कर्म करें किस्मत बने, जीवन का यह मर्म, प्राणी तेरे हाथ में, तेरा अपना कर्म

आचार्य जयानंद सेमवाल। जन्म से ही मनुष्य का नाता प्रकृति से जुड़ जाता है। इसी कारण प्रकृति की आराधना तथा पर्यावरण का संरक्षण करना हमारा पुरातन भारतीय चिंतन है। प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की भावना से युक्त जीवन व्यतीत करने वाले वैदिक ऋषियों ने प्राकृतिक शक्तियों-वसुंधरा, सूर्य, वायु, जल आदि की भावपूर्ण स्तुति की है। मनुष्य तथा उसके पर्यावरण दोनों परस्पर एक-दूसरे से इतने संबंधित हैं कि उन्हें अलग करना कठिन है। एक प्रकार से मनुष्य प्राकृतिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक है। ऋग्वेद चारों वेदों में सबसे प्राचीन है, जिसमें सबसे अधिक मनुष्य तथा उसके पर्यावरण को महत्व दिया गया है। पौधे और वन और जिव जंतु मनुष्य के जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।