विश्व पर्यावरण दिवस

–हेमचन्द्र सकलानी–
अब तक वैज्ञानिकों द्वारा ज्ञात करोड़ों ग्रहों में केवल पृथ्वी पर ही जीवन पाया गया है। इन करोड़ ग्रह में नौ ग्रह प्रमुख माने गए हैं और इनमें सबसे प्रमुख ग्रह पृथ्वी है। क्योंकि कुछ ग्रह सूर्य के बहुत निकट हैं और कुछ ग्रह सूर्य से बहुत दूर है इसीलिए संभवत वहां जीवन नहीं पनप पाया।
पृथ्वी सूर्य से एक निश्चित दूरी पर, अपनी धूरी पर घूमती है फिर इसके साथ ही सूर्य के चारों ओर घूमती है। ईश्वर की या प्रकृति की इसी टैकनीक के कारण प्रतिदिन सुबह होती है दोपहर होती है शाम होती है रात होती है। सोचिए यदि रात ही रात होती यदि नहीं दिन होता है तो क्या हम जी सकते थे। क्या पृथ्वी पर जीवन पनप सकता था।
इसी कारण मौसम में परिवर्तन आता है गर्मी का मौसम आता है बरसात का मौसम आता है सर्दी का मौसम आता है। सोचिए यदि एक ही मौसम गर्मी सर्दी बरसात का हमेशा रहता तो क्या स्थिति होती। क्या तरह तरह के अनाज,फल फूल हमें देखने खाने को मिल पाते।
ब्रह्मांड में करोड़ों ग्रहण का निर्माण करने के बाद भी ब्रह्मा जी बहुत चिंतित थे क्योंकि ग्रह तो बना दिए पर कहीं भी जीवन नहीं था। पृथ्वी पर जीवन इसलिए प्रस्फुटित हो पाया की जमीन है ऊपर आकाश है वायु है जल है पेड़ पौधे हैं। कहा भी गया है “क्षिति पावक जल गगन समीरा पंच तत्व रहित अधम शरीरा।” वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध में बताया कि जीवन नदियों के, जल के तट पर ही, पल्लवित पुष्पित विकसित हुआ है। वैज्ञानिकों ने अपने शोधों से सिद्ध किया है की विश्व की सारी पांचों सभ्यताएं मिश्र की सभ्यता, मेसोपोटामिया की सभ्यता, सिंधु घाटी की सभ्यता, नील घाटी की सभ्यता, यांगसी की सभ्यताएं नदियों के तट पर है पल्लवित पुष्पित विकसित हुई हैं।
इस विशाल पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्र अलग अलग तरह के वातावरण आवरण से अर्थात पर्यावरण से घिरे रहते हैं जो धरती को,मनुष्य को ही नहीं पशु पक्षियों के जीवन को भी प्रभावित करता है। अब तो प्राकृतिक पर्यावरण की बात छोड़ दें तो मानव निर्मित पर्यावरण पृथ्वी और पृथ्वी पर स्थापित जीवन के लिए जैसे चेतावनी की घंटी बन गया हो।
हिमालय अर्थात जिसे हिम का आलम अर्थात बर्फ का घर कहा जाता है इसी हिमालय की हजारों पर्वत श्रृंखलाएं हमारे देश के ऊपर से एक छोर से दूसरे छोर तक फैली हैं अर्थात अफगानिस्तान पाकिस्तान भूटान नेपाल भारत सिक्कम बांग्लादेश म्यांमार तक लगभग ढाई हजार किलोमीटर तक जाती हैं ।
ये पर्वत श्रृंखलाएं बादलों को आगे बढ़ने से रोकती हैं यदि ये घने मेघ फिर बर्फ बन कर ग्लेशियरों का निर्माण करते हैं यदि ये सीधे गुजर जाएं तो नदियों का जन्म कहां से होगा। ये ही जल भू-गर्भ में समाता है,जल भंडार निर्मित करता है और नदियों को प्रवाहमय बनाता है।
इसी कारण सारी पर्वत श्रृंखलाएं व देश का मैदानी क्षेत्र वृक्षों से वनों से हरियाली से तरह तरह की वनस्पति से आच्छादित हो जाता है जिससे बहुत सुंदर स्वच्छ आवरण, वातावरण, पर्यावरण हमें देखने को मिलता है। हमारे देश के सुंदर पर्यावरण में और बदलते सुंदर मौसमों में हिमालय का बहुमूल्य योगदान है।
हिमालय की उत्तराखंड की पावन पवित्र सुंदरता पर्यावरण से मोहित होकर ही देवताओं ने ऋषि – मुनियों ने उत्तराखंड को अपनी विचरणस्थली,तपस्थली, निवासस्थली बनाया था। गीता में कृष्ण ने इसकी प्राकृतिक सुंदरता से मुग्ध हो हिमालय क्षेत्र को भगवान का साक्षात रूप माना तभी कृष्ण ने कहा पर्वतों में मैं ही हिमालय हूं, कालिदास ने भी इस पर मुग्ध होकर इसे देवात्मा कहा।
