भगवान शिव का #सदियों #पुराना #मंदिर #कालेश्वर #महादेव #मंदिर, यहां भगवान शिव ने दिए थे कालुन ऋषि को दर्शन

देहरादून। भगवान शिव का सदियों पुराना मंदिर कालेश्वर महादेव मंदिर लैंसडाउन लोगों के साथ-साथ बहादुर गढ़वाल रेजिमेंट के लिए भक्ति का केंद्र है। लैंसडाउन शहर के पास स्थित, कालेश्वर महादेव का नाम ऋषि कालुन के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने यहां ध्यान किया था। कालुन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर यहां भगवान शिव ने यहां कालुन ऋषि को दर्शन दिए थे और शिवलिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए। कालेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव भक्तों के बीच जाने के लिए पहली और पसंदीदा जगह संतों के लिए ध्यान की भूमि माना जाता था। आगंतुक अभी भी मंदिर के पास कई ऋषियों की समाधि देख सकते हैं।
कालेश्वर महादेव मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। गांव वालों का मानना है कि गांव की गायें इधर चरने आती थीं तो शिवलिंग के पास गुजरने पर वे स्वतः दूध देने लगती थीं। यहां जो लोग श्रद्धा और भक्ति से मन्नत मांगने हैं उनकी मन्नत अवश्य पूरी होती है। बाबा कालेश्वर गांव वालों की अखंड आस्था के केंद्र थे। पांच मई 1887 को गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई और चार नवंबर 1887 को जब रेजीमेंट कालू डांडा पहुंची तो रेजीमेंट को वीरान जंगल के साथ ही एक गुफा में शिवलिंग मिला, जिसे कालेश्वर के नाम से जाना जाता था। आसपास के गांवों का यह ग्राम देवता था व ग्रामीण ही गांव में पूजा-अर्चना करते थे। साल 1901 में पहले गढ़वाल रेजिमेंट ने यहां एक छोटा सा मंदिर और धर्मशाला का निर्माण कराया। साल 1926 में लोगों के सहयोग से यहां विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर में पूजा अर्चना साधु महात्मा करते हैं। मंदिर मंे इंतजाम गढ़वाल रेजिमेंट देखता है। 1995 में मंदिर का पुनर्निर्माण गढ़वाल रेजिमेंट ने करवाया। इसमें भी स्थानीय लोगों का सहयोग मिला। लोग इस इतिहास में भी विश्वास करते हैं कि करीब 5000 साल पहले ऋषि कालून ने चिल्लाने से पहले यहां ध्यान किया था। ऋषि कालुन के बाद लैंसडाउन का नाम कलुदांडा है। वर्तमान में मंदिर की पूजा-अर्चना व देखरेख का कार्य गढ़वाल राइफल्स ही करती है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग पत्थर का है। शिवलिंग उत्तराभिमुखी है और धरातल से करीब ढाई इंच ऊपर है। मान्यता है कि आसपास के गांवों की गायें इस शिवलिंग पर अपने थनों से दूध गिराकर शिवलिंग का दुग्धाभिषक किया करती थी। कोटद्वार से सड़क मार्ग से 40 किमी. दूर पर्यटन नगरी लैंसडौन में यह मंदिर स्थित है। संपूर्ण लैंसडाउन का आकर्षण एवं आस्था का केंद्र यह मंदिर वर्षभर हजारों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह जगह अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ आज भी पौराणिक महत्व को जीवंत रखती है।

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