नई दिल्ली। 23 अगस्त 2023, दिन बुधवार, समय शाम छह बजकर चार मिनट। तिथि और समय के यह आंकड़े 140 करोड़ से अधिक भारतीयों के मन-मस्तिष्क पर सदा-सर्वदा के लिए अंकित हो चुके हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO Mission) के दृढ़ संकल्प और विज्ञानियों के अथक प्रयासों का सुपरिणाम है कि 41 दिन लंबी यात्रा व दिल की धड़कन बढ़ा देने वाली लैंडिंग प्रक्रिया के बाद अंतत: चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan-3 Mission) से भारत चांद पर पहुंचने में सफल रहा। लैंडर (VIKRAM) के सफलतापूर्वक चांद पर उतरने के साथ हम विश्व में ऐसा करने वाले मात्र चौथे देश बन गए हैं, लेकिन इससे भी अधिक गौरवान्वित करने वाला तथ्य यह है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाले हम विश्व के पहले राष्ट्र हैं। भारत वहां पहुंचा है जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंच सका। इसी के साथ करीब चार वर्ष पहले चंद्रयान-2 की असफलता से मिले जख्म भी भर चुके हैं। आइए जानते हैं चांद पर 14 दिन लैंडर और रोवर क्या करेंगे?
ये वे मिशन है जिनमे अंतरिक्ष यान चंद्रमा के पास से गुजरे, लेकिन चंद्रमा की कक्षा में नहीं पहुंचे। ये चंद्रमा का दूर से अध्ययन करने के लिए डिज़ायन किए गए हैं। पलाईबाई मिशन कुछ प्रारंभिक उदाहरण अमेरिका द्वारा लांच किए गए पायनियर 3 और 4 और तत्कालीन यूएसएसआर के लूना 3 है, जो चंद्रमा के पास से गुजर चुके हैं।
इन अंतरिक्ष यानों को चंद्रमा की कक्षा में भेजने और चंद्रमा की सतह और वायुमंडल का लंबे समय तक अध्ययन करने के लिए डिजायन किया गया है। किसी ग्रह का अध्ययन करने के लिए आविंटर्स मिशन सबसे आम तरीका है। अब तक चांद और मंगल पर ही लैंडिंग संभव हो पाई है। अन्य सभी ग्रहों का अध्ययन आर्बिटर्स या फ्लाईबाई मिशनों के माध्यम से किया गया है।
इन मिशनों में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान की लैंडिंग शामिल है। ये आविंटर मिशन की तुलना में अधिक जटिल हैं। चंद्रमा पर पहली लैडिंग 31 जनवरी 1966 को तत्कालीन यूएसएसआर के लूना 9 अंतरिक्ष यान द्वारा पूरी की गई थी। इसने चंद्रमा की सतह से पहली तस्वीर को भी धरती पर भेजा था। भारत के विक्रम लैंडर में ऐसे कई उपकरण लगे हुए हैं जो चांद पर प्लाज्मा, सतह पर भूकंप और इसकी गर्मी और चांद के डायनेमिक्स की स्टडी करेंगे। विक्रम लैंडर का नाम भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम को आगे बढ़ाने वाले महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम ए साराभाई के सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है। चार पैरो वाला विक्रम लैंडर का कुल वजन 1749.86 किलोग्राम का है।
लैंडर विक्रम के अंदर ही प्रज्ञान रोवर को रखा जाता है। लैंडर के चंद्रमा के सतह पर लैंड होने के करीब 15 से 30 मिनट के बाद उसके अंदर से निकलता है। प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर कई वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देगा। रोवर प्रज्ञान का वजन कुल मिलाकर 26 किलोग्राम का है। छह पहिये वाला रोवर चंद्रयान-3 मिशन का हेड यानी कम्युनिकेशन-इन-चीफ है। इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रमा पर की गई खोज को प्रज्ञान ही धरती तक भेजेगा।
ये लैंडर मिशनों का विस्तार है। लैंडर अंतरिक्ष यान भारी होते हैं, पैरों पर खड़े होते हैं और लैंडिंग के बाद स्थिर रहते हैं। इनपर लगे उपकरण अवलोकन कर सकते हैं और डाटा एकत्र कर सकते हैं, लेकिन चंद्रमा की सतह के संपर्क में नहीं आ सकते हैं। रोवर्स को इस कठिनाई को दूर करने के लिए डिजायन किया गया है। रोवर्स चंद्रमा की सतह पर घूम सकते हैं और बहुत उपयोगी जानकारी एकत्र करते हैं जो कि लैंडर के भीतर के उपकरण प्राप्त नहीं कर पाते हैं। चंद्रयान-2 मिशन में रोवर को प्रज्ञान नाम दिया गया है। इस साल की शुरुआत में, एक चीनी लेंडर और रोवर मिशन चंद्रमा पर पहुंचा। ये अभी भी सक्रिय हैं।
इन अभियानों के तहत चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारा जाता है। अभी तक केवल अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ही चंद्रमा पर मानव को उतारने में सफल रहा है। 1969 और 1972 के बीच अब तक आर्मस्ट्रांग सहित कुल 12 अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रख चुके हैं। इसके बाद चंद्रमा पर उतरने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। लेकिन नासा ने अब वर्ष 2024 तक एक और मानवयुक्त मिशन भेजने की योजना की घोषणा की है।
777 total views, 1 views today