खेती की सेहत सुधारने की कोशिश, किसानों के लिए उर्वरक की पहचान जरूरी

रमेश कुमार दुबे। सरकार ने पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना भी शुरू की है। इसमें उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब तक 21 उर्वरकों को एनबीएस योजना के दायरे में लाया जा चुका है। मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए मोदी सरकार फसल विविधीकरण पर जोर दे रही है। इसके तहत सरकार ने दलहनी-तिलहनी फसलों और मोटे अनाजों के समर्थन मूल्य में भरपूर बढ़ोतरी की है।
विश्व की ढाई प्रतिशत जमीन पर दुनिया की 17.8 प्रतिशत जनसंख्या का पेट भरना निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण कार्य है। अब तक देश के किसान इस चुनौती पर खरे उतरे हैं, लेकिन मिट्टी की उर्वरता में ह्रास की दर को देखें तो भविष्य की राह आसान नहीं है। बेजान होती मिट्टी का ही नतीजा है कि बुजुर्ग यह शिकायत करते रहते हैं कि आखिर अनाज इतने बेस्वाद कैसे होते जा रहे हैं?
पहले किसान एक साथ कई फसलें बोते थे और एक ही फसल की सैकड़ों किस्में मौजूद थी। दरअसल हरित क्रांति के दौर में क्षेत्र विशेष की पारिस्थितिकी दशाओं की उपेक्षा कर फसलें ऊपर से थोपी गईं। जैसे दक्षिण भारत में गेहूं और पंजाब में धान की खेती। किसान उन्हीं फसलों की खेती करने लगे, जिनका बाजार में अच्छा मूल्य मिलता हो। इससे दलहनी, तिलहनी फसलें अनुर्वर और सीमांत भूमियों पर धकेल दी गईं।
इस प्रकार फसल चक्र थमा, जिससे मिट्टी की उर्वरता, नमी, भुरभुरेपन में कमी आनी शुरू हुई। इसकी भरपाई के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ा और हरी खाद, कंपोस्ट आदि भुला दिए गए। रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से शुरू में तो उत्पादकता बढ़ी, लेकिन आगे चलकर उसमें गिरावट आने लगी। उदाहरण के लिए 1960 में एक किलो रासायनिक खाद डालने पर उपज में 25 किलो की बढ़ोतरी होती थी, जो कि 1975 में 15 किलो और 2014 में चार किलो ही रह गई।
मिट्टी के महत्व का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जिस मिट्टी की दो सेंटीमीटर मोटी परत बनने में 500 साल लग जाते हैं, वह महज कुछ ही सेकेंडों में नष्ट हो जाती है। अब तक देश की 9.60 लाख हेक्टेयर भूमि नष्ट हो चुकी है। हर साल 5.3 अरब टन मिट्टी की ऊपरी परत जल कटाव से नष्ट हो रही है।
दशकों की उपेक्षा के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मिट्टी की सेहत की सुध लेते हुए 19 फरवरी 2015 को राजस्थान के सूरतगढ़ में स्वस्थ धरा-खेत हरा थीम के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की। इस योजना के तहत साल में दो बार मिट्टी के नमूने लिए जाते हैं अर्थात रबी और खरीफ फसल की कटाई के बाद या जब खेत में कोई फसल न लगी हो। मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिट्टी में मौजूद 12 तत्वों की मात्रा दिखाता है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड तैयार होने के बाद कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि सखी आदि किसानों को सुझाव देते हैं कि किस मिट्टी में किस उर्वरक का प्रयोग किया जाए। इससे रासायनिक उर्वरकों के अनावश्यक और असंतुलित इस्तेमाल में कमी आई है। गुजरात में मृदा स्वास्थ्य कार्ड को मिली सफलता को देखते हुए ही प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने इसे पूरे देश में लागू किया।
इस योजना के एक दशक पूरा होने तक देश में 24.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं। देश भर में 8,272 मृदा परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की गईं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल सभी प्रमुख भाषाओं में कार्ड की सुविधा प्रदान करता है। केंद्र सरकार के इस अनूठे कार्यक्रम के तहत केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और एकलव्य माडल स्कूलों को शामिल किया गया है।
2024 तक 1,020 स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम को क्रियान्वित कर रहे हैं। इन स्कूलों में 1,000 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का 2022-23 से मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता नाम से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में एक घटक के रूप में विलय कर दिया गया है। सरकार ने जून 2023 में ग्राम स्तरीय मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं (वीएलएसटीएल) के लिए दिशानिर्देश जारी किए।
वीएलएसटीएल की स्थापना ग्रामीण युवाओं और समुदाय आधारित उद्यमियों द्वारा की जा सकती है, जिसमें स्वयं सहायता समूह, स्कूल, कृषि विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं। फरवरी 2025 तक 17 राज्यों में 665 ग्राम स्तरीय मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी हैं। 2023 में सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल को भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआइएस) के साथ एकीकृत कर दिया, ताकि सभी परीक्षण परिणामों को मानचित्र पर देखा जा सके।
सरकार ने पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना भी शुरू की है। इसमें उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब तक 21 उर्वरकों को एनबीएस योजना के दायरे में लाया जा चुका है। मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए मोदी सरकार फसल विविधीकरण पर जोर दे रही है। इसके तहत सरकार ने दलहनी-तिलहनी फसलों और मोटे अनाजों के समर्थन मूल्य में भरपूर बढ़ोतरी की है। इससे इन उपजों की सरकारी खरीद में अपेक्षित सुधार आया है।
इसी को देखते हुए अब सरकार दलहनी-तिलहनी और मोटे अनाजों की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद-भंडारण-विपणन का देशव्यापी नेटवर्क बना रही है। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि अनाजों के केंद्रीकृत भंडारण पर होने वाला भारी भरकम खर्च भी घटेगा।
इसके लिए सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी भंडारण योजना शुरू की गई है, जिसके तहत प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) के स्तर पर गोदामों का निर्माण किया जा रहा है। इन गोदामों में स्थानीय उपज को भंडारित कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित किया जाएगा। विरोधी भले ही पीएम मोदी पर आरोप लगाएं, लेकिन सच्चाई यही है कि आजादी के बाद वह पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने बंजर होती जमीन की सुध ली।