जैविक वैविध्य, प्राकृतिक वैविध्य और वातावरण के वैविध्य जैसे बेहतर नैसर्गिक तत्त्व इकठ्ठा होकर महाराष्ट्र के जंगल और अभयारण्य बने है| महाराष्ट्र राज्य में कई तरह के वन्य जीव और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं, इसीलिए यहाँ दुनियाके बड़े जैव विविधता हॉटस्पॉट, वन्यजीव अभयारण्य, निसर्ग उद्यान और पक्षी अभयारण्य हैं जिन्हे देखने भारत और दुनियाभरसे निसर्गप्रेमी और वन्यजीव प्रशंसक बड़ी तादात में आते हैं| महाराष्ट्र में ४९ वन्यजीव अभयारण्य और ६ राष्ट्रीय उद्यान है | उनमें से कुछ कम जाने-माने/ मशहूर लेकिन अधिकतम सुन्दर अभयारण्य और आरक्षित जंगलों की चर्चा इस लेख के जरिये करते है |
ताडोबा अंधारी व्याघ्र प्रकल्प, चंद्रपुर
‘ताडोबा का रत्न’ इस नाम से प्रसिद्ध, यह भारत का काफी मशहूर बाघोँका आरक्षित बन है | भारत सरकार के बाघ संवर्धन प्रकल्प के जरिये संवर्धित किये गए इस जंगल में भारत के सबसे ज्यादा यानी ६९ बाघ है | ताडोबा निसर्ग उद्यान महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में है | वन्यजीव प्रेमी और निसर्गप्रेमियों को यह जगह काफी अच्छी लगेगी | यहाँ सफारी करने से वन्यजीवों की विविधता और विशेषता देखने की संधि मिलती है | यहाँ मोहरली, कोलसा और ताडोबा ये तीन ज़ोन जीप सफारी के लिए खुले होते है | हर साल १५ अक्टूबर से ३० जून तक ये उद्यान तथा बन पर्यटकों के लिए खुला रहता है और हर मंगलवार को पूरा दिन बंद रहता है | खुली छत की जिप्सी में जंगल/ टाइगर सफारी करना यहाँ का प्रमुख आकर्षण है | सफारी के समय कोई आलसी भालू या जंगली कुत्ता दिखने का भी संभव होता है |
समय: सुबह १०.०० से शाम ६.०० तक
मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प, अमरावती
व्याघ्र पर्यटन के लिए समर्पित यह महाराष्ट्र की एक और जगह है | १९७३-७४ में संमत हुए पहले ९ व्याघ्र प्रकल्पों मे से एक यह प्रकल्प है | यह वन्यजीव संवर्धन प्रकल्प १९७२ में बंगाली बाघ का संरक्षण करने के हेतु शुरू हुआ था | इस आरक्षित बन का क्षेत्र कुल मिलकर १५००.४९ स्क्वेर किमी इतना बड़ा है| महाराष्ट्र के अन्य वनों की तरह यहाँ भी कई सारी पक्षी प्रजाति दिखाई देती है| ‘जंगली उल्लू’ यह मेलघाट के जंगल में पाया जाने वाली पक्षी प्रजाति नष्ट होने के करीब आ चुकी थी| इस जंगल में जब यह उल्लू पाया गया तब इसके अस्तित्त्व के प्रति वैद्न्यानिकों को हौसला मिला | इस बन को दिसंबर और मे के दरम्यान देखना उचित समझा जाता है |
समय: सुबह ६ से शाम ६ तक
पेंच राष्ट्रीय उद्यान और व्याघ्र आरक्षित क्षेत्र, नागपुर
नागपुर जिले का यह आरक्षित बन २५७ स्क्वेर किमी के विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है| पेंच कई सारे वन्यजीव और वनस्पतियों का घर है | यहाँ सस्तन पशुओं की ३३ प्रजातियाँ, पक्षियों की १६२ प्रजातियाँ, मछलियों की ५० प्रजातियाँ, उभयचारों की १० प्रजातियाँ, सापोंकी ३० प्रजातियों के अलावा अनगिनत कीड़े-मकोड़ोंकी प्रजातियाँ मौजूद हैं | जिन के लिए १९९२ में इसकी स्थापना हुई वे बाघ भी यहाँ बड़ी संख्या में पाए जाते है | पेंच का यह आकर्षक पशुजीवन जुलाई और फरवरी के दरम्यान जाड़े में देखने का अनुभव काफी सुन्दर होता है |
क्लासिक पुस्तक ‘जंगल बुक’ में रुडयार्ड किपलिंग जी ने इसी जंगल का वर्णन किया है |
समय: सुबह ५.३० से सुबह ९.३० और दोपहर ३.०० से शाम ७.०० तक
मौसम के अनुसार पर्यटन का समय बदल सकता है |
रेहेकुरी अभयारण्य, अहमदनगर
