देहरादून। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (भा.वा.अ.शि.प.), देहरादून, एवं उसके अन्तर्गत नौ संस्थान सक्रिय रूप से वानिकी वृक्ष प्रजातियों के सुधार में लगे हैं जिससे उद्योगों द्वारा घरेलू खपत की मांग को पूरा किया जा सके तथा वानिकी वृक्ष प्रजातियों की उपज, गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार किया जाए।अपने निरंतर प्रयास में भा.वा.अ.शि.प. के चार संस्थानों . वन अनुसंधान संस्थान (एफ.आर.आई.) देहरादून, वन आनुवंशिकी और वृक्ष प्रजनन संस्थान (आइ.र्एफ.जी.टी.बी.) कोयंबटूर, वन उत्पादकता संस्थान (आई.एफ.पी.) रांची और शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (ए.एफ.आर.आइ.र्) जोधपुर महत्वपूर्ण वानिकी प्रजातियों के क्लोन जैसे कि अजादिरचता इंडिका (नीम), कैलोफिलम इनोफिलम, यूकेलिप्टस हाइब्रिड, डालबर्जिया सिसो और पॉपुलस डेल्टोइड्स विकसित किए गए हैं।
सुभाष चंद्रा, वन महानिदेशक और विशेष सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली की अध्यक्षता में भा.वा.अ.शि.प. की वैराइटी रिलीजिंग कमेटी (वी.आर.सी) की बैठक में 22 क्लोनों को जारी करने की मंजूरी दी गई। वन अनुसंधान संस्थान देहरादून द्वारा व्यावसायिक खेती के लिए नीम के छह क्लोन विकसित किए हैं, ये क्लोन आधार आबादी की तुलना में औसतन दो गुने तेल और अजिदरिक्टन का उत्पादन कर सकते हैं। वन आनुवंशिकी और वृक्ष प्रजनन संस्थान कोयंबटूर द्वारा तीन अलग-अलग प्रजातियों जैसे यूकेलिप्टस टेरिटिकोर्निस, ई. कैमलडुलेंसिस और ई. ग्रैंडिस से इंटरस्पेसिफिक हाइब्रिड पर काम किया था और उच्च उपज वाले यूकेलिप्टस हाइब्रिड के दो क्लोन विकसित किए गए । जिसकी उत्पादक क्षमता (आइ.र्एफ.जी.टी.बी.) कोयंबटूर के सर्वश्रेष्ठ क्लोन की तुलना में 10 प्रतिषत अधिक है। फल और तेल सामग्री के लिए मूल्यवान कैलोफिलम इनोफिलम के छह क्लोन भी दक्षिणी राज्यों में व्यावसायिक खेती के लिए वन आनुवंशिकी और वृक्ष प्रजनन संस्थान कोयंबटूर द्वारा विकसित किए गए हैं जो साधारण बीज स्त्रोत से रोपित पौधों की तुलना में 6 वर्ष के बाद औसतन 6 किलो फल उपज प्रति पेड़ दे सकते है। इसी तरह, गुजरात के लिए शुष्क वन अनुसंधान संस्थान जोधपुर द्वारा उच्च लकड़ी की उपज देने वाले डालबर्जिया सिसो के तीन क्लोन विकसित किए गए हैं। इन डालबर्जिया सिसो क्लोनों से कुल लकड़ी की अपेक्षित उपज 25 वर्षों में 284.0 घन मीटरध्हेक्टेयर है, जिससे 25 वर्ष में 29.40 लाखध्हेक्टेयर की कुल आय व्यापारिक लॉग के मामले में उत्पन्न की जा सकती है। डालबर्जिया सिसो क्लोन की छोटी लकड़ी और ईंधन की लकड़ी से अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। बिहार में पोपलर की गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री की मांग को पूरा करने के लिए, वन उत्पादकता संस्थान (आईएफपी) रांची द्वारा पॉपलर क्लोनल विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था जिसके तहत वन उत्पादकता संस्थान (आईएफपी) रांची द्वारा उच्च उत्पादकता और कम रोटेशन अवधि वाले पांच क्लोन विकसित किए गए हैं। इन पोपलर क्लोनां की उत्पादकता 36.72 से 43.11उ3 हेक्टेयर प्रति वर्ष है जो 3.21 से 3.77 लाख उ3ध् हेक्टेयर प्रति वर्ष तक की आय दे सकते हैं। ये पोपलर क्लोन वर्तमन में उपयोग किये जा रहे औधोगिक क्लोन से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।बैठक में ए. एस. रावत, महानिदेशक, भा.वा.अ.शि.प. और वी.आर.सी के सह-अध्यक्ष, एस.डी. शर्मा, सदस्य सचिव, वीआरसी, विषय विशेषज्ञ डॉ. संजीव ठाकुर, डॉ. बी.एस त्यागी, वैद्यनाथन हरिहरन, डी. एन. पाण्डेय, पीसीसीएफ और एचओेएफएफ राजस्थान और के. पी. दुब,े पीसीसीएफ (आर और टी) उत्तर प्रदेश, भा.वा.अ.शि.प. संस्थानों के निदेशक जो कि आर.वी.टी.सी के अध्यक्ष भी हैं, विकसित क्लोनों के प्रधान अन्वेषकों के साथ उपस्थित रहे।