कमलेश्वर मंदिरः यहां निसंतान दंपत्ति करते हैं भगवान शिव की अराधना

देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूूज। कमलेश्वर महादेव मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के लोकप्रिय शिव मंदिरों में से एक है। केदारखंड के अनुसार यह हिमालय के पांच महेश्वर पीठों में से एक है। यह मंदिर श्रीनगर गढ़वाल में शहर के मुख्य बाजार के पास स्थित है। यह उत्तराखंड के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन निसंतान दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि रावण वध करने के बाद श्रीराम गुरु वशिष्ठ की आज्ञा अनुसार भगवान शिव की उपासना करने के लिए कमलेश्वर मंदिर आए थे। इस स्थान पर आकर उन्होंने 108 कमलों से भगवान शिव की उपासना की थी, जिसके बाद से यहां का नाम कमलेश्वर पड़ गया। इस बैकुंठ चतुर्दशी पर कमलेश्वर महादेव मंदिर में 177 दंपति खड़ा दीया अनुष्ठान में शामिल हुए। पोलैंड से पहुंचे विदेशी दंपति क्लाऊडिया स्टेफन ने भी बखूबी खड़ा दीया अनुष्ठान में भाग लिया।
यहां अचला सप्तमी (घृत कमल), महाशिवरात्रि और बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है, जिसमें दूर दराज से आए निसंतान दंपति जलते दीए को अपने हाथ में रखकर रात भर जाप और जागरण करते हैं। सुबह दीपक को अलकनंदा में प्रवाहित कर मंदिर में पूजा करते हैं। यहां के लोगों की धार्मिक आस्था के अनुसार उनके द्वारा दीप धारित तप साधना से निश्चित रूप से उनकी संतान की मनोकामना पूरी हो जाती है। कहा जाता है कि सतयुग में भगवान विष्णु ने शिव को सहस्त्र कमल चढ़ाकर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। त्रेता युग में भगवान रामचंद्र ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव को 108 कमल के पुष्प चढ़ाए। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने जामवंती के कहने पर खड़ा दीपक का व्रत किया, जिसके बाद उन्हें स्वाम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई और कलयुग में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) को निसंतान दंपति संतान प्राप्ति के लिए यहां खड़ा दीपक (जलते दीपक को रात भर हाथ में रखकर पूजा करना) का व्रत करते हैं।
इस बैकुंठ चतुर्दशी पर कमलेश्वर महादेव मंदिर में 177 दंपति खड़ा दीया अनुष्ठान में शामिल हुए। पोलैंड से पहुंचे विदेशी दंपति क्लाऊडिया स्टेफन ने भी बखूबी खड़ा दीया अनुष्ठान में भाग लिया। इस बार खड़ा दीया अनुष्ठान के लिए 216 से ज्यादा दंपतियों ने पंजीकरण करवाया था। इसमें से 177 दंपतियों ने अनुष्ठान में हिस्सा लिया। जबकि, बीते साल 2023 में 200 से ज्यादा दंपति यहां अनुष्ठान में शामिल हुए थे। इस अनुष्ठान के तहत महिलाओं के कमर में एक कपड़े में जुड़वा नींबू, श्रीफल, पंचमेवा एवं चावल की पोटली बांधी जाती है। जिसके बाद महंत सभी दंपतियों के हाथ में दीपक रखते हुए पूजा अर्चना कराते हैं। दंपत्ति रातभर हाथ में जलता दीया लेकर भगवान शिव की आराधना करते हैं। कहा जाता है रातभर हाथों में दीया लेकर खड़ा होने और आराधना करने पर संतान की प्राप्ति होती है। अनुष्ठान में शामिल होने के लिए उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश, पुणे, आंध्र प्रदेश के अलावा विदेश से भी दंपति पहुंचते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब देवता दानवों से पराजित हो गए थे, तब वो भगवान विष्णु की शरण में चले गए। दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु यहां भगवान शिव की तपस्या करने पहुंचे। पूजा के दौरान वो शिव सहस्रनाम के अनुसार शिवजी के नाम का उच्चारण कर सहस्र (एक हजार) कमलों को एक-एक कर शिवलिंग पर चढ़ाने लगे। वहीं, विष्णु की परीक्षा लेने के लिए शिव ने एक कमल का फूल छिपा लिया था। एक कमल का फूल कम होने से यज्ञ में कोई बाधा न पड़े, इसके लिए भगवान विष्णु ने अपना एक नेत्र निकालकर अर्पित करने का संकल्प लिया। इससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु को अमोघ सुदर्शन चक्र दिया, जिससे उन्होंने राक्षसों का विनाश किया। यहां पर सहस्र कमल चढ़ाने की वजह से इस जगह यानी मंदिर को कमलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा।

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