ग्रामीण भारत की सूरत बदलती कृषि, उद्यमशीलता को दिया जा रहा बढ़ावा

रमेश कुमार दुबे। सरकार कृषि क्षेत्र में उद्यमशीलता को बढ़ावा दे रही है, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योग-धंधों का विकास हो। इसी को देखते हुए कृषि आधारभूत ढांचा फंड का विस्तार किया गया है। गत दिनों इसके तहत सात योजनाओं के लिए 14,200 करोड़ रुपये जारी किए गए। इसमें डिजिटल कृषि मिशन के लिए 2,817 करोड़ रुपये, फसल विज्ञान पर 3,979 करोड़ रुपये, कृषि शिक्षा एवं प्रबंधन को बेहतर करने के लिए 2,291 करोड़ रुपये और पशु स्वास्थ्य के लिए 1,702 करोड़ रुपये मुख्य हैं। सरकार कृषि क्षेत्र को डिजिटल बनाने की कवायद में भी जुटी है। इसके लिए अक्टूबर के पहले सप्ताह में देश भर में किसानों का पंजीकरण शुरू होगा। किसानों को आधार कार्ड की भांति एक विशेष पहचान पत्र दिया जाएगा, जिसकी सहायता से न्यूनतम समर्थन मूल्य से लेकर किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कार्यक्रमों और योजनाओं तक उनकी पहुंच बनेगी। कार्ड होने से सरकार को भी योजनाएं बनाने, उनके क्रियान्वयन और विस्तार में सहायता मिलेगी। सरकार ने अगले साल मार्च तक पांच करोड़ किसानों के पंजीकरण का लक्ष्य तय किया है। पहले सौ दिनों में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की 17वीं किस्त जारी की गई। इसके तहत 9.3 करोड़ किसानों को 20,000 करोड़ रुपये का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में किया गया।
तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार की स्थिरता पर संदेह प्रकट करने वालों को निराशा हाथ लगी है। पहले सौ दिनों में ही सरकार ने 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं को मंजूरी दी। सरकार का पूरा जोर सरकारी कामकाज के तरीके में बड़े सुधार और गुड गवर्नेंस को जमीनी स्तर तक ले जाने पर है। इसके लिए वह भूमि रिकार्ड से लेकर सरकारी कामकाज के डिजिटलीकरण पर फोकस कर रही है, ताकि योजनाओं का लाभ आम आदमी तक पहुंचे। इसीलिए सरकारी योजनाओं की रूपरेखा तय करने, योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के साथ-साथ उसकी मानिटरिंग और नौकरशाही की जवाबदेही तय करने के लिए नए मानक निर्धारित किए गए हैं।
सरकार के तीसरे कार्यकाल की जो उपलब्धियां आज दिख रही हैं, उसकी कवायद लोकसभा चुनाव घोषित होने के पहले से ही शुरू कर दी थी। इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रियों से कहा था कि वह अगले पांच साल का रोडमैप और सौ दिनों का एक्शन प्लान बनाएं। एक्शन प्लान लागू करने के लिए सचिवों की दस समितियां बनाई गईं। सभी मंत्रालयों से रिपोर्ट मांगी गईं। राज्य सरकारों से भी सलाह ली गई। कारोबारियों, सिविल सोसायटी और युवाओं से भी सुझाव मांगे गए। इसके लिए दो हजार से अधिक बैठकें की गईं। इन सभी के निष्कर्ष से एक्शन प्लान का रोडमैप बना।
न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली सभी फसलों पर 100 से लेकर 550 रुपये तक की बढ़ोतरी की गई। सरकार ने प्याज और बासमती चावल से न्यूनतम निर्यात मूल्य हटाया, वहीं रिफाइंड तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाया, ताकि घरेलू तिलहनों को अच्छा मूल्य मिल सके। वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार ने दलहनी-तिलहनी फसलों एवं मोटे अनाजों के समर्थन मूल्य में भरपूर बढ़ोतरी की है।
इसके बावजूद दलहनी-तिलहनी और मोटे अनाजों की सरकारी खरीद में अपेक्षित सुधार नहीं आया। इसका कारण है कि देश में सरकारी खरीद, भंडारण और विपणन का ढांचा गेहूं तथा धान जैसी चुनिंदा फसलों एवं इलाकों तक ही सिमटा है। अब सरकार दलहनी-तिलहनी और मोटे अनाजों की समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद, भंडारण एवं विपणन का देशव्यापी नेटवर्क बना रही है।
इससे न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि अनाजों के केंद्रीकृत भंडारण पर होने वाले खर्च में भी कमी आएगी। इसके लिए सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी भंडारण योजना शुरू की गई है, जिसके तहत प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) के स्तर पर गोदामों का निर्माण किया जा रहा है। इन गोदामों में स्थानीय उपज को भंडारित करके सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरित किया जाएगा। इस प्रकार खेती से लेकर थाली तक विविधता आएगी। सरकार नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति को भी अंतिम रूप दे रही है। इसके लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में 48 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। सरकार का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में तीन लाख पैक्स का गठन करना है, जो अभी 65,000 हैं। इस दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अनूठी पहल की है।
राज्य सरकार एक अक्टूबर से 31 दिसंबर तक मक्का, ज्वार और बाजरा की खरीद करेगी। इसके लिए किसानों का पंजीकरण शुरू हो चुका है। उपज की बिक्री का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में किया जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार की यह पहल पूरे देश के लिए नजीर बनेगी। इससे गेहूं-धान वाली सफलता मोटे अनाजों एवं दलहनी-तिलहनी फसलों में दोहराई जाएगी।
गेहूं-धान जैसी चुनिंदा फसलों की खेती से आगे बढ़कर सरकार विविध फसलों की खेती और उन पर आधारित उद्योग-धंधों के विकास पर फोकस कर रही है। इसी को देखते हुए बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए 860 करोड़ रुपये की योजना मंजूर की है। मछुआरों के कल्याण के लिए भी सहकारी संस्थाओं को मजबूत बनाया जा रहा है।
आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश बन गया है। 2014 में जहां देश में हर साल 80 लाख टन मछली का उत्पादन होता था, वहीं आज भारत हर साल 170 लाख टन मछली का उत्पादन कर रहा है। इसी तरह पशुपालन और दुग्ध उत्पादन के लिए भी सरकार राष्ट्रीय डेरी विकास कार्यक्रम चला रही है। इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विविधीकरण से ही लगातार घाटे का सौदा बन रही छोटी जोतों को लाभकारी बनाया जा सकेगा।

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