देहरादून। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि देने के लिए जयदीप मुखर्जी वरिष्ठ अधिवक्ता सर्वाेच्च न्यायालय और महासचिव सर्वाेच्च न्यायालय अखिल भारतीय विधिक सहायता मंच व अखिल भारतीय बार एसोसिएशन एवं सदस्य अंतर्राष्ट्रीय न्याय परिषद द्वारा लिखित पुस्तक चेका, द रोड ऑफ बोन्स का देहरादून में विमोचन किया गया।
पुस्तक में देश के हमारे महान नेता, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय ढंग से लापता होने और उनकी अंतिम नियति के बारे में बताया गया है। लेखक ने यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि बोस 18 अगस्त 1945 के बाद सोवियत संघ (वर्तमान में रूस) में थे और उन्होंने सोवियत संघ के क्षेत्र के अंतर्गत बुलार्क में शरण ली थी और एक निश्चित अवधि के बाद उन्हें साइबेरिया में ओम्स्क शहर की याकुत्स्क जेल में सेल नंबर 56 में सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। राजनयिकों और अन्य शोधकर्मियों ने तत्कालीन सोवियत सेना की क्रूरता को स्थापित करने का प्रयास किया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, बड़ी संख्या में कैदियों (न्यूनतम दो लाख) को विभिन्न शरणालयों और जेलों में रखा गया था और बाद में या तो उन्हें सोवियत सैनिकों और केजीबी द्वारा मार दिया गया था या साइबेरिया में ठंड (-30 डिग्री सेल्सियस) के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। कैदियों के शव को साइबेरिया की ओब नदी के किनारे एक मार्ग में दफनाया गया था और उक्त दफन मार्ग पर एक सड़क का निर्माण किया गया था, जिसे श्हड्डियों की सड़कश् कहा जाता है। लेखक ने यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि दो आयोगों के निष्कर्षों के बाद, अर्थात् सेवानिवृत्त, न्यायमूर्ति श्री मनाज के मुखर्जी आयोग और न्यायमूर्ति सहाय आयोग की रिपोर्ट से यह स्थापित हो चुका है कि बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और रेनकोजी मंदिर की राख नेताजी की राख नहीं है और न्यायमूर्ति सहाय आयोग के निष्कर्षों से यह स्पष्ट हो चुका है कि भिक्षु गुमनामी नेताजी नहीं थे और इसलिए एकमात्र विकल्प शेष रह गया था यानी तत्कालीन सोवियत संघ का अध्याय और अब रूस है और रूस की सरकार हमारे महान नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अंतिम नियति का उत्तर देने के लिए बाध्य होगी।