ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास को और बेहतर बनाने की जरूरत

ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास को और बेहतर बनाने की जरूरत है। इसके लिए यह आवश्यक है कि ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को सम्मिलित किया जाए। योजनाओं का विकेन्द्रीकरण किया जाए, भूमि सुधार संबंधी नियमों को बेहतर तरीके से लागू किया जाए एवं किसानों को ऋण संबंधी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाएँ। सरकार शहरों एवं गाँव के बीच की दूरी को मिटाने का प्रयास कर रही है। ग्रामीण लोगों की स्थिति में सुधार लाने हेतु सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों के बारे में जानकारी प्रदान की गई है। वैतनिक और अवैतनिक कार्यों में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार का विविधीकरण, ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की खाई को पाटने की आवश्यकता है। भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार विविधीकरण की धीमी गति ने एक अस्थिर और अव्यवहार्य स्थिति उत्पन्न कर दी है जहाँ कृषि क्षेत्र में कामगारों की बड़ी संख्या संलग्न बनी हुई है, जबकि कृषि क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में अपनी हिस्सेदारी के संबंध में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज कर रहा है। औद्योगिकीकरण की ओर कुछ देर से आगे बढ़ने वाले जापान, दक्षिण कोरिया और हाल ही में चीन जैसे सफल देशों के विपरीत भारत में अधिकांश कार्यबल निम्न-भुगतान वाली सेवाओं के साथ-साथ कृषि एवं अन्य प्राथमिक गतिविधि क्षेत्रों में निम्न-मूल्य वाले रोजगार में फँसे रहे हैं।
पिछले दो दशकों में ग्रामीण रोजगार विविधीकरण की स्थिति यह पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये घटती कार्य भागीदारी दरों के साथ संपन्न हुआ है। महिला कार्य भागीदारी दर सभी कार्यों को इंगित नहीं करती है, बल्कि यह स्वरोजगार सहित केवल चिह्नित या मान्यता प्राप्त रोजगार को ही प्रकट करती है। इसमें घरेलू उपभोग और उत्तरजीविता सुनिश्चित करने वाली गतिविधियों में महिलाओं द्वारा मुख्यतः अवैतनिक रूप में किये जाते कार्य की एक बड़ी मात्रा शामिल नहीं है। अवैतनिक कार्य में केवल घरों में किया जाने वाला अवैतनिक देखभाल कार्य शामिल नहीं है, बल्कि जल एवं ईंधन की लकड़ी लाने, रसोई के लिये सब्जी उगाने, मुर्गी पालन करने जैसी कई अन्य आवश्यक गतिविधियाँ भी शामिल हैं। मान्यता प्राप्त महिला कामगारों के एक बड़े भाग को (ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग एक-तिहाई तक) ‘पारिवारिक उद्यमों (विशेष रूप से खेतों में) में अवैतनिक सहायक’ के रूप में वर्णित किया जाता है। ट्रेड होटल एवं रेस्तरां ने पुरुष रोजगार में अपनी हिस्सेदारी को दोगुने से अधिक कर लिया है और परिवहन सेवाओं में भी वृद्धि हुई है, लेकिन इनका एक बड़ा भाग अपेक्षाकृत निम्न भुगतान वाली गतिविधियाँ ही बनी रही हैं। महिलाओं के रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी में हाल का ‘पुनरुद्धार’ व्यवहार्य रोजगार अवसरों के मामले में अन्य गतिविधियों की गिरावट को दर्शाता है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर अत्यधिक निर्भर है (जहाँ 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है)। कृषि क्षेत्र अप्रत्याशित मानसून पर निर्भर है और सूखे एवं बाढ़ के लिये प्रवण है। इससे किसानों और कृषि श्रमिकों के लिये निम्न एवं अनिश्चित आय की स्थिति बनती है। लघु जोत, आधुनिक तकनीकों की कमी और अपर्याप्त अवसंरचना जैसे कारकों के कारण किसानों को प्रायः निम्न उत्पादकता और आय अस्थिरता का सामना करना पड़ता है। ऋण, बीमा एवं बचत जैसे वित्तीय संसाधनों तक पहुँच का अभाव ग्रामीण लोगों की उत्पादक गतिविधियों में निवेश करने, आघातों से निपटने और अपनी आजीविका में विविधता लाने की क्षमता को सीमित करता है। उद्योग और व्यवसाय शहरी क्षेत्रों में केंद्रित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में विविधतापूर्ण आर्थिक गतिविधियों की कमी होती है। सड़क, बिजली, सिंचाई, दूरसंचार, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे पर्याप्त अवसंरचना का अभाव गैर-कृषि क्षेत्रों के विकास में बाधा डालता है और बाजारों, सेवाओं एवं अवसरों तक पहुँच को सीमित करता है। ग्रामीण लोगों के बीच शिक्षा और कौशल का निम्न स्तर श्रम बाजार में उनकी रोजगार-योग्यता एवं गतिशीलता को सीमित करता है। कई ग्रामीण बच्चे निर्धनता, स्वच्छता सुविधाओं की कमी, अल्पायु विवाह या घरेलू कार्य के कारण स्कूल छोड़ देते हैं। जाति, लिंग, धर्म या जातीयता पर आधारित सामाजिक असमानताएँ भी ग्रामीण लोगों के आर्थिक अवसरों और परिणामों को प्रभावित करती हैं। महिलाओं, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों, अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित समूहों को भेदभाव, अपवर्जन एवं हिंसा का सामना करना पड़ता है जो उनकी आर्थिक क्षमता को सीमित करता है। ग्रामीण समुदायों को प्रायः ऋण (क्रेडिट) और वित्तीय सेवाओं तक पहुँच में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इससे उद्यमियों और लघु व्यवसायों के लिये अपना परिचालन शुरू करना या उसका विस्तार करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। वित्तीय सहायता की कमी विविधतापूर्ण आर्थिक गतिविधियों के विकास को बाधित करती है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को लाभकारी स्वरोजगार और कुशल मजदूरी रोजगार अवसरों तक पहुँच बनाने में सक्षम करना है, जिसके परिणामस्वरूप उनके लिये संवहनीय और विविधतापूर्ण आजीविका विकल्प उपलब्ध होते हैं। मिशन की आधारशिला है इसका ‘समुदाय-संचालित’ दृष्टिकोण, जिसने महिला सशक्तीकरण के लिये सामुदायिक संस्थानों के रूप में एक वृहत मंच प्रदान किया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 7,23,893 किमी लंबी ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन योजना ग्रामों के ऐसे संकुल को विकसित करने के लिये शुरू की गई है जो समता एवं समावेशिता पर ध्यान केंद्रित रखते हुए ग्रामीण सामुदायिक जीवन के सार को संरक्षित एवं संपोषित करते हैं, जबकि ऐसी सुविधाओं के साथ कोई समझौता नहीं करते जो अनिवार्य रूप से शहरी प्रकृति की मानी जाती हैंय इस प्रकार शहरी ग्रामों के एक संकुल का सृजन करते हैं। विद्यमान चुनौतियों से निपटने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें आधारभूत संरचना, शिक्षा एवं कौशल विकास में निवेश करना, ऋण एवं वित्तीय सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना और ग्रामीण क्षेत्रों में विविधीकरण एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों का कार्यान्वयन करना शामिल है।
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