विरासत महोत्सव में गढ़वाली लोकगीतों की रही धूम

-विभिन्न रागों के सरताज जवाद अली छा गए विरासत में
-पर्यावरण को शुद्ध रखना हम सभी की है जिम्मेदारीः ओहरी

देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। विरासत साधना कार्यक्रमों की श्रृंखला में आज गुरुवार की सुबह विरासत महोत्सव की महफिल में भिन्न-भिन्न स्कूलों से आए छात्र-छात्राओं ने अपनी क्लासिकल म्यूजिक और डांस की प्रस्तुतियां शानदार ढंग से दी प् तबला, गिटार, हारमोनियम आदि पर अपनी अपनी आकर्षक एवं शानदार प्रस्तुतियां छात्र-छात्राओं की ओर से दिए जाने को बखूबी सराहा गया प् सुबह के समय छात्र-छात्राओं द्वारा दी गई अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में प्रतिभा करने वाले स्कूली बच्चों में आरएएन पब्लिक स्कूल, रुद्रपुर के एकास भाटिया, द एशियन स्कूल के अर्णव खंडूरी, द टोंस ब्रिज स्कूल के दिवित श्रीवास्तव, सेंट कबीर एकेडमी के लोकेश प्रकाश, केंद्रीय विद्यालय नंबर दो सर्वे ऑफ इंडिया, हाथीबड़कला के सिद्धांत राजोरिया, श्री राम सेंटेनियल स्कूल के सुहाना शर्मा, दून यूनिवर्सिटी के कनक थपलियाल, दिल्ली पब्लिक स्कूल के आराध्या बालोनी, स्कॉलर्स हब डिफेंस एकेडमी की कर्णिका, देहरादून वर्ल्ड स्कूल की श्रेया शर्मा शामिल रहे।
मसूरी डायवर्जन रोड स्थित डीआईटी में आज विरासत साधना कार्यक्रम के तहत सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर आयोजित किए गए जन जागरूकता कार्यक्रम में  पैनलिस्ट लोकेश ओहरी ने कहा कि आज हम सभी की जिम्मेदारी है कि हमें पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए जागरूकता लाने की दिशा में तेजी से कार्य करना होगा। आयोजित किए गए सेमिनार में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि लोकेश ओहरी ने कहा कि पारिस्थितिकीय पर्यावरण को हमें समझना होगा, जिसके अंतर्गत आज प्लास्टिक का ज्यादा से ज्यादा उपयोग होने से शुद्ध पर्यावरण बाधित हो रहा है। ऐसे में हमें चाहिए कि लोगों को प्लास्टिक के उपयोग से रोकने के लिए अधिक से अधिक जागरूक करना चाहिए। दरअसल, इस वर्ष रीच संस्था ने उत्तराखंड जैसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील राज्य हेतु महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों को समझने के लिए विरासत महोत्सव के एक भाग के रूप में एकल उपयोग प्लास्टिक स्थिरता के लिए एक रोड मैप पर एक पैनल पर चर्चा में मेज़बानी करने की पहल की है और इस पहल का मुख्य उद्देश्य श्एकल उपयोग प्लास्टिकश् पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि ज्ञान प्रदान करना है जिससे छात्रों को विषय वस्तु की समझ में वृद्धि करके ज्ञान लाभ हासिल हो सके।
एकल-उपयोग प्लास्टिक पर आयोजित सेमिनार में लोकेश ओहरी के व्याख्यान के अलावा आईआईटी रुड़की के डॉ. के. के. गायकवाड, डीआईटी की डॉ. एकता, दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी के डॉ. सुधीर वारडकर, रिच संस्था की ओर से विजयश्री जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त। इन सभी वक्ताओं ने प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के विषय में बताया और जन जागरूकता पर जोर दिया। इस अवसर पर डॉ. नवीन सहगल डीआईटी रवि पांडे अर्बन डेवलपमेंट डायरेक्टरेट एवं डॉ. मधु बेन शर्मा यूपीईएस,अंकिता कांडपाल एवं कुणाल राय उपस्थित रहे।
सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ नेवी बैंड की प्रस्तुति से पूर्व आज के मुख्य अतिथि प्रमुख मुख्य वन संरक्षक समीर सिन्हा, उत्तराखंड सरकार द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर उनके साथ रिच संस्था के संरक्षक एवं महासचिव, आरके सिंह भी उपस्थित रहे।
सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत बहुत ही आकर्षक गढ़वाली गीतों के साथ हुई। नव ज्योति संस्कृत एवं सामाजिक संस्था ने अपने प्रदर्शन की शुरुआत गढ़ वंदना की भावपूर्ण प्रस्तुति से की, जिसने गढ़वाली लोक संगीत और नृत्य के प्रामाणिक प्रदर्शन के लिए मंच तैयार किया। इसके बाद थड़िया, चौफला, छौपति, बाजूबंध और जीवंत रांसू गीत सहित कई पारंपरिक प्रस्तुतियां हुईं, जिनमें गढ़वाल की सांस्कृतिक झलक साफ झलक रही थी। समूह ने क्षेत्र की आध्यात्मिक विरासत को समर्पित श्रद्धेय नंदा का गीत भी प्रस्तुत किया। ढोलक पर सुमित गुसाईं और सचिन वर्मा, पैड पर सौरभ उपाध्याय और कीबोर्ड पर अखिल मैंदोला ने संगीत को जीवंत किया। गायन की प्रस्तुतियां भी उतनी ही आकर्षक रहीं, जिसमें प्रदीप असवाल और सुनील कोढ़ियाल ने पुरुष गायक के रूप में अपनी आवाज दी, जबकि रेनू बाला और सुनंदा ने महिला गायक के रूप में प्रस्तुति को समृद्ध बनाया। उनके सामूहिक प्रयासों ने गढ़वाल की समृद्ध परंपराओं को दर्शाते हुए एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला सांस्कृतिक अनुभव बनाया।
सांस्कृतिक संध्या में लोकप्रिय एवं विश्व विख्यात जवाद अली खान के कई राग छाए रहे। उन्होंने अपने राग की शुरुआत राग बिहाग से शुरू की। तानपुरा पर उनका साथ डॉ. दीपक वर्मा और अंगद सिंह ने दिया। उनके सुरों ने इस प्रस्तुति के लिए एक आदर्श पृष्ठभूमि तैयार की। सुरमंडल पर जवाद अली खान, हारमोनियम पर पारोमिता दास और तबले पर जाने माने विख्यात पंडित शुभ महाराज ने संगत दी। इस संगीतमय की शाम में प्रतिभा और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला। उनके द्वारा दी गई प्रस्तुति में बहुत कुछ ऐसा महसूस करने को मिला जिसने कि लोगों के दिलों को छू लिया। उस्ताद जवाद अली खान आकाशवाणी और दूरदर्शन के शीर्षस्थ कलाकार हैं। एक महान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए और महान गुरुओं की वंशावली के गौरवशाली वंशज उस्ताद जवाद अली खान करामत अली खान के पुत्र और पद्म भूषण उस्ताद बड़े गुलाम अली खान के बहुत प्रतिभाशाली पोते हैं, जो कसूर पटियाला घराने के प्रमुख और इस सदी के सबसे महान गायकों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने अपने चाचा और गुरु, उस्ताद मुनव्वर अली खान जो उस्ताद बड़े गुलाम अली खान के दूसरे बेटे थे, से औपचारिक प्रशिक्षण शुरू किया। उन्होंने उन्हें कसूर पटियाला गायकी की जटिल चौमुखिया शैली में तैयार किया। भारत और विदेश में अपने कई संगीत कार्यक्रमों में वे अपने प्रिय दादा के जटिल तान पैटर्न बुनने और स्वर और लय पर उनके नियंत्रण में विशेषज्ञता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। ख़याल, ठुमरी को सुंदर गायकी के साथ प्रस्तुत करते हुए वे अपने स्वयं के