ऊर्जा निगम मस्त, उपभोक्ता त्रस्त

देहरादून। मुख्यमंत्री के नियंत्रणाधीन ऊर्जा विभागों की स्थिति कितनी ख़राब है इसका अंदाजा निगमों में बरसों से ख़ाली पड़े पदों से लगाया जा सकता है। एक ओर विभाग नयी नयी परियोजनाएँ ला रहा है और अधिकारी स्वीकृत से भी कम कार्यरत हैं। एक ओर शासन शिथिलीकरण की पालिसी के तहत पदोन्ति के लिये कह रहा है, वहीं विभाग की निष्क्रियता का खामियाजा उत्तराखण्ड की आम जानता को भुगतना पड़ रहा है।
ऊर्जा विभाग के इस यूपीसीएल की स्थिति तो इतनी ख़राब है कि अधिशासी अभियंता के स्वीकृत 93 पदों में से 35 पद 2018 से ख़ाली हैं, यानी लगभग 38 प्रतिशत अधिशासी अभियंता स्वीकृत से कम कार्यरत हैं। परंतु यूपीसीएल प्रबंधन और शासन के कान पर जूं तक नहीं रैंग रही, बस यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि पदोन्नति का मसला उच्च न्यायालय में लंबित है, इसीलिए शेष अधिकारियों को दोहरा चार्ज दे कर कार्य करा रहे हैं। और ग़ौर करने की बात यह है कि उच्च न्यायालय में यूपीसीएल द्वारा वाद पर खर्च किया जा रहा पैसा, उपभोक्ता से टैरिफ के माध्यम से वसूला जा रहा है। आलम यह है कि जसपुर के अधिशासी अभियंता को नारायणबगढ़, बाजपुर वाले को काशीपुर, सितारगंज वाले को खटीमा, गैरसैंण वाले को रुद्रप्रयाग, देहरादून ग्रामीण वाले को श्रीनगर टेस्ट व अन्य को वितरण खंड के दोहरे कार्यभार साैंपे गये हैं, और यह सब महत्वपूर्ण खंड चारधाम यात्रा, प्रधानमंत्री जी का हृदय से जुड़ा धार्मिक स्थल केदारनाथ एवं यूपीसीएल के मुख्य राजस्व के संग्रह तो हैं ही बल्कि पहाड़ी दुर्गम क्षेत्र के साथ साथ मुख्यमंत्री के अपने चुनावी क्षेत्र एवं घर के क्षेत्र का हाल है। आम जगह तो क्या स्थिति होगी इसका अंदाज़ा लगाया जा एकता है। स्वाभाविक है जब इतने अलग अलग और इतने दूरस्त कार्यभार होंगे तो अधिकारी एक कार्यालय में कब मिलेगा कब नहीं यह आम व्यक्ति के लिए जान पाना असंभव है और विभाग के अन्य कर्मियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, जिसके चलते आम जानता को बिजली विभाग के कितने चक्कर लगाने पड़ रहे होंगे, यह सोच कर दुख होता है। मजे की बात यह है की यूपीसीएल एक और नये मण्डल बना रहा है, जिसका तर्क उपभोक्ताओं को सेवा देना बताया जा रहा है। वाह रे वाह ऊर्जा विभाग। मुख्यमंत्री जी घर बैठे सेवा देने की बात कर थे और यहाँ लोग चक्कर लगा लगा कर दुखी हैं। मुख्यमंत्री जी आम जानता की गुहार सुनो और इसका निराकरण कराओ।

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