विश्व में इन कुछ वर्षों में मनुष्य की हठधर्मिता के कारण प्रकृति को पर्यावरण को मौसमों को भयानक क्षति उठानी पड़ी जिससे आज सारा विश्व चिंतित हो उठा है। विश्व में सबसे अधिक लगभग एक सौ पचास करोड़ की आबादी होने के कारण इसके सबसे अधिक दुष्परिणाम भी हमें ही भुगतने पड़ेंगे एक दिन। क्योंकि अति एक दिन कुरूपता में परिवर्तित हो जाती है।
इन गत वर्षों में लाखों वृक्षों का कटान हुआ,करोड़ों डीजल पेट्रोल के वाहन सड़कों पर दौड़ते प्रदूषण फैलाते नजर आते हैं,लाखों फैक्ट्रीयों का जहरीला धुआं,पानी गंदा जल बाहर निकल कर वातावरण को जहरीला बना रहा है वृक्षों की जगह कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। इसके अतिरिक्त हमारा मानसिक वातावरण भी इतना विकृत हो गया है जिसने सारे सुंदर पर्यावरण की धज्जियां उड़ा दीं। कुछ वर्ष पूर्व विश्व के सर्वेक्षण से पता चला विश्व में जहां में सबसे सुंदर पर्यावरण में स्विट्जरलैंड जहां प्रथम स्थान पर है वहीं हमारे देश की स्थिति 177 नंबर है। इससे प्रतीत होता है कि हम पर्यावरण के प्रति कितने गैर जिम्मेदारी का कार्य करते हैं।
एक विश्व स्तरीय सर्वेक्षण के अनुसार कनाडा में प्रति व्यक्ति के पीछे लगभग 8800 वृक्ष हैं रूस में लगभग 4900 पेड़ हैं अमेरिका में एक व्यक्ति के पीछे लगभग 760 वृक्ष हैं चीन में एक व्यक्ति के पीछे लगभग 107 वृक्ष हैं इस दृष्टि से भारत से भारत की स्थिति बहुत चिंता जनक है क्योंकि एक व्यक्ति के पीछे मात्र 28 वृक्ष हैं जबकि विश्व में सबसे अधिक पर्यावरण के गीत हम गाते ही नहीं हैं, बल्कि वर्ष में करोड़ों रुपए खर्च भी करते हैं। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे यहां पर्यावरण का स्तर कितना सुंदर होगा।
सन 1940-50 के समय लंदन की टोंस नदी कहते हैं बिल्कुल सूख गयी थी लेकिन नागरिकों की और सरकार की जागरूकता ने टोंस को जीवित कर दिया आज उसमें छोटे बड़े स्टीमर चलते हैं उसकी स्वछता सफाई का सभी निवासी ध्यान रखते हैं कागज का टुकड़ा तक बहता नहीं दिखाई पड़ता। यही टोंस टूरिज्म से अर्जित आय का लंदन में बहुत बड़ा साधन बन गयी। दूसरी तरह हर की पौड़ी में नहाने आये श्रद्धालु गंगा को कितना प्रदूषित और गंदा कर देते हैं देखा जा सकता है। यही नहीं सड़कों नदियों नहरों गलियों बाजारों के किनारे हमारे चरित्र की पोल खोल देता है। और नहीं तो डाकपत्थर की नहर के किनारे नागरिकों के द्वारा फेंके गये कूड़े के ढेर को देखकर कर हम अपने पर्यावरण प्रेम को देख सकते हैं।
विश्व की पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए यूएनओ ने स्टॉकहोम में विश्व पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया तब उसमें आज के दिन को ही अर्थात 5 जून को विश्व पर्यावरण बनाए जाने का संदेश दिया। पांच जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। पर्यावरण के प्रति जागरूकता और इस दिन से पर्यावरण में संरक्षित साफ सुथरा सुरक्षित रखने बनाने की दृष्टि से कार्य करें यही मुख्य उद्देश्य था। लेकिन यह तभी संभव हो पायेगा जब हम सभी अपने मन को,दिल को, दिमाग को पहले प्रदूषण मुक्त बना लें।
इस पीढ़ी ने जितनी हानी पर्यावरण को पहुंचानी थी पहुंचा दी लेकिन हमें अपनी भावी पीढ़ी के बारे में सोचना चाहिए इसके लिए आवश्यक है नई पीढ़ी को और स्कूलों में जाकर हम छात्र छात्राओं को बताएं की उनके जीवन के लिए स्वच्छ सुंदर पर्यावरण कितना आवश्यक है।

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