चमोली। चमोली जनपद में स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान को रविवार की सुबह पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। पहले दिन प्राकृतिक स्वर्ग का दीदार करने कुल 49 पर्यटक पहंुचे। हर साल जून से अक्टूबर तक खुलने वाली यह घाटी अपने रंग-बिरंगे फूलों और शांत वातावरण के कारण देश-विदेश के सैलानियों के लिए खास आकर्षण का केंद्र रहती है। घाटी के मुख्य द्वार पर वन विभाग की टीम ने पर्यटकों का पारंपरिक तरीके से गर्मजोशी से स्वागत किया। इस अवसर पर विभाग ने पर्यटकों को घाटी की जैव विविधता, नियमों और सुरक्षा से जुड़ी जानकारी भी दी। विभाग की मानें तो अब तक जून महीने में कुल 62 सैलानियों ने पंजीकरण करवा लिया है, जो आने वाले दिनों में संख्या बढ़ने का संकेत है। फूलों की घाटी में 300 से अधिक प्रकार की देसी और विदेशी फूलों की प्रजातियां पाई जाती है। इनमें ब्रह्मकमल, ब्लू पोपी, प्रिमुला, कोबरा लिली और कई दुर्लभ प्रजातियां शामिल है। यह घाटी वर्ष 2005 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध की गई थी और इसे संरक्षित जैव विविधता के लिए वैश्विक मान्यता प्राप्त है। प्रकृति प्रेमियों, ट्रैकिंग के शौकीनों और फोटोग्राफरों के लिए यह घाटी एक स्वर्ग समान है. वन विभाग ने पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिदिन सीमित संख्या में पर्यटकों को प्रवेश की अनुमति देने की व्यवस्था की है। इस वर्ष भी उम्मीद की जा रही है कि हजारों पर्यटक इस अद्वितीय घाटी में पहुंचकर प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताएंगे और इसे एक अविस्मरणीय अनुभव के रूप में संजो कर ले जाएंगे।
हिमालय की विशाल पर्वतमालाओं की शानदार पृष्ठभूमि के साथ फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान आगंतुकों के लिए एक अलौकिक दृश्य और अविस्मरणीय अनुभव प्रस्तुत करता है। चमोली जिले में 87 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के दो मुख्य क्षेत्रों (दूसरा नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान है) में से एक है। इस घाटी की खोज 1931 में हुई थी, जब फ्रैंक एस स्माइथ के नेतृत्व में तीन ब्रिटिश पर्वतारोही अपना रास्ता भूल गए और इस शानदार घाटी पर पहुँच गए। इस जगह की खूबसूरती से आकर्षित होकर उन्होंने इसका नाम फूलों की घाटी रख दिया। फ्रैंक एक ब्रिटिश पर्वतारोही थे। इसके बाद ये एक मशहूर पर्यटन स्थल बन गया। फूलों की घाटी को लेकर स्मिथ ने एक किताब भी लिखी है। इस किताब का नाम है-वैली ऑफ फ्लॉवर्स।
जैसा कि नाम से पता चलता है फूलों की घाटी एक ऐसी जगह है जहाँ प्रकृति अपने पूरे वैभव के साथ खिलती है और एक अद्भुत अनुभव प्रदान करती है। ऑर्किड, खसखस, प्रिमुला, मैरीगोल्ड, डेज़ी और एनीमोन जैसे विदेशी फूल (500 से अधिक प्रजातियाँ) एक आकर्षक नज़ारा हैं। उप-अल्पाइन वन बर्च और रोडोडेंड्रोन पार्क के क्षेत्र के कुछ हिस्सों को कवर करते हैं। घाटी की ओर जाने वाला ट्रेक झरनों और जंगली धाराओं जैसे आकर्षक नज़ारे पेश करता है। समुद्र तल से लगभग 3,600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, घाटी में दुर्लभ और अद्भुत वन्यजीव प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं जैसे कि ग्रे लंगूर, उड़ने वाली गिलहरी, हिमालयन वीज़ल और काला भालू, लाल लोमड़ी, लाइम बटरफ्लाई, हिम तेंदुआ और हिमालयन मोनाल आदि।
फूलों की घाटी का वर्णन रामायण और महाभारत में भी मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फूलों की घाटी ही वो स्थान है जहां से हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाए थे। स्थानीय लोगों के अनुसार फूलों की घाटी में परियां निवास करती हैं। परियों का निवास स्थान होने की वजह से लंबे समय तक यहां लोग जाने से कतराते थे। इस घाटी में उगने वाले फूलों से दवाई भी बनाई जाती है। फूलों की घाटी उच्च हिमालयी भ्यूंडार वैली में पुष्पावती नदी के दूसरे छोर पर नंदन कानन में स्थित है।