देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सगंध पौधों की खेती से किसानों की किस्मत बदल सकती है। सगंध पौधों की खेती से किसानों को ज्यादा मुनाफा मिलता है। सगंध पौधों की खेती के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। इन पौधों को बंजर जमीन में भी आसानी से उगाया जा सकता है। इनसे तैयार तेल को बिक्री के लिए आसानी से ले जाया जा सकता है। इन पौधों से तैयार तेल का इस्तेमाल औषधि और सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। अभी उत्तराखंड में चमोली, अल्मोड़ा, चंपावत, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर, हरिद्वार, पौड़ी आदि जिलों में ही कुछ क्षेत्रों में सगंध खेती हो रही है। इस खेती को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।
उत्तराखंड में लगभग 7,652 हेक्टेयर क्षेत्र में सगंध खेती हो रही है, जिससे करीब 21009 किसान जुड़े हैं। दरअसल, सगंध खेती की फसलें ऐसी हैं, जिन्हें बंजर भूमि में भी आसानी से उगाया जा सकता है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में खेती सिंचाई साधनों के अभाव में पूर्ण रूप से बारिश पर निर्भर है। ऐसे में यहां सगंध खेती को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। सगंध खेती को जंगली जानवरों द्वारा नुकसान भी नहीं पहुंचाया जाता है। सगंध खेती में लैमनग्रास, डमस्क रोज़, कैमोमाइल, जिरेनियम जैसे पौधों की खेती शामिल है।
सगंध पौधों के उत्पादों की आज मार्केट में भारी डिमांड है और सरकार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों को बायबैक की गारंटी प्रदान कर रही है। उत्तराखंड में उत्पादित होने वाले सगंध पौंधों के उत्पादों की भारी मांग देश में ही नहीं अपितु विदेश में भी है। उत्तराखंड में उत्पादित होने वाले गुलाब जल का निर्यात भारी मात्रा में विदेशों में ही होता है। उत्तराखंड में सगंध पौंधों के उत्पादों का व्यापार लगभग 80 से 90 करोड़ के बीच में है। आने वाले वर्षों में उत्तराखंड के सुगन्धित उत्पादों का व्यापार और अधिक बढ़ने की संभावना है उम्मीद की जा रही है कि उत्तराखंड के सुगन्धित उत्पादों की मार्केट भी उत्तराखंड की जीडीपी को डबल करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा।
सगंध पौधों की खेती में किसानों की लागत कम आती है और मुनाफा अधिक होता है। यही वजह से है कि आज उत्तराखंड के किसानों का रुझान सगंध पौधों की खेती की तरफ बढ़ रहा है। सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स (कैप) के माध्यम से सगंध पौधों के कृषिकरण, प्रसंस्करण एवं विपरण हेतु अनेक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही है। भूमि का सर्वेक्षण, प्रजाति चयन से लेकर कृषकों को प्रशिक्षण तक की व्यवस्था की गई है। चयनित प्रजातियों के कृषिकरण लागत पर किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है। सगंध पौधों के प्रसंस्करण के लिए आवश्यक यंत्रों एवं उपकरणों की खरीद पर 10 लाख तक के व्यय पर पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों में क्रमशः 75 प्रतिशत एवं 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाता है।
उत्तराखंड में लैमनग्रास, डमस्क रोज, कैमोमाइल और जिरेनियम जैसे पौधों की खेती बढ़ रही है। डमस्क गुलाब का एशेंशियल ऑयल अपनी ऊंची कीमत की वजह से सुर्खियों में है, जिसकी बाजार में कीमत लगभग ₹12 लाख प्रति लीटर है। इसकी खेती कर किसान मालामाल बन सकते हैं। इसके अलावा लैवेंडर ऑयल, टी ट्री ऑयल, पेपरमिंट ऑयल और यूकेलिप्टस ऑयल की बाजार में भारी मांग है। यह सिर्फ खेती नहीं, बल्कि एक पूरा बिजनेस मॉडल है। परंपरागत खेती के मुकाबले सुगंधित पौधों की खेती किसानों को कहीं अधिक मुनाफा दे सकती है। उत्तराखंड की जलवायु और मिट्टी इन पौधों के लिए अनुकूल है, जिससे यहां के किसान यह खेती आसानी से कर सकता है।
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