जर्जर विद्यालय भवनों में नौनिहाल मौत के साये में पढ़ने को मजबूर

देहरादून। उत्तराखंड में सैकड़ों राजकीय विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। ये जर्जर विद्यालय भवन दुर्घटना को न्योता दे रहे हैं। बारिश में ये टपकने लगते हैं। जर्जर विद्यालय भवनों को लेकर शिक्षा विभाग उदासीन बना हुआ है। विभाग ने जर्जर विद्यालय भवन चिन्हित तो किए लेकिन उनको ठीक करने को लेकर लापरवाह बना हुआ है। जर्जर विद्यालय भवनों का न ध्वस्तीकरण किया गया और न ही उनका मरम्मत कार्य किया गया। बारिश के सीजन में विद्यार्थियों के लिए इन जर्जर विद्यालय भवनों में बैठना खतरे से खाली नहीं है। शिक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 2,787 विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं, इनमें 1,437 प्राथमिक, 303 जूनियर हाईस्कूल और 1,045 माध्यमिक विद्यालय भवन शामिल हैं।
सबसे ज्यादा जर्जर विद्यालय भवन टिहरी, चमोली, चंपावत, देहरादून, पिथौरागढ़ व हरिद्वार जिलों में हैं। इसमें बागेश्वर जिले में 94, चमोली में 204, चंपावत में 123, देहरादून में 206, हरिद्वार में 170, नैनीताल में 160, पिथौरागढ़ में 193, रुद्रप्रयाग में 128, टिहरी गढ़वाल में 352, ऊधमसिंह नगर में 175 और उत्तरकाशी जिले में 185 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। बरसात के सीजन में जर्जर विद्यालय भवनों के ढहने की आशंका बराबर बनी रहती है। कई विद्यालयों में बारिश के दिनों में स्कूलों की छुट्टी करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता है। कई जर्जर विद्यालय भवनों
का छत का प्लस्तर झड़ रहा है तो कई में फर्स में गड्ढे बने हुए हैं। दरवाजे व खिड़कियां क्षतिग्रस्त हो रखी हैं। कई विद्यालय भवन खंडहर हो चुके हैं।
शिक्षा विभाग के पास जर्जर स्कूल भवनों की सूची तो है, लेकिन रिकार्ड नहीं है। हर वर्ष समग्र शिक्षा के तहत मिलने वाले बजट से कितने स्कूलों में नए भवन बन गए हैं और पुराने जर्जर भवनों में कक्षाएं संचालित नहीं की जाती। इन जर्जर भवनों का इसलिए ध्वस्तीकरण नहीं हो पा रहा है, क्योंकि जिला प्रशासन की अनुमति इसके लिए जरूरी है। प्रदेश सरकार की ओर से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के नाम पर न सिर्फ कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, बल्कि हर साल नए प्रयोग किए जा रहे हैं। लेकिन जर्जर विद्यालय भवनों को लेकर विभाग उदासीन बना हुआ है। पूर्व में बरसात में स्कूलों में मलबा आने, शौचालय की छत गिरने आदि की घटनाओं से विद्यार्थियों की जान भी जा चुकी है। विभाग का कहना है कि 2026 तक सभी स्कूलों को ठीक कर लिया जाएगा। पहाड़ों में शिक्षा व्यवस्था चाकचैबंद करने के दावे धरातल पर खोखले साबित होते जा रहे हैं। कुछ विद्यालयों में शिक्षकों का टोटा है तो कहीं नौनिहाल जर्जर स्कूल भवनों में खतरे के बीच अपना भविष्य संवार रहे हैं। कुछ जर्जर विद्यालय भवनों की छत तो कभी भी भरभरा कर गिर सकती है। जर्जर विद्यालय भवनों में नौनिहाल मौत के साये में पढ़ने को मजबूर हैं।

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