देहरादून। उत्तराखंड में संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बावजूद संस्कृत उपेक्षित बनी हुई है। संस्कृत के उत्थान, संरक्षण व संवर्द्धन की दिशा में जो प्रयास होने चाहिए थे, वे नहीं हो पाए। संस्कृत विद्यालयों व महाविद्यालयों की स्थिति दयनीय बनी हुई है, संस्कृत विद्यालयों के भवन जर्जर हालत में हैं और शिक्षकों की भारी कमी बनी हुई है। संस्कृत शिक्षकों को जो मानदेय मिलता है वह भी बेहद अल्प है। संस्कृत भाषा को लेकर राजनीतिक मंचों से बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती हैं, सरकार संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए बड़े-बड़े दावे करती नजर आती है, लेकिन संस्कृत भाषा की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
उत्तराखंड राज्य में संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालयों की संख्या 90 है। इनमें 46 संस्कृत महाविद्यालय हैं जबकि 43 उत्तर मध्यमा विद्यालय हैं। इसके साथ ही 1 पूर्व मध्यमा विद्यालय भी स्थापित किया गया है। राज्य में 6 राजकीय संस्कृत महाविद्यालय/विद्यालय भी मौजूद हैं। बावजूद इसके इन विद्यालयों की स्थिति दयनीय है। कई विद्यालय जर्जर स्थिति में हैं और कई विद्यालय शिक्षकों की बाट जोह रहे हैं। जहां छात्रों के बैठने के लिए भी जगह नहीं है, वहीं शिक्षक विहीन चल रहे कई विद्यालय बंदी की कगार पर हैं। कुछ विद्यालयों में प्रबंधकीय व्यवस्था से रखे गए शिक्षकों का मानदेय मात्र 500 से 2000 रुपये है।
रुद्रप्रयाग जनपद में तीन संस्कृत महाविद्यालयों के साथ ही सात संस्कृत विद्यालय संचालित हो रहे हैं। इन विद्यालयों में वर्षों पूर्व शासन स्तर से पदों की स्वीकृतियां भी हैं, लेकिन शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई। संसाधनों के अभाव में बच्चों में भी संस्कृत शिक्षा के प्रति अरुचि साफ दिख रही है। इन विद्यालयों के जरिये जहां कई बच्चे राजकीय सेवाओं में अपना भविष्य संवारना चाह रहे हैं, वहीं कई बच्चे अपनी पैत्रिक परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए अपना रोजगार संवारना चाह रहे हैं, लेकिन उन्हें उपयुक्त अवसर नहीं मिल रहे हैं।
उत्तरकाशी में बीते दो दशक से संस्कृत राजभाषा उपेक्षा का दंश झेल रही है। श्री विश्वनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी में वर्ष 1996 से शिक्षकों के कई पद रिक्त चल रहे हैं। इस महाविद्यालय में 12 संस्कृत शिक्षकों के पद सृजित हैं, जिसमें कुछ शिक्षक ही नियुक्त हैं। महाविद्यालय ने पांच शिक्षकों को प्रबंधकीय तौर पर नियुक्त किया है। श्री विश्वनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय उत्तरकाशी जिले का एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय है। वर्तमान में इस महाविद्यालय में प्रथमा से आचार्य तक अध्ययनरत संस्कृत छात्रों की संख्या 275 है। चिन्यालीसौड़ ब्लॉक अंतर्गत श्री सरस्वती संस्कृत विद्यालय जोगत में प्रथमा से पूर्व माध्यमा तक करीब 181 छात्र हैं। इस विद्यालय में संस्कृत शिक्षक के चार पद सृजित हैं, लेकिन यहां भी बीते एक दशक से दो शिक्षकों के पद रिक्त चल रहे हैं। राज्य में अन्य जिलों में स्थित संस्कृत महाविद्यालयों व विद्यालयों की स्थिति भी कुछ इसी प्रकार की है। संस्कृत ने भारत की भाषाओं को बहुत प्रभावित किया है जो इसकी शब्दावली और व्याकरणिक आधार से बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए, हिंदी ,मराठी जो अपने अधिकांश शब्दों और व्याकरण को संस्कृत से प्राप्त करती है। संस्कृत भाषा के शब्द मूलत रूप से सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में हैं। सभी भारतीय भाषाओं में एकता की रक्षा संस्कृत के माध्यम से ही हो सकती है। मलयालम, कन्नडऔर तेलुगु आदि दक्षिणात्य भाषाएं संस्कृत से बहुत प्रभावित हैं।