-हेमचन्द्र सकलानी–
यह कटु सत्य है कि देश प्रेम की भावना से ही राष्ट्रीयता पैदा होती है। इसका अनुभव अहसास तब होता है जब हम इतिहास में अपने शहीदों की शहादतों को देखते पढ़ते हैं।
देश प्रेम की भावना को अपने साहित्य के माध्यम से जितनी सुंदरता के साथ समय समय पर साहित्यकारों ने व्यक्त किया है वह किसी और माध्यम से नहीं हुआ। साहित्य का योगदान यूॅं तो मानव जीवन के हर क्षेत्र में रहा अपने इस क्रम में साहित्य प्रारम्भ से लेकर आज तक हारा थका नहीं। नेपाल को छोड़कर दुनिया का हर देश कभी न कभी किसी न किसी देश का गुलाम रहा। लेकिन आज देश प्रेम की भावना की बदौलत ही सब स्वतंत्र हैं। यदि देश प्रेम की भावना नागरिकों मे न होती तो शायद ही कोई देश दासता से मुक्त हो पाता। हमारे स्वतंत्रत्ता संग्राम में इस साहित्य ने साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश प्रेम, देश भक्ति भावना को और आन्दोलनों को अपने माध्यम से अधिक उर्जा प्रदान कर स्वतंत्रता दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई। यही वह भावना थी जिस कारण अंग्रेजों के समय पाॅंच सौ पैंसठ रियासतों में बंटा यह देश, एक देश एक राष्ट्र के रूप में हमें आज नजर आता है। यह देश प्रेम, यह राष्ट्र प्रेम आखिर है क्या। इसके बहुत से अर्थ लगाए और बताए जा सकते हैं। यह भावना कोई देने थोपने की चीज नहीं होती अगर नागरिक अच्छे हों तो स्वयं पैदा होती है। देश भूमि को अर्थात जन्म भूमि को स्वर्ग के समान मान कर ही कहा गया – ’’जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’’ नेपाल ने संस्कृत के इस श्लोक को अपने राष्ट्रीय चिंन्ह पर अंकित किया। रामायण में भी कहा जाता है लक्ष्मण जब सोने की लंका और उसकी सुंदरता को देख मंत्र मुग्ध हो उठे थे तो राम ने भी उन्हें कहा कि जन्म देने वाली माॅं और जन्म भूमि अर्थात हमारी अयोध्या स्वर्ग के समान है।
भारत के 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (जिसे गदर की संज्ञा दी गयी थी) से जो देश भक्ति की भावना मंगल पांडे, तांत्या टोपे, और झाॅंसी की रानी लक्ष्मीबाई के द्वारा प्रस्फुटित हुई थी उसकी, उस देश प्रेम की लौ आज तक जलती दिखाई पड़ती है। उस नब्बे वर्ष के काल में हजारों देश भक्तों ने, स्वतंत्रता सेनानियों ने यदि स्वतंत्रता के यज्ञ में अपनी आहुति न दी होती तो शायद स्वतंत्रता प्राप्त न होती। उनकी शहादत के बाद प्रसिद्व लेखिका सुभद्रा कुमारी चैहान का उनकी वीरता के प्रति समर्पित वीरता गीत ‘‘सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भ्रकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी, खूब लड़ी मरदानी वह तो झाॅंसी वाली रानी थी, बुंदेलों हर बोलों के मुंह से हमने सुनी कहानी थी‘‘ तो राष्ट्रीय गीत बनकर हर देशवासी के दिल की धड़कन और जोश का ज्वालामुखी सा उन दिनों बन गया गया था।
बंकिमचन्द्र चटटोपाध्याय द्वारा रचित देश के प्रति वंदना गीत में देश की स्तुति इस प्रकार की गयी-‘‘वंदे मातरम्, वंदे मातरम्। सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्, शश्यश्यामलाम् मातरम। वंदे मातरम्।‘‘ जो उस समय राष्ट्रगीत बन कर प्रभात फेरियों में हर आन्दोलनकारियों के स्वर से निकल कर देश के प्रति देश प्रेम की भावना को और जाग्रत करता था। इसकी देश के प्रति भावात्मक प्रस्तुति से ही इसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ दस गीतों में दूसरा स्थान मिला था।
जन गण मन गीत रविन्द्र नाथ टैगोर ने बंगला में लिखा था। लेकिन कहीं पढ़ा था- सुभाष चन्द्र बोस को यह बहुत पसंद था उन्होंने हिंदी में इसका अनुवाद करवाया और इसे जब कैप्टेन लक्ष्मी सहगल जो पहले लक्ष्मी स्वामीनाथन थीं ने अपने स्वरों के साथ इसे पूरे समूह से गवाया तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को इतना पसंद आया कि इसे अपनी इंडियन नेशनल आर्मी का गीत बना दिया। इस गीत ने ‘‘सूरज बनकर जग में चमके भारत भाग्य विधाता‘‘ ने आन्दोलनकारियों में एकता, देश के प्रति प्रेम की और स्वतंत्रता की भावना को नया जोश प्रदान किया था।
