जलवायु परिवर्तन से निपटना समय की बड़ी आवश्यकता

जलवायु परिवर्तन समाज के समक्ष मौजूदा समय में सबसे बड़ी चुनौती है। इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं। भारत के 80 प्रतिशत से अधिक लोग उन जिलों में रहते हैं जो जलवायु-प्रेरित आपदाओं के जोखिम में हैं। बढ़ता तापमान, वर्षा के बदलते पैटर्न, भूजल स्तर में गिरावट, पिघलते ग्लेशियर, तीव्र चक्रवात और समुद्र के स्तर में वृद्धि, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए बड़े संकट पैदा कर सकते हैं। शहरी आबादी भी ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों से बच नहीं सकती है। घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्र, विशेष रूप से वे जहां अनियोजित शहरीकरण हुआ है, में अत्यधिक गर्मी, बाढ़ और बीमारी के लंबे दौर से खतरा बढ़ जाएगा। केवल पिछले दशक में, अत्यधिक मौसम की घटनाओं के कारण आर्थिक नुकसान दोगुना हो गया है। इनके और बढ़ने की आशंका है, जिससे देश के समग्र विकास को खतरा होगा। वर्षा के बदलते पैटर्न और बढ़ते तापमान से भारत की ग्रामीण आबादी के एक बड़े हिस्से की आजीविका और इसकी खाद्य उत्पादन प्रणालियों की स्थिरता को खतरा है। भारत के छोटे किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ाने में मदद करने के लिए, कई राज्यों में विश्व बैंक की परियोजनाएं स्थानीय रूप से अनुकूलित पैकेज प्रदान करती हैं जो कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद करती हैं। किसानों को अपने फसल पैटर्न में विविधता लाने, नवीनतम कृषि जानकारी तक पहुंचने, फसल सलाह के बारे में जानने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने, मिट्टी और जल प्रबंधन में सुधार करने और कृषि और गैर-कृषि उद्यमों दोनों को विकसित करने में मदद की जाती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के मौसम का मिजाज अप्रत्याशित हो गया है, पेयजल और सिंचाई उपलब्ध कराने, बाढ़ को नियंत्रित करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बांध महत्वपूर्ण हो गए हैं। फिर भी, समय के साथ, भारत के 5,700 बड़े बांधों में से कई संरचनात्मक रूप से कमजोर हो गए हैं। विश्व बैंक के समर्थन से, भारत अब दुनिया के सबसे बड़े बांध पुनर्वास कार्यक्रम को लागू कर रहा है, जिसमें लगभग 300 बड़े बांधों को आधुनिक और मजबूत करने के लिए नवीन समाधानों और सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं का उपयोग किया जा रहा है। अत्याधुनिक तकनीक बांध प्रबंधन को बेहतर बनाने में मदद कर रही है और निचले प्रवाह में रहने वाले लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा के उच्च मानक निर्धारित किए गए हैं।
भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। यदि मौजूदा रुझान जारी रहा, तो दो दशकों के भीतर भारत के आधे से अधिक जिलों में पानी की गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन से स्थिति और गंभीर होने की आशंका है। विश्व बैंक सात राज्यों में भारत की अटल भूजल योजना-दुनिया का सबसे बड़ा समुदाय-आधारित भूजल प्रबंधन कार्यक्रम का समर्थन कर रहा है। ग्रामीण महिलाओं की अग्रणी भूमिका के साथ, यह कार्यक्रम किसानों को यह समझने में मदद कर रहा है कि कितना पानी उपलब्ध है और कितना उपयोग किया जा रहा है। फिर ग्रामीणों को उनके पानी के उपयोग के अनुसार बजट बनाने, उचित जल धारण संरचनाओं का निर्माण करने और अधिक टिकाऊ सिंचाई प्रथाओं को अपनाने में सहायता की जा रही है। जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ और जलवायु परिवर्तन पारिस्थिति संतुलन को बिगाड़ते हैं, पशु रोगजनकों के मानव आबादी में फैलने की आशंका बढ़ जाती है। पहले से ही, लगभग 75 प्रतिशत उभरती हुई संक्रामक बीमारियाँ और लगभग सभी हालिया महामारियाँ जानवरों से उत्पन्न हुई हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, इस परत में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं। ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है। यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा। जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण तापमान में वृद्धि हो रही है। कार्बन डाइऑक्साइड को सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होती है। कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। औद्योगिक क्रांति के पश्चात् कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। जैव पदार्थों का अपघटन मीथेन का एक बड़ा स्रोत है। उल्लेखनीय है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है। क्लोरोफ्लोरो कार्बन का प्रयोग मुख्यतः रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है एवं ओजोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वाणिज्यिक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है। पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं वह काफी चिंतनीय है, क्योंकि पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो देंगे। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। विश्व भर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है। पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेजी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है। गर्मी से संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है। पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बनी रहती है। जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा।

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