प्रक्षेपण को नया रूप दे रहे हैं और अपनी खुद की तकनीक और सौंदर्यशास्त्र बना रहे हैं। उस्ताद जवाद अली खान ऑल इंडिया रेडियो और टीवी के शीर्ष श्रेणी के कलाकार हैं। हाल ही में वेस्टन द्वारा उनका ऑडियो-टेप याद-ए-सबरंग जारी किया गया है, जिसमें उस्ताद बड़े गुलाम अली खान को समर्पित बेहतरीन ठुमरी और दादरा का एक सेट है। उन्हें पंजाब और दिल्ली सरकारों, टोरेंटो अकादमी और लाहौर संगीत पुरस्कार से कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। ऐसी सांस्कृतिक हस्ती यादगार के रूप में बनी रहती है।
रीच संस्था के सहयोग से प्रतिष्ठित नेवी बैंड की प्रस्तुति के साथ मनमोहक धुनष्की मेजबानी करते हुए सभी का दिल जीत लिया। विरासत में की गई इस शानदार एवं आकर्षक धुन का उद्देश्य समुद्री इतिहास और भारतीय नौसेना की महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मनाना था प् मन को मोह लेने वाले इस समारोह की शुरुआत सेवानिवृत्त कमोडोर गौतम नेगी के प्रेरक उद्घाटन भाषण से हुई,जिन्होंने दिन के उत्सव की शुरुआत की। कार्यक्रम में सब लेफ्टिनेंट श्रेया जोशी ने समुद्री इतिहास और समुद्र के महत्व के बारे में जानकारी साझा की, जिसमें राष्ट्रीय विरासत में इसके महत्वपूर्ण योगदान पर जोर दिया गया। इसी श्रृंखला में सेवानिवृत्त नौसेना की विविध भूमिकाओं, करियर के अवसरों,जहाजों पर जीवन और शामिल होने की प्रक्रियाओं,जिसमें एसएसबी साक्षात्कार और भारतीय राष्ट्रीय अकादमी,राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के माध्यम से मार्ग शामिल हैं, के बारे में विस्तार से बताया गया। दर्शकों को नौसेना बैंड से परिचित कराया गया तथा प्रदर्शन के लिए तैयार प्रतिभाशाली संगीतकारों का परिचय करायाप् संगीत कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक ष्मंगलष् से हुई और इसमें नौसेना के मार्च, उत्तराखंड के लोकगीत और लोकप्रिय बॉलीवुड हिट शामिल रहे,जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया प्विरासत में भारतीय नौसेना की उपलब्धियां को भी बताया गया। इसका कुछ संक्षिप्त परिचय यह है कि भारतीय नौसेना बैंड की उत्पत्ति 1945 में हुई थी, जब इसे कुछ नौसेना संगीतकारों के साथ मिलकर बनाया गया था। तब से इसने एक लंबा सफर तय किया है और आज नौसेना के पास देश भर के विभिन्न बैंडों में कई प्रशिक्षित संगीतकार हैं।भारतीय नौसेना बैंड,जिसे भारतीय नौसेना सिम्फोनिक बैंड के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय नौसेना का पूर्णकालिक संगीत बैंड है। यह वर्तमान मेंआईएनएस कुंजली से जुड़ा हुआ है। इसके कमीशन के समय, इसमें 50 संगीतकार थे। सभी बैंड सदस्यों के पास मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री है और वे कम से कम एक सैन्य प्रायोजित वाद्ययंत्र को कुशलता से बजा सकते हैं। आज, बैंड अब मृदंगम, तबला और कर्नाटक वाद्ययंत्र जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग करता है। बैंड ने हाल के वर्षों में वायलिन,वायलस, सेलो और डबल बास से युक्त एक बड़े स्ट्रिंग सेक्शन को जोड़ने जैसे अतिरिक्त कार्यों को शामिल करके इसे एक पूर्ण सिम्फोनिक ऑर्केस्ट्रा बनाने के लिए संवर्द्धन भी किया है।

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