश्चिमी बंगाल की ममता बनर्जी सरकार, तमिलनाडु की स्टालिन सरकार और कर्नाटक की सिद्धरमैया की सरकार है। इतना ही नहीं राजनीतिक दलों का भरसक प्रयास होता है कि अदालतों में चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों को भी प्रभावित किया जाए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए एजेंसियों को खुली छूट दे दी है और इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार एक दीमक है जिसने देश को खोखला कर दिया है और वह देश को इस बुराई से मुक्त करने के लिए पूरे मनोयोग से काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के इस दृढ़ निश्चय के बावजूद भारत में भ्रष्टाचार कैंसर की तरह फैलता जा रहा है। केंद्र की भाजपा सरकार हो या राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें, सभी भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़े दावे-वादे करती रहीं हैं, किन्तु यह समस्या सुरसा के मुंह की तरह विकराल होती जा रही है। करप्शन परसेप्शन इंडेक्स-2024 की भ्रष्टाचार की सूची वाले देशों में भारत 96वें पायदान पर पहुंच गया है। साल 2023 में भारत की रैंक 93 थी।
भारत इस सूची मे पड़ौसी देशों की ज्यादा बुरी हालत पर कुछ राहत महसूस कर सकता है। भ्रष्टाचार की इस सूची में भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान 135 नंबर पर और श्रीलंका 121 पर हैं, जबकि बांग्लादेश की रैंकिंग और भी नीचे 149 पर चली गई है। इस लिस्ट में चीन 76वें स्थान पर है। डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट राष्ट्र होने की सूची में सबसे ऊपर है, उसके बाद फिनलैंड और सिंगापुर हैं। 1995 से 2024 तक भारत में भ्रष्टाचार की औसत दर 78.03 रही, जो 2024 में 96.00 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई और 1995 में 35.00 के रिकॉर्ड निम्नतम स्तर पर पहुंच गई थी।
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक यानी सीपीआई दुनिया में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली वैश्विक भ्रष्टाचार रैंकिंग है। यह मापता है कि विशेषज्ञों और व्यवसायियों के अनुसार प्रत्येक देश का सार्वजनिक क्षेत्र कितना भ्रष्ट है। प्रत्येक देश का स्कोर 13 विभिन्न भ्रष्टाचार सर्वेक्षणों और आकलनों से प्राप्त कम से कम 3 डेटा स्रोतों लिया जाता है। ये सोर्स विश्व बैंक और विश्व आर्थिक मंच सहित विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा एकत्र किए जाते हैं। सीपीआई की गणना करने की प्रक्रिया की नियमित रूप से समीक्षा की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जारी की जाने वाली सूची यथासंभव मजबूत और सुसंगत है या नहीं। भारत में विदेशी निवेश अपेक्षाकृत नहीं आने का एक प्रमुख कारण भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार के कारण भारत की अंतरराष्ट्रीय साख कमजोर है। विदेशी कंपनियां यहां निवेश करने से कतराती हैं। देश के उद्योगपति और लघु व मध्यम व्यवसायी इसकी मार से बच नहीं सके हैं।
गौरतलब है कि सीनियर वकील हरीश साल्वे सहित देश के 600 से ज्यादा वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर न्यायपालिका पर सवाल उठाने को लेकर चिंता जाहिर की थी। सीजेआई को लिखी चिट्ठी में वकीलों ने कहा था कि ये समूह न्यायिक फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव की रणनीति अपना रहा है, और ऐसा खासकर सियासी हस्तियों और भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामलों में हो रहा है। चिट्ठी में कहा गया है कि ये समूह ऐसे बयान देते हैं जो सही नहीं होते हैं और ये राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा करते हैं। अपनी चिट्ठी में वकीलों ने ऐसे कई तरीकों पर प्रकाश डाला है, जिनमें न्यायपालिका के तथाकथित स्वर्ण युग के बारे में झूठी कहानियों का प्रचार भी शामिल है। न्यायपालिका तक को प्रभावित करने के प्रयासों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में भ्रष्टाचार किस हद तक व्याप्त है। देश की भ्रष्टाचार में रैंकिग बेशक बढ़ रही हो, इसके बावजूद विगत चुनावों में भाजपा अकेली पार्टी रही, जिसने भ्रष्टाचार के खात्मे की बात कही। अन्य दल तो इस मुद्दे पर चर्चा करने तक से कतराते हैं। विपक्षी दलों ने केंद्र के सत्तारुढ दल को भ्रष्टाचार में लपेटने की कई बार नाकाम कोशिश की है, चाहे वह मुद्दा युद्धक विमान राफेल की खरीद का हो या अडानी गु्रप से जुड़ा हुआ हो। विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट तक में भ्रष्टाचार के मामले को ले गए पर इसे साबित नहीं कर पाए। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा भ्रष्टाचार को लेकर दूध की धुली है। भाजपा का दामन थामने वाले विपक्षी दलों के नेताओं के ऐसे मामलों को नजरांदाज किया जाता रहा है। इसके अलावा केंद्र में भाजपा अकेले अपने बलबूते सत्ता में नहीं है, ऐसे में गठबंधन के सहयोगी दलों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से मुंह फेरे रहती है। यही वजह रही है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से इन सहयोगी दलों के खिलाफ एक भी कार्रवाई नहीं की गई।
कोई भी एजेंसी जब किसी राज्य या विभाग में भ्रष्टाचार का मामला पकड़ती है तब इस गुनाह पर पर्दा डालने के लिए यही दलील दी जाती रही है कि भ्रष्टाचार को मिटाना है। इसके बावजूद एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहते हैं, पर कोई राजनीतिक दल यह दावा नहीं करता कि उनके शासित राज्य से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो चुका है। राज्य तो दूर की बात है कि बल्कि किसी दल में इतना भी साहस नहीं है कि यह कह सके कि कोई एक विभाग पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त है। फिर विभाग चाहे केंद्र सरकार के हों या राज्यों के। यह निश्चित है कि भ्रष्टाचार इस देश से तब तक नहीं मिटेगा जब तक नेताओं की कथनी और करनी में अंतर रहेगा। नेताओं के साथ नौकरशाहों की भी जिम्मेदारी तय किए बगैर भ्रष्टाचार को जड़ से उखाडऩा असंभव है।