ब्रह्मज्ञान प्रदाता पूर्ण सद्गुरू ही चौरासी के चक्र से मुक्ति के दाता : साध्वी अदिति भारती

देहरादून। पंचम दिवस में व्यास पीठ पर आसीन सद्गुरू आशुतोष महाराज की शिष्या भागवताचार्या साध्वी विदुषी अदिति भारती ने बताया कि संसार के समस्त संबंधों में श्रेष्ठ संबंध गुरू और शिष्य का हुआ करता है। शास्त्रों में पूर्ण गुरू की सर्वश्रेष्ठ महिमा को गाते हुए ही कहा गया। गुरूर ब्रह्मा गुरूर विष्णु गुरूर देवो महेश्वरः, गुरूर साक्षात् परब्रह्म् तस्मै श्री गुरूवे नमः। ब्रह्म्ज्ञान रूपी परमविद्या के प्रदाता परमगुरू ही महासरस्वती स्वरूप बताए गए हैं। ब्रह्म्ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ विद्या है जिसे जान लेने के बाद फिर कुछ भी जानना शेष नहीं बचता है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ हर दिन की भांति महामाई के गुणगान करते हुए अनेक सुन्दरतम भजनों के गायन से किया गया। मंचासीन संगीतज्ञों ने अनेक कर्णप्रिय भजन गाकर उपस्थित भक्तजनों को झूमने और साथ में गाने पर विवश कर दिया। 1- जय-जय राधा रमण हरि बोल…….., 2- चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है………., 3- मेरी मइया का द्वारा, लगे सबको प्यारा, सारे जग तौं न्यारा…….. इत्यादि भजनों से खूब समां बांधा गया।
साध्वी विदुषी रूचिका भारती जी ने सार संक्षेप प्रस्तुत करते हुए भजनों की सटीक मिमांसा भी की। आज के कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथिगणों के रूप में शिरकत करते हुए इन महानुभावों ने दीप प्रज्जवलित कर कथा में योगदान किया। अशोक कुमार लाम्बा जी, प्रधान भवन श्री कालिका माता मंदिर, देहरादून, भारत भूषण शर्मा, समिति मंत्री, श्री मिनोचा ट्रस्टी, विरेन्द्र चैधरी टरनर रोड, बी.डी. सेमवाल खुड़बुड़ा, राजेश सेठी तिलक रोड, राजेन्द्र गोयल, रेसकोर्स और अनिल वर्मा उपस्थित हुए।
अपने उद्बोधन में कथा व्यास जी ने आगे बताया कि शास्त्रों में दो प्रकार की विद्या का वर्णन आता है। एक परा विद्या और दूसरी अपरा विद्या। माँ सरस्वती इन दोनों ही विद्याओं की प्रदायिनी हैं, परन्तु इस संसरिक विद्या अपरा विद्या को बताते हुए इसे संसार की अविद्या कहा है साथ ही पराविद्या ‘ब्रह्म्ज्ञान’ को ही वास्तविक विद्या बताया गया है क्योंकि ब्रह्म्ज्ञान रूपी यह परा विद्या ही मानव को उसके कर्मबन्धनों से मुक्त कर श्रेष्ठ पथ पर अग्रसर करती है। साध्वी जी ने आज श्रद्धालुओं को माँ के ब्रह्म्ज्ञान प्रदायिनी माँ सरस्वती के लीला प्रसंग से अवगत कराया। माँ सद्गुरू का रूप धारण कर अपनी संतानों को आवागमन के चक्र से मुक्त करने के लिए उन्हें ब्रह्म्ज्ञान प्रदान करती हैं तथा जीवन की उत्कृष्ट दिव्य यात्रा पर उनका मार्ग प्रशस्त किया करती हैं।
कथा व्यास जी ने स्वामी विवेकानन्द और श्री रामकृष्ण परमहंस, द्रौपदी और भगवान श्री कृष्ण, योगानन्द परमहंस तथा श्री युक्तेश्वर गिरी आदि गुरू-शिष्य जोड़ियों का उदाहरण देते हुए कहा कि इस संसार में श्रेष्ठता के प्रदाता पूर्ण सद्गुरू हुआ करते हैं। गुरू-शिष्य का संबंध अद्वितीय है।
माता सरस्वती की शिष्या लीला जी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए साध्वी जी ने मृत्यु के रहस्य को भी सद्ग्रन्थों और एैतिहासिक केस-स्टडीज के माध्यम से रेखांकित करते हुए बताया कि मृत्यु के भय से मुक्ति की युक्ति है ब्रह्म्ज्ञान आधारित ध्यान-साधना। उन्होंने कहा कि दिव्य गुरू श्री आशुतोष महाराज जी बताते हैं कि मात्र आंखे बन्द कर बैठ जाना ही ध्यान नहीं है अपितु तृतीय नेत्र के खुल जाने के बाद ही वास्तव में ध्यान शुरू होता है।
विद्या की प्रदायिनी माँ सरस्वती की कृपाओं से भक्तजनों को अवगत कराते हुए कथा व्यास जी  ने श्री गुरू चरणों में शरणागति की प्रेरणा प्रदान की। रासेश्वरी, परम प्रेम स्वरूप श्री राधा जी के श्रीकृष्ण प्रेम का दिव्य आख्यान भी उन्होंने सुमधुर वाणी में प्रस्तुत किया। इस पंचम दिवस की कथा के समापन से पूर्व सरस बसंत पंचमी उत्सव को समस्त भक्त श्रद्धालुगणों के साथ हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। यह सुन्दर उत्सव भक्तजनों को अभिभूत कर गया और वे मंच के निकट आकर भावपूर्ण नृत्य करने लगे। चंहु और दिव्यता का वातावरण व्याप्त हो गया। विदित हो कथा कार्यक्रम का डी-लाइव प्रसारण 12 से 18 अप्रैल सुबह 10 से 01 बजे तथा सांय 07 से 10 बजे तक संस्थान के यूट्यूब चैनल पर भी किया जाएगा।
कार्यक्रम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के अनेक सामाजिक प्रकल्पों को प्रदर्शित करती हुई सचित्र प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया था, जिसमें पर्यावरण रक्षा पर आधारित प्रदर्शनी भक्तजनों के मध्य काफी चर्चा का विषय बनी रही। रात्रि 08 बजे मंगल आरती के पश्चात प्रसाद का वितरण करके पंचम दिवस की कथा को विराम दिया गया।

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