देहरादून। देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला प्रेम, सद्भाव और आस्था का प्रतीक है। झंडा मेला हर साल होली के पांचवें दिन शुरू होता है और इसमें देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस साल झंडा मेला 19 मार्च से शुरू होने जा रहा है। इस बार नए ध्वजदंड के साथ झंडेजी का आरोहण होगा। मेले की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। ध्वजदंड पर गिलाफ चढ़ाने की प्रक्रिया और पूजा के बाद शाम तकरीबन पांच बजे दरबार साहिब के सज्जादानशीन देवेन्द्र दास महाराज के सानिध्य में झंडेजी का आरोहण होगा। झंडा मेले के लिए दरबार साहिब में तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। श्री गुरु राम राय दरबार साहिब में हर वर्ष होली के पांचवें दिन झंडेजी के आरोहरण के साथ ऐतिहासिक मेला शुरू हो जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में देश विदेश की संगत पहुंचती हैं। मेले की तैयारियों और संगत के ठहरने की व्यवस्था को लेकर मेला प्रबंधन समिति तैयारियों में जुट गई है।
झंडा मेले का इतिहास देहरादून के अस्तित्व से जुड़ा है। सिखों के सातवें गुरु हरराय महाराज के बड़े पुत्र गुरु रामराय महाराज ने वर्ष 1675 में चैत्र मास कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन देहरादून में पदार्पण किया था। इसके ठीक एक वर्ष बाद 1676 में इसी दिन उनके सम्मान में उत्सव मनाया जाने लगा और यहीं से झंडेजी मेले की शुरूआत हुई। यह मेला दूनघाटी का वार्षिक समारोह बन गया। तब देहरादून छोटा-सा गांव हुआ करता था। यहां मेले में देशभर से श्रद्धालु पहुंचते थे, और इतने लोगों के लिए भोजन का इंतजाम करना आसान नहीं था। तब श्री गुरु रामराय महाराज ने दरबार में सांझा चूल्हे की स्थापना की। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकी दरबार साहिब में कदम रखने वाला कोई भी व्यक्ति भूखा न लौटे।
पंजाब में जन्मे गुरु रामराय महाराज में बचपन से ही अलौकिक शक्तियां थीं। उन्होंने कम उम्र में ही असीम ज्ञान अर्जित कर लिया था। उन्हें मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू पीर यानी महाराज की उपाधि दी थी। गुरु रामराय महाराज ने छोटी उम्र में वैराग्य धारण किया और संगतों के साथ भ्रमण पर निकल पड़े। भ्रमण के समय ही वह देहरादून पहुंचे। बताते हैं कि यहां खुड़बुड़ा के पास गुरु रामराय महाराज के घोड़े का पैर जमीन में धंस गया। तब उन्होंने संगत को यहीं पर रुकने का आदेश दिया। उस समय औरंगजेब ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह को गुरु रामराय महाराज का ख्याल रखने का आदेश दिया था। तत्कालिक मुगल शासक ने उन्हें महाराज की उपाधि दी थी। महाराज के डेरा डालने के कारण ही इस शहर का नाम देहरादून पड़ा। तब गुरु रामराय महाराज जी ने चारों दिशाओं में तीर चलाए और जहां तक तीर गए, उतनी जमीन पर अपनी संगत को ठहरने का हुक्म दे दिया।
गुरु रामराय महाराज के यहां डेरा डालाने के कारण इसे डेरादून कहा जाने लगा, जो बाद में डेरादून से देहरादून हो गया। धीरे-धीरे झंडेजी की ख्याति दुनियाभर में फैलने लगी। हर दिन झंडेजी के दर्शनों को भीड़ पहुंचने लगी और श्रद्धालुओं के खाने की व्यवस्था के लिए दरबार साहिब के आंगन में सांझा चूल्हा चलाया गया। आज भी यहां हर दिन हजारों लोग एक ही छत के नीचे भोजन ग्रहण करते हैं।
गुरु महाराज ने श्री दरबार साहिब में लोक कल्याण के लिए एक विशाल झंडा देहरादून के बीच में लगाकर लोगों को इसी ध्वज से आशीर्वाद प्राप्त करने का संदेश दिया। इसके साथ ही श्री झंडा साहिब के दर्शन की परंपरा शुरू हो गई। श्री गुरु राम राय महाराज को देहरादून का संस्थापक कहा जाता है। श्री गुरु राम राय महाराज सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका जन्म होली के पांचवे दिन वर्ष 1646 को पंजाब के जिला होशियारपुर (अब रोपड़) के कीरतपुर में हुआ था।