बढ़ता प्रदूषण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा

बढ़ता प्रदूषण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए एक गंभीर खतरा है। जो वायुमंडल में हानिकारक पदार्थों के कारण होता है। इसके मुख्य कारणों में वाहनों का उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियाँ, निर्माण कार्य और कचरे का अनुचित प्रबंधन शामिल हैं। इस प्रदूषण से श्वसन रोग, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी बीमारियाँ बढ़ती हैं, और इनसे निपटने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर प्रयास करने की आवश्यकता है। निजी और सार्वजनिक परिवहन से निकलने वाली गैसें वायु प्रदूषण बढ़ाती हैं। कारखाने गैसीय उत्सर्जन और ठोस/तरल अपशिष्ट के माध्यम से वायु, जल और मिट्टी को प्रदूषित करते हैं। शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास से उत्पन्न धूल प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। औद्योगिक और व्यक्तिगत कचरे का सही ढंग से प्रबंधन न होने से लैंडफिल और जल प्रदूषण बढ़ता है। कीटनाशकों और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी और जल प्रदूषण का कारण बनता है। ऊर्जा क्षेत्र में कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों का उपयोग वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन में योगदान करता है। प्रदूषण से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ता है। प्रदूषित हवा में मौजूद कण हृदय और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ता है। आंखों में जलन और अन्य समस्याएं हो सकती हैं। बच्चे और बुजुर्ग जैसे संवेदनशील समूहों को अधिक प्रभावित करते हैं।  लोगों को निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना। इलेक्ट्रिक वाहनों को कम प्रदूषण फैलाने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की जरूरत है। बिजली की खपत कम करके ऊर्जा बचाना और नवीकरणीय ऊर्जा, जैसे सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। प्लास्टिक की थैलियों और अन्य सिंगल-यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करना चाहिए। व्यक्तिगत स्तर पर जागरूक होना और दूसरों को प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना भी महत्वपूर्ण है। सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जाए।
अगर आम आदमी आगे आए तो वायु प्रदूषण के अलावा ध्वनि, मृदा, प्रकाश, जल और अग्नि प्रदूषण से छुटकारा पाया जा सकता है। इनमें ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने की आदत डालना जरूरी है। निजी वाहनों के ज्यादा इस्तेमाल से वायु मंडल में कार्बन मोनोआक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण से जहां अनेक नई-नई बीमारियां और दूसरी समस्याएं पैदा हो रही हैं, वहीं इसका असर उम्र पर भी पड़ रहा है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से भारतीयों की उम्र नौ साल तक कम हो रही है। बढ़ते वायु प्रदूषण पर काबू पाना बहुत जरूरी है। दुनिया भर के प्रदूषित शहरों की श्रेणीबद्धता में भारतीय शहरों की संख्या पिछले वर्षों में बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के दूसरे शहरों के मुकाबले उत्तर भारत में प्रदूषण का स्तर दस गुना ज्यादा खतरनाक है। इसकी वजहें कई हैं। ईट भट्ठे, बेतहाशा बढ़ते पेट्रोलियम वाहन, कल-कारखाने, फसलें जलाने और छोटे-छोटे तमाम दूसरे कारक इसमें शामिल हैं। दुनिया के पचास सबसे प्रदूषित शहरों में पैंतीस शहर भारत के हैं। पीएम 2.5 सांस के साथ शरीर के अंदर जाने योग्य महीन कण हैं, जिनका व्यास आमतौर पर 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटा होता है। अध्ययन से पता चलता है कि 2019 में परिवेशी पीएम 2.5 के कारण दक्षिण एशिया में 10 लाख से अधिक मौतें मुख्य रूप से घरों में इंधन जलाने, उद्योग और बिजली उत्पादन से हुईं। अध्ययन में पाया गया कि ठोस जैव इंर्धन पीएम 2.5 के कारण होने वाली मृत्यु दर में योगदान देने वाला प्रमुख दहनशील इंर्धन है, इसके बाद कोयला, तेल और गैस का स्थान है। एक दूसरे शोध में वायु प्रदूषण बढ़ने के ऐसे कारण भी बताए गए हैं, जो बेहद खतरनाक हैं। इन कारणों में बिजली घर, डीजल