देहरादून। उत्तराखंड के प्रतिष्ठित ऑल-गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल, वेलहम गर्ल्स स्कूल ने एवरेस्ट बेस कैंप (ईबीसी) तक की एक रोमांचक और चुनौतीपूर्ण चढ़ाई को अंजाम देकर इतिहास रच दिया। यह कैंप समुद्र तल से 17,900 फीट (लगभग 5,364 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है। 20 मई को शुरू हुआ यह साहसिक अभियान सात छात्राओं की एक डायनामिक टीम के साथ, दो शिक्षिकाओं के नेतृत्व में, 3 जून 2025 को सम्पन्न हुआ। यह उत्तराखंड के किसी ऑल-गर्ल्स स्कूल द्वारा इस तरह का पहला ट्रेंडसेटिंग मिशन माना जा रहा है।
इस पावर-पैक्ड टीम में हितिका अग्रवाल, ग्रीवा भलानी, माही सिन्हल, वर्तिका मालानी, कृपा बुद्धराजा, अन्वेषा शर्मा और तमन्ना एंजल बोवेन (कक्षा 9 से 11) शामिल थीं, जिनका नेतृत्व शिक्षिकाओं स्मिता फ्रांसिस और वाणी सिंह ने किया। 14 से 16 साल की इन युवा छात्राओं ने महीनों तक कठिन ट्रेनिंग के साथ अपनी पढ़ाई को बैलेंस किया, जिसने उन्हें इस हाई-स्टेक एडवेंचर के लिए तैयार किया।
वेलहम गर्ल्स स्कूल की प्राचार्या वीभा कपूर ने गर्व के साथ कहा, वेलहम में हमारा मिशन है कि छात्राओं को हर क्षेत्र में चमकने का एक हॉलिस्टिक प्लेटफॉर्म मिले। इस मेगा अभियान की स्केल और इम्पैक्ट को देखते हुए, इसे एक स्ट्रैटेजिक मास्टरप्लान के साथ अंजाम दिया गया। महीनों की कठिन ट्रेनिंग और तैयारी के बाद, मुझे अपनी वेलहम वॉरियर्स पर गर्व है। उन्होंने हर चौलेंज को अटूट जज्बे और दृण प्रतिबद्धता के साथ पार किया।
यह ऐतिहासिक यात्रा काठमांडू पहुंचने के बाद लुक्ला से शुरू हुई और खतरनाक रास्तों से गुजरते हुए 5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंची। इस दौरान टीम ने बारिश, फिजिकल बर्नआउट और अल्टीट्यूड सिकनेस जैसी बाधाओं का सामना किया। बढ़ती ऊंचाई, ऑक्सीजन की कमी और एक्यूट माउंटेन सिकनेस ने बड़ी चुनौती खड़ी की। सात में से तमन्ना एंजल बोवेन को हाई एल्टीट्यूड पल्मोनरी एडिमा (एचएपीई) के शुरुआती लक्षण, जैसे मतली और थकान, दिखाई दिए, जिसके बाद उन्हें स्मिता फ्रांसिस के साथ मिड-वे में हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया।
बावजूद इसके, बाकी छह छात्राओं ने वाणी सिंह के गाइडेंस में अद्भुत साहस और एकजुटता दिखाई और मिशन को आगे बढ़ाया। 23 किलोमीटर की उतराई भी उतनी ही कठिन थी, जिसमें खड़ी चढ़ाई और लुक्ला में मौसम की देरी ने चुनौतियां बढ़ाईं। फिर भी, इन छात्राओं ने हर बाधा को आपसी जुड़ाव और आत्म-चिंतन का अवसर बनाया।
अभियान से पहले, छात्राओं की कठिन चिकित्सकीय जांच की गई ताकि वे ऊंचाई, कम ऑक्सीजन और कठोर मौसम का सामना कर सकें। इसके बाद रणनीतिक व्यायाम, तैराकी, उचित आहार और मसूरी व देहरादून की पहाड़ियों में अभ्यास ट्रेक किए गए। प्रत्येक अभ्यास ट्रेक एक छोटा मिशन था, जो उनकी सहनशक्ति, तकनीक और मानसिक दृढ़ता को मजबूत करता था। अधिकांश छात्राओं के लिए, जो पहली बार ट्रेकिंग कर रही थीं, ये सप्ताहांत की चढ़ाइयां एक सीखने का मैदान और आत्मविश्वास बढ़ाने वाला अनुभव थीं। यह अनुभव उनके लिए सहनशक्ति, टीमवर्क और आत्मविश्वास का एक शक्तिशाली सबक बन गया, जो उनकी स्कूल की यादों में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो गया।