जयशंकर प्रसाद का गीत ‘‘हिमाद्री तुंग श्रृंग से प्रबुद्व शुद्व भारती, स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती, अमत्र्य वीरपुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो।‘‘ गीत भी आन्दोलनकारियों में प्रभात फेरी में खूब जोश भरता था।
राष्ट्र कवि मैथलीशरण गुप्त जी की देश के प्रति प्रेम की भावना का संदेश देती थीं और आज भी देती हैं यह पंक्तियाॅं -‘‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है वह नर नहीं, नर पशु निरा है, और मृतक समान है।‘ व ‘मानस भवन में आर्यजन जिनकी उतारें आरती भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती।’ तथा ‘जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं, हृदय नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश से प्यार नहीं।‘‘ जनमानस में राष्ट्र के प्रति प्रेम को और भी प्रज्वलित कर गौरवान्वित करती थीं यह कहते हुए कि जिसके अंदर अपने देश के प्रति प्रेम के भाव नहीं वह मनुष्य नहीं पशु के समान है, पत्थर के समान है। सत्य भी है अपने देश के प्रति गौरव की भावना हर व्यक्ति में होनी चाहिए।
जब हम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को खंगालने का प्रयत्न करते हैं तो चन्द्र शेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस जैसे हजारों नाम सामने आते हैं और हजारों गुमनाम शहीद जिन्होने स्वतंत्रता की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति दी, उन्हीं के त्याग और बलिदान का फल है कि हम स्वतंत्र भारत में साॅंस ले पा रहे हैं। सच भी है कुछ दीवानों ने स्वतंत्र भारत का ख्वाब देखा था, एक ऐसा ख्वाब जो हॅंसी मजाक में पूरा नहीं हो सकता था जिसके लिए किसी एक सपने की जरूरत थी,उसे पूरा करने के लिए एक जुनून की जरूरत थी। स्वयं सुभाष चंद्र बोस ने एक समारोह में कहा मैं स्वतंत्र भारत का सपना देखता हूँ जहां अपना संविधान होगा, अपनी सेनाएं होंगी, दूसरे देशों में अपने राजदूत होंगे।
देश प्रेम एक पवित्र भावना होती है जो हर किसी के अंदर कहीं न कहीं होती है और वो लोग भाग्यशाली होते हैं जो अपने देश पर प्राण न्यौछावर करते है। राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी जी ने देश के प्रति स्वयं शहीद होने की भावना कुछ इस तरह प्रकट की ‘‘वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला दो, बलि जहाॅं हों शीश अनगिनत एक शीश मेरा मिला दो।‘‘
माखनलाल चतुर्वेदी अपनी राष्ट्रीयता की भावना फूलों के माध्यम से अपनी अभिलाषा को पुष्प की अभिलाषा मान इस प्रकार प्रकट की थी ‘‘चाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूॅंथा जाॅंऊ, चाह नहीं माला बिंध प्यारी को ललचाऊॅं, मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ पर जावें वीर अनेक।‘
रामप्रसाद बिस्मिल, अक्सर बिस्मिल अजीमावादी की देश भक्ति की गजलें और शेरो शायरी से बहुत प्रभावित रहते थे और जब तब गाया करते थे। अपनी शहादत के समय उनके द्वारा कहे गये शेर ‘‘सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है,‘‘ व ‘‘वक्त आने पर बता देंगे तुझे ए आसमा, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।‘‘ तथा ‘‘खे लेने दो आज नाव मुझे कल पतवार गहे न गहे, जीवन सरिता में शायद फिर ऐसी रसधार बहे न बहे, अंतिम साॅंस निकलने तक है बिस्मिल की अभिलाषा यही, तेरा वैभव अमर रहे माॅं हम दिन चार रहे न रहें।‘ निसंदेह हर व्यक्ति के अंदर देश प्रेम की भावना होनी चाहिए और वो लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं जो अपनी जान की परवाह न कर देश पर तन मन धन ही नहीं अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। अपने आप में शहीदों के प्रति ऐसे शेर और गजल जैसे हमेशा के लिए अमर हो गये, यही कारण है हर शहीदों के प्रति आयोजित कार्यक्रम में यह आज भी गाये जाते हैं आज भी पढ़े जाते हैं इनके उदाहरण दिए जाते हैं और आज भी जरूर याद किये जाते हैं।
जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी के देश प्रेम की पंक्तियाॅं ‘‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।‘‘ तथा ‘‘कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे, जब अपनी जमीं होगी और अपना आसमां होगा।‘‘ आज भी दिलों को झंकृत करती हैं।
शहीद भगत सिंह ने अंतिम समय कहा था ‘‘दिल से निकलेगी न मर के भी वतन की उल्फत, मेरी मिटटी से भी खुशबुए वतन आएगी।‘‘ व ‘‘लिख रहा हूॅं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर कतरा इंकलाब लाएगा, मैं रहूॅं या ना रहूँ पर ये वादा है मेरा तुमसे कि मेरे बाद वतन पर मिटने वालों का सैलाब आएगा।‘‘ और ‘‘कभी वतन के लिए सोच के देख लेना, कभी माॅं के चरण चूम के देख लेना, कितना मजा आता है मरने में यारों, कभी मुल्क के लिए मर के देख लेना।‘‘ ऐसा कुछ वही लिख सकता है जो देश के लिए जीता हो और देश के लिए जीते जी मरने की भावना रखता हो।
अटल बिहारी बाजपेयी अपने देश के प्रति अटूट प्रेम के वशीभूत होकर ही उन्हें भरी संसद में कहना पड़ा था ‘‘मातृ भूमि से बढ़कर कोई चंदन नहीं होता, वन्दे मातरम से बढ़कर कोई वंदन नहीं होता।‘‘ उन्होंने कहा था भारत कोई जमीन का टुकड़ा नहीं एक जीता जागता राष्ट्र पुरुष है। अपने देश के प्रति कितनी सुंदर भावनाएं यह कह कर उन्होंने प्रकट की थीं- ‘‘यह चंदन की भूमि है यह अभिनंदन की भूमि है यह तर्पण की भूमि है यह अर्पण की भूमि है, इसका कंकर कंकर शंकर है इसका बिंन्दू बिन्दू गंगा जल है, हम जियेंगे तो इसके लिए हम मरेंगे तो इसके लिए।‘‘
देश प्रेम में डूबने पर ही कोई यह लिख सकता है-‘‘है हमको इस देश की कसम इसके लिए जिएंगे और मरेंगे हम, सरहद पर हुए जो शहीद उनकी कसम हर जुल्म को खत्म करके दम लेंगे हम। प्रेम की गंगा ऐसी बहेगी एक दिन नफरतों की आँधियों को जीत लेंगे हम, लहराए गगन में सबसे ऊॅंचा तिरंगा इसी कामना में हरदम जिएंगे हम।‘‘ अपने देश के प्रति अपनी भावना को कोई देश प्रेमी कवि इस तरह व्यक्त करता है- ‘‘कसम है तेरी, तेरे तिरंगे की हम तेरे तीनों रंगों में मिलेंगे, प्यार है तुझसे इबादत हमारी हम जब भी जपेंगे जय हिन्द कहेंगे।‘‘
हमारा आधुनिक समाज यह मान बैठा है कि देश सेवा, देश प्रेम, सीमा पर खड़े सीमा की रक्षा करते सैनिक का कार्य है। लेकिन सत्य यही है अपने देश के प्रति आदर सेवा सम्मान और उसके प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन ईमानदारी से करना भी सच्चे देश प्रेम से कम नहीं होता है जो हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है स्वाधीनता के इन चैहत्तर वर्षों में अपने अधिकारों के लिए हर व्यक्ति लड़ा लेकिन अपने देश के प्रति कर्तव्यों को निभाने के लिए कोई नहीं लड़ा। अपने देश के शहीदों को समय समय पर स्मरण अवश्य करना चाहिए तभी डाॅ.उर्मिलेश प्रसिद्व शायर ने लिखा था-‘‘जिनकी कुरबानी वतन की आरती से कम नहीं, याद उन वीरों की दोस्तों बंदगी से कम नहीं।‘‘ या ‘‘कयामत तक हर वर्ष जलाएंगे यूॅं ही दिये हम, लहू से जो रोशन हुए कभी मद्वम न होंगे, शहीदाने वतन की याद में उनकी मजारों पर अगर होगी तो दीवाली कभी मातम नहीं होंगे।‘‘ क्योंकि उनके त्याग बलिदान के बदौलत ही हम स्वतंत्रता का सुख भोग रहे है। ऐसे शहीदों का बलिदान हमारी प्रेरणा का वो प्रकाश पुंज है जो सदैव हमें और हमारे देश को आलोकित करता रहेगा। यह सब उन स्वतंत्रता सेनानियों के देश प्रेम के बदौलत ही सम्भव हो पाया था। देश प्रेम ही राष्ट्रीय एकता की भावना को जन्म देता है और देश प्रेम की इस राष्ट्रीयता की भावना को जाग्रत करने, कराने में साहित्य ने हमेशा अग्रणीय और उल्लेखनीय भूमिका निभायी है।
– सकलानी साहित्य सदन, विद्यापीठ मार्ग विकासनगर, देहरादून।
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