जलाने और जीवाश्म ईंधन से निकलने वाली सल्फर और नाइट्रोजन आक्साइड हैं, जिन्हें नियंत्रण में लाने की जरूरत है। पिछले दो दशक में उत्सर्जन पर कई शोध हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारणों में रसायन वाले उत्पाद, घरों में पेंट करना और कोयला जलाना शामिल है। धातु के कार्बनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) नामक एक सामग्री विकसित की गई है। इसमें नाइट्रोजन डाइआक्साइड (एनओ2) को सोखने की क्षमता है। एनओ2 खासकर डीजल और जैव-ईंधन के जलने से उत्पन्न होती है, जो एक जहरीली और प्रदूषक गैस है। एनओ2 को आसानी से नाइट्रिक में बदला जा सकता है, जो फसलों के लिए खेती में डाले जाने वाले उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। नाइट्रिक एसिड बहुत काम की है। इससे राकेट का ईंधन और नायलान जैसी सामग्री भी बनाई जा सकती है। एक और शोध के जरिए वायु प्रदूषण को कम करने में कामयाबी मिलने की आशा है। ‘ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी’ और ‘बर्कले नेशनल लेबोरेटरी’ के शोधकर्ताओं ने धातु के कार्बनिक फ्रेमवर्क यानी एमओएफ का परीक्षण किया। शोधकर्ताओं की टीम ने एमएफएम-520 में एनओ2 को सोखने के तंत्र का अध्ययन करने के लिए मैनचेस्टर में लेक्ट्रान पैरामैग्नेटिक रेजोनेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के लिए सरकारी सेवा का इस्तेमाल किया। इस तकनीक से वायु प्रदूषण को काबू किया जा सकता है। इससे पर्यावरण पर नाइट्रोजन के बुरे असर को रोकने में मदद मिल सकती है। यह नया प्रयोग अगर पूरी तरह सफल रहा, तो वायु प्रदूषण की समस्या से काफी कुछ छुटकारा पाया जा सकता है। यहां तक कि वायुमंडल से ग्रीनहाउस और विषाक्त गैसों को सोखने के साथ-साथ इनको उपयोगी, मूल्यवान उत्पादों में बदला जा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर आम आदमी आगे आए तो वायु प्रदूषण के अलावा ध्वनि, मृदा, प्रकाश, जल और अग्नि प्रदूषण से छुटकारा पाया जा सकता है। भारत में वायु प्रदूषण को कम करने और विदेश से पेट्रोलियम उत्पादों के आयात की सबसे बड़ी वजह पेट्रोलियम वाहनों का इस्तेमाल करना है। ई-वाहनों के इस्तेमाल से जहां वायु प्रदूषण से निजात मिलेगी, वहीं पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर होने वाला खर्च भी बचेगा। ऐसी जीवनशैली अपनाने की जरूरत है, जो पर्यावरण की रक्षा में मददगार हो। इससे जहां बीमारियों से बचने में मदद मिलेगी, वहीं प्राकृतिक जीवन जीने की आदत भी पड़ेगी। यह सलाह वैज्ञानिक भी दे रहे हैं और चिकित्सक भी। बाग लगाने से आक्सीजन की कमी को दूर किया जा सकता है। इससे चारों तरफ हरियाली बढ़ेगी वहीं फल, मेवे और लकड़ी का उत्पादन भी जरूरत के मुताबिक हो पाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक बिजली की खपत कम करके ऊर्जा की बचत बेहतर तरीके से की जा सकती है और बिजली के बल्बों और दूसरे उत्पादों से होने वाली गर्मी से भी बचा जा सकता है। आम आदमी रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा करता है। बेहतर विकल्प होने के बावजूद आदत की वजह से प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल आदतन हम करते रहते हैं। गौरतलब है प्लास्टिक की थैलियां वायु प्रदूषण बढ़ाने की प्रमुख वजह हैं। ये थैलियां नदी, नाले और समुद्र में पहुंच कर उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए भी मौत का कारण बनती हैं। इसलिए प्लास्टिक की थैलियों से छुटकारा पाना जरूरी है। और सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर हम वायु प्रदूषण की समस्या को काफी कुछ कम कर सकते हैं। घरों में सौर पैनल लगाना बिजली का एक बेहतर विकल्प है। वायु प्रदूषण को कम करने में हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हम बाजार से ऐसी चीजों को ही खरीदें जो बार-बार इस्तेमाल कर सकें। इसी तरह धूम्रपान वायु प्रदूषण बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। बीड़ी, सिगरेट और दूसरे तंबाकू के उत्पादों को इस्तेमाल न करें, तो हम वायु प्रदूषण को कम करने में मददगार हो सकते हैं। सबसे कारगर उपाय है, हम खुद जागरूक हों और दूसरों को भी जागरूक करें। इससे वायु प्रदूषण की समस्या से जल्द निजात पाया जा सकता है।