इस पावर-पैक्ड टीम में हितिका अग्रवाल, ग्रीवा भलानी, माही सिन्हल, वर्तिका मालानी, कृपा बुद्धराजा, अन्वेषा शर्मा और तमन्ना एंजल बोवेन (कक्षा 9 से 11) शामिल थीं, जिनका नेतृत्व शिक्षिकाओं स्मिता फ्रांसिस और वाणी सिंह ने किया। 14 से 16 साल की इन युवा छात्राओं ने महीनों तक कठिन ट्रेनिंग के साथ अपनी पढ़ाई को बैलेंस किया, जिसने उन्हें इस हाई-स्टेक एडवेंचर के लिए तैयार किया।
वेलहम गर्ल्स स्कूल की प्राचार्या वीभा कपूर ने गर्व के साथ कहा, वेलहम में हमारा मिशन है कि छात्राओं को हर क्षेत्र में चमकने का एक हॉलिस्टिक प्लेटफॉर्म मिले। इस मेगा अभियान की स्केल और इम्पैक्ट को देखते हुए, इसे एक स्ट्रैटेजिक मास्टरप्लान के साथ अंजाम दिया गया। महीनों की कठिन ट्रेनिंग और तैयारी के बाद, मुझे अपनी वेलहम वॉरियर्स पर गर्व है। उन्होंने हर चौलेंज को अटूट जज्बे और दृण प्रतिबद्धता के साथ पार किया।
यह ऐतिहासिक यात्रा काठमांडू पहुंचने के बाद लुक्ला से शुरू हुई और खतरनाक रास्तों से गुजरते हुए 5,364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंची। इस दौरान टीम ने बारिश, फिजिकल बर्नआउट और अल्टीट्यूड सिकनेस जैसी बाधाओं का सामना किया। बढ़ती ऊंचाई, ऑक्सीजन की कमी और एक्यूट माउंटेन सिकनेस ने बड़ी चुनौती खड़ी की। सात में से तमन्ना एंजल बोवेन को हाई एल्टीट्यूड पल्मोनरी एडिमा (एचएपीई) के शुरुआती लक्षण, जैसे मतली और थकान, दिखाई दिए, जिसके बाद उन्हें स्मिता फ्रांसिस के साथ मिड-वे में हेलिकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया।
बावजूद इसके, बाकी छह छात्राओं ने वाणी सिंह के गाइडेंस में अद्भुत साहस और एकजुटता दिखाई और मिशन को आगे बढ़ाया। 23 किलोमीटर की उतराई भी उतनी ही कठिन थी, जिसमें खड़ी चढ़ाई और लुक्ला में मौसम की देरी ने चुनौतियां बढ़ाईं। फिर भी, इन छात्राओं ने हर बाधा को आपसी जुड़ाव और आत्म-चिंतन का अवसर बनाया।
अभियान से पहले, छात्राओं की कठिन चिकित्सकीय जांच की गई ताकि वे ऊंचाई, कम ऑक्सीजन और कठोर मौसम का सामना कर सकें। इसके बाद रणनीतिक व्यायाम, तैराकी, उचित आहार और मसूरी व देहरादून की पहाड़ियों में अभ्यास ट्रेक किए गए। प्रत्येक अभ्यास ट्रेक एक छोटा मिशन था, जो उनकी सहनशक्ति, तकनीक और मानसिक दृढ़ता को मजबूत करता था। अधिकांश छात्राओं के लिए, जो पहली बार ट्रेकिंग कर रही थीं, ये सप्ताहांत की चढ़ाइयां एक सीखने का मैदान और आत्मविश्वास बढ़ाने वाला अनुभव थीं। यह अनुभव उनके लिए सहनशक्ति, टीमवर्क और आत्मविश्वास का एक शक्तिशाली सबक बन गया, जो उनकी स्कूल की यादों में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो गया।