मुक्त व्यापार समझौतों की अहमियत

डा. जयंती लाल भंडारी। हम उम्मीद करें कि ईएफटीए के बाद अब भारत के द्वारा ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, इजरायल, भारत, गल्फ कंट्रीज काउंसिल और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा। हम उम्मीद करें कि देश मुक्त व्यापार समझौतों की ताकत के साथ आगे बढ़ेगा, साथ ही देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों के अनुरूप तैयार की गई विकसित भारत रू 2047 की विस्तृत कार्ययोजना के एजेंडे पर 8 से 9 फीसदी विकास दर के साथ विकसित भारत की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ेगा। मुक्त व्यापार समझौतों से भारत को निश्चय ही लाभ होने वाला है। हाल ही में 10 मार्च को भारत और चार यूरोपीय देशों के समूह यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (ईएफटीए) ने निवेश और वस्तुओं एवं सेवाओं के दोतरफा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसे व्यापार और आर्थिक समझौता (टीईपीए) कहा गया है। गौरतलब है कि मुक्त व्यापार समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच एक ऐसी व्यवस्था है जहां वे साझेदार देशों से व्यापार की जाने वाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क को खत्म कर देते हैं या कम करने पर सहमत होते हैं। इन संधियों के अंतर्गत 10 से 30 विषय शामिल होते हैं। दुनिया में 350 से अधिक एफटीए वर्तमान में लागू हैं और भारत के द्वारा ईएफटीए देशों के साथ जो एफटीए किया है, वह दुनिया में अहम माना जा रहा है। 2022-2023 के दौरान ईएफटीए देशों को भारत का निर्यात 1.92 अरब डॉलर रहा था। वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान इन देशों से भारत का कुल आयात 16.74 अरब डॉलर था। यानी व्यापार घाटा 14.82 अरब डॉलर हुआ था। नए एफटीए के तहत ईएफटीए ने अगले 15 साल में भारत में 100 अरब डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है। यह भारत का ऐसे समूह के साथ पहला व्यापार करार है, जिसमें विकसित देश शामिल हैं। ईएफटीए के सदस्य देशों में आइसलैंड, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे और लिकटेंस्टाइन शामिल हैं। इस समझौते में 14 अध्याय हैं। इनमें वस्तुओं के व्यापार, उत्पत्ति के नियम, शोध एवं नवाचार, बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), सेवाओं का व्यापार, निवेश प्रोत्साहन और सहयोग, सरकारी खरीद, व्यापार में तकनीकी बाधाएं और व्यापार सुविधा शामिल है जिससे भारत में 10 लाख प्रत्यक्ष नौकरियां निर्मित होंगी।
इस समझौते में व्यापार से ज्यादा निवेश पर जोर दिया गया है और भारत में इस समय निवेश के बेहतरीन मौके हैं। गौरतलब है कि इन चार यूरोपीय देशों से होने वाले भारत के कुल व्यापार में स्विट्जरलैंड की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से अधिक है तथा बाकी की हिस्सेदारी में अन्य तीनों देश शामिल हैं। इस समझौते से डिजिटल व्यापार, बैंकिंग, वित्तीय सेवा, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे सेक्टर में इन चार देशों के बाजार में भारत की पहुंच आसान होगी। इसके बदले में भारत भी इन देशों की विभिन्न वस्तुओं के लिए अपने आयात शुल्क को कम करेगा। यद्यपि कृषि, डेयरी, सोया व कोयला सेक्टर को इस व्यापार समझौते से दूर रखा गया है, साथ ही प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम से जुड़े सेक्टर के लिए भी भारतीय बाजार को नहीं खोला गया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि ग्रीन व विंड एनर्जी, फार्मास, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल्स के साथ उच्च गुणवत्ता वाली मशीनरी के क्षेत्र में ईएफटीए देश भारत में निवेश करेंगे जिससे इन सेक्टर में हमारा आयात