२.१७ स्क्वेर किमी के क्षेत्र में फैला हुआ, रेहेकुरी अभयारण्य काफी कम पायी जाने वाली प्राणी प्रजाति चिंकारे का घर है | महाराष्ट्र में इसे ‘कालवित’ नाम से जाना जाता है | गोल आवर्तित सींग, धुप जैसा रंग और दूरतक छलांग लगाने की विशेषताओं के कारन इसे सहज पहचाना जासकता है | यह अभयारण्य अहमदनगर शहर से ८० किमी पर कर्जत तालुके में है | १९८० में इस अभयारण्य का उद्यापन हुआ था और आज यहाँ ४०० से अधिक चिंकारे हैं | यहाँ घूमना, पर्वतारोहण करना या सुबह ७ से ३ के बीच जीप में सफारी करना बहुतही अलग और सुन्दर अनुभव होता है| यहाँ आने के लिए सबसे अच्छा मौसम ऑगस्ट से सितम्बर के दरम्यान का है |
समय: सुबह ८ से शाम ६ तक
राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य, कोल्हापुर
महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट को सह्याद्रि घाट कहते है | इस जगह पे बहुत निराले वन्यजीवों के आवास है तथा वन्यजीव व वनस्पतियों की विविधता पायी जाती है | महाराष्ट्र में ४ नामांकित जागतिक प्राकृतिक विरासत स्थल है; उनमें से एक राधानगरी वन्यजीव अभयारण्य है | यह जगह मानसून तथा अन्य मौसमो में भी घूमने के लिए आदर्श है | राधानगरी अपनी हरियाली, सुंदरता, घनी वादियों के सहित कोल्हापुर के पश्चिम में ८० किमी पर आहे. राधानगरी में पर्वतारोहण करने से इस साहसी क्रीडाप्रकार का अलग अनुभव आता है | यहाँ घूमते हुए जंगली कबूतर, जंगली गवा, निलगिरी वुड-पिजन, सीलोन फ्रॉगमाऊथ, तथा डस्की चील ऐसे अन्यत्र नष्ट होते पशुओं का सहज दर्शन होता है | जंगली गवा यहाँ का मुख्य आकर्षण है | यहाँ ऑगस्ट से फरवरी के दरम्यान काफी संख्या में पर्यटक आते है हालाकि साल में कभी भी यह अभयारण्य देखा जा सकता है |
समय : सुबह ६ से शाम २ तक
भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य, पुणे
इस अभयारण्य का निर्माण असल में बड़ी गिलहरी जिसे महाराष्ट्र में ‘शेकरू’ कहा जाता है और जो महाराष्ट्र का राज्यपशु है, उसकी रक्षा के लिए हुआ था | पुणे और मुंबई में रहने वाले लोगोंकी अब यह पसंदीदा घूमने की जगह बानी है | मुंबई से १०० किमी और पुणे से २२३ किमी की दुरी पर भीमाशंकर स्थित है | यहाँका घना जंगल पश्चिम घाट के १२० स्क्वेर किमी क्षेत्र में फैला है | इस बन में कई स्थानिक और जागतिक स्तर पर नष्ट हो रही कई प्रजातियाँ
यहाँ पायी जाती है जैसे- तेंदुआ, हिरन, जंगली सुवर, मलबार ग्रे हॉर्नबिल, काला गरुड़ और अन्य कईं | विश्व में प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण जैवविविधता हॉटस्पॉट में से एक यह है | इस बन की पगडण्डी पे चलना, पर्वतारोहणकरना ये उपक्रम पर्यटकों के चहिते है और पूरा साल चलते है| पर्वतारोहण के अलावा कार सफारी करने का विकल्प भी उपलब्ध है | १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक भीमाशंकर इसी बन के भीतर बसा है| पर्वतरोहियोंमे काफी प्रचलित यह जगह अक्तूबर से मार्च के बिच उत्कृष्ट मौसम का आनंद देती है|
समय: सुबह ६ से शाम ६ तक
भामरागढ़ वन्यजीव अभयारण्य, चंद्रपुर
भामरागढ़ में कई सारे वन्यजीव जैसे- तेंदुआ, नीलगाय, मोर, उड़ती गिलहरी, जंगली भालू आदि पाए जाते है | महाराष्ट्र के मुख्य शहरोंसे नजदीक होने के कारन यह पर्यटकों की चहिती जगह है| १०४.३८ स्क्वेर किमी के क्षेत्र में बसा यह अभयारण्य बहुत घनी हरियालीसे सम्पन्न है| यहाँ कई वनस्पतियाँ जैसे आम, कुसुम बम्बू जैसे वृक्ष और नील, तरोता, कुड जैसी स्थानिक झाड़ी पायी जाती है| पमालगौतम और परलकोटा नामक दो नदियाँ इस बन में से गुजरती है | यहाँके आदिवासी समुदाय गोंड और मादिया इन्ही नदियोंके सहारे जीते है| भामरागढ़ अक्तूबर और मे के बिच बहुत खूबसूरत दिखता है |
समय: सुबह ९ से शाम ६ तक