खेती में रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल का आम लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। रासायनिक उर्वरकों के अधिक मात्रा में उपयोग से न सिर्फ फसल प्रभावित होती है बल्कि इससे जमीन की सेहत, इससे पैदा होने वाली फसल को खाने वाले इंसानों और जानवरों की सेहत के साथ ही पर्यावरण पर भी बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है। अनाज और सब्जियों के माध्यम से इस जहर के लोगों के शरीर में पहुंचने के कारण वे तरह-तरह की बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल के कारण देश की 30 फीसदी जमीन बंजर होने के कगार पर है। यूरिया के इस्तेमाल के दुष्प्रभाव के अध्ययन के लिए वर्ष 2004 में सरकार ने सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की स्थापना की थी। उसने भी यूरिया को धरती की सेहत के लिए घातक बताया था। रासायनिक खाद व कीटनाशकों की सहायता से खेती की शुरुआत यूरोप में औद्योगिक क्रांति के साथ हुई थी। इसका मकसद था, कम जमीन पर अधिक पैदावार हासिल करना। बाद में विकासशील देश भी औद्योगीकरण और आधुनिक खेती को विकास का पर्याय मानने लगे. रासायनिक उर्वरकों की खपत बढ़ने से जहां एक ओर लागत बढ़ी वहीं दूसरी ओर उत्पादकता में गिरावट आने के कारण किसानों के लाभ में भी कमी आई। यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल ने नाइट्रोजन चक्र को भी बुरी तरह प्रभावित किया हैं नाइट्रोजन चक्र बिगड़ने का दुष्परिणाम केवल मिट्टी-पानी तक सीमित नहीं रहा है। नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में यह एक ग्रीनहाउस गैस भी है और वैश्विक जलवायु परिवर्तन में इसका बड़ा योगदान है। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1950-51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करते थे। यह अब कई गुणा बढ़कर 335 लाख टन हो गया है। इसमें 75 लाख टन विदेशों से आयात किया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल से पैदावार तो बढ़ी है, लेकिन साथ ही खेत, खेती और पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल में कटौती नहीं की गई तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा। खाद्यान्नों की पैदावार में वृद्धि की मौजूदा दर से वर्ष 2025 तक देश की आबादी का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा 253 मीट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ा कर तीन सौ मीट्रिक टन के पार ले जाना होगा। बीते पांच वर्षों के दौरान देश में रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल भी बढ़ा है। वर्ष 2015-16 के दौरान जहां देश में करीब 57 हजार मीट्रिक टन ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया था वहीं अब इस तादाद के बढ़ कर करीब 65 हजार मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है। इस मामले में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश शीर्ष पर हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल होने वाले रासायनिक कीटनाशकों में से करीब 40 फीसदी इन दोनों राज्यों में ही इस्तेमाल किए गए। इस मामले में गोवा और पांडीचेरी जैसे छोटे राज्यों का स्थान सबसे नीचे रहा। इनके अलावा सिक्किम और मेघालय जैसे पूर्वाेत्तर राज्यो को ऑर्गेनिक राज्य का दर्जा मिला। अत्यधिक उर्वरकों का उपयोग एक जटिल समस्या बनता जा रहा है। दरअसल, आम किसानों को ठोस जानकारी नहीं मिल पाती कि इसका कितना उपयोग अधिक फसल लेने व भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिये काफी है। आम किसान पैदावार बढ़ाने के लिये बड़ी मात्रा में यूरिया का उपयोग करते हैं। खासकर नई उच्च नाइट्रोजन वाली गेहूं की किस्मों के लिये। वहीं एनपीके यानी सोडियम, फॉस्फोरस व पोटेशियम उर्वरक की खपत में वृद्धि ने यूरिया पर निर्भरता को और अधिक बढ़ा दिया है। जिससे मिट्टी का क्षरण, कीट जोखिम बढ़ने के साथ ही भूजल प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हो रही है। निर्विवाद रूप से रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है बल्कि कृषि भूमि की दीर्घकालीन उपादेयता को भी कम कर रहा है। उर्वरकों की खपत में तेजी से वृद्धि देश की आर्थिकी पर प्रतिकूल असर डाल रही है। उर्वरकों के आयात पर देश की बढ़ती निर्भरता वित्तीय संकट को भी बढ़ावा दे रही है। देश वार्षिक रूप से करीब 75 लाख टन यूरिया का आयात करता है। यूरिया की बढ़ती वैश्विक कीमतों ने उर्वरक सब्सिडी को 1.75 ट्रिलियन रुपये से अधिक कर दिया है। यदि इस स्थिति पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो बढ़ती उर्वरक मांग अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डालेगी। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सरकार उर्वरक की बिक्री की निगरानी को सशक्त बनाए। सब्सिडी वाली रासायनिक खाद का दुरुपयोग करने वालों के लिये सख्त दंड की व्यवस्था लागू करने की जरूरत है। इसके अलावा किसानों को भी जागरूक करने की जरूरत है कि खेती में खाद का उपयोग कैसे संतुलित ढंग से किया जाना चाहिए। रासायानिक खाद की बिक्री को अनियंत्रित छोड़ देने से न केवल संकट का असर करदाताओं पर बोझ बढ़ाएगा वरन अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बढ़ने की आशंका है। साथ ही बड़ा संकट इस बात का भी कि खेती में अत्यधिक रासायनिक खाद के उपयोग से हमारे पर्यावरण पर भी घातक प्रभाव होगा। जो कालांतर कृषि की स्थिरता को भी संकट में डाल सकता है। अच्छी फसल उत्पादन के लिए उन्नत किस्म के बीज के साथ ही खेत की मिट्टी का भी उपजाऊ होना जरूरी होता है। किसान फसलों की अधिक पैदावार के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं, लेकिन, लगातार रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ रहा है। लगातार रासायनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो रही है, इससे अब कई स्थानों पर बिना रासायनिक उर्वरक के खेती करना संभव भी नहीं हो पा रहा। इससे किसानों को तो नुकसान हो रहा है। साथ ही उपभोक्ताओं की सेहत पर भी इस का असर पड़ रहा है। रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी, पानी और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। रासायनिक उर्वरक किसानों के लिए आकर्षक होते हैं क्योंकि ये जल्दी से पौधों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। हालांकि, इनका अत्यधिक और निरंतर उपयोग कई समस्याओं का कारण बन सकता है। मिट्टी की गुणवत्ता में कमी रासायनिक उर्वरकों का निरंतर उपयोग मिट्टी की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचाता है। मिट्टी की उर्वरक क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। यह उर्वरकों के अधिक उपयोग से होता है, जो मिट्टी में जरूरी सूक्ष्मजीवों की संख्या को कम करता है। इससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता समाप्त हो जाती है। जल स्रोतों का प्रदूषण रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से नदियों, झीलों और अन्य जल स्रोतों में अत्यधिक नाइट्रेट्स और फॉस्फेट्स की मात्रा बढ़ जाती है। इन तत्वों का अत्यधिक स्तर जल स्रोतों को प्रदूषित करता है। इन उर्वरकों के सेवन से कई बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है जैसे कैंसर, रक्तचाप, और अन्य पुरानी बीमारियां। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से खाद्य सामग्री में इन रसायनों का अवशेष रह सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर सवाल उठते हैं। रासायनिक उर्वरकों का पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। ये उर्वरक बायोडायवर्सिटी को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार के पौधे और जानवरों के लिए पर्यावरण असहनीय हो जाता है। जब रासायनिक उर्वरक खेतों से बहकर नदी और तालाबों में पहुंचते हैं, तो यह जल जीवन को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।