भी कम होगा और भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस समझौते से भारतीय निर्यातकों के लिए यूरोप के बड़े बाजार में पहुंच आसान हो जाएगी। इस समझौते में स्विट्जरलैंड के शामिल होने से भारत में लोकप्रिय स्विटजरलैंड के चॉकलेट्स, घड़ी व बिस्कुट भारतीय बाजार में पहले की तुलना में कम कीमत पर मिलेंगे। समझौते के मुताबिक इन दोनों ही वस्तुओं पर लगने वाले वर्तमान के आयात शुल्क को अगले सात साल में चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है। इसलिए हर साल शुल्क में थोड़ी-थोड़ी कटौती होती रहेगी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस समझौते से भारत के साथ ईएफटीए देशों को वृद्धि के लिए भारत के बड़े बाजार तक पहुंच मिली है।
भारतीय कंपनियां भी अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक जुझारू बनाते हुए उनमें विविधता लाने का प्रयास करेंगी। दूसरी तरफ भारत को ईएफटीए से अधिक विदेशी निवेश मिलेगा। इससे अंततरू अच्छी नौकरियों में वृद्धि होगी। कुल मिलाकर भारत को अपनी आर्थिक क्षमता का बेहतर इस्तेमाल करने और रोजगार के अतिरिक्त अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि भारत और ईएफटीए देश व्यापार और निवेश समझौते पर 15 साल से भी लंबे समय से बातचीत कर रहे थे। करीब 13 दौर की वार्ता के बाद 2013 के अंत में इस पर बातचीत रुक गई थी। इसके बाद 2016 में फिर से वार्ता शुरू हुई और चार दौर की बातचीत के बाद अब यह समझौता धरातल पर आया है। वस्तुतरू भारत-ईएफटीए, व्यापार समझौता एक मुक्त, निष्पक्ष और समानता वाले व्यापार की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। इसके जरिए भारत और ईएफटीए देश आर्थिक रूप से एक दूसरे के पूरक बन जाएंगे। ज्ञातव्य है कि ईएफटीए देश यूरोपीय संघ (ईयू) का हिस्सा नहीं हैं। यह मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने और तेज करने के लिए एक अंतर सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना उन देशों के लिए एक विकल्प के रूप में की गई थी जो यूरोपीय समुदाय में शामिल नहीं होना चाहते थे। इसमें कोई दो मत नहीं कि इस समय भारत वैश्विक नेतृत्व कर्ता देश के रूप में उभरकर दिखाई दे रहा है। ऐसे में दुनिया के कई विकसित और विकासशील देश भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने के लिए उत्सुक हैं। दुनिया यह देख रही है कि भारत सबसे तेज अर्थव्यवस्था के साथ आर्थिक विकास की डगर पर तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक पंख लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि अब नए मुक्त व्यापार समझौते भारत को निम्न मध्यम से उच्च मध्यम आय वाला देश बनाने में बड़े मददगार होंगे। निरूसंदेह वर्तमान वैश्विक मंदी और इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर भारत के लिए यह सबक उभरकर दिखाई दे रहा है कि निर्यात बढ़ाने के लिए ईएफटीए के बाद अब अन्य विभिन्न देशों के साथ एफटीए वार्ताओं की गति बढ़ाई जाए।
साथ ही देश में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) की नई भूमिका, मेक इन इंडिया अभियान की सफलता और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के उपयुक्त क्रियान्वयन पर पूर्ण ध्यान देकर निर्यात के संभावित मौकों को मुठ्ठियों में लिया जाए। हम उम्मीद करें कि भारत निर्यात बढ़ाने के मद्देनजर जिस तरह से ऑस्ट्रेलिया व यूएई के साथ किए गए एफटीए लाभप्रद सिद्ध हो रहे हैं, उसी तरह ईएफटीए देशों के साथ किया गया नया समझौता भी निर्यात व वैश्विक व्यापार बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा। इससे देश से निर्यात बढ़ेंगे और बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसरों का निर्माण होगा। हम उम्मीद करें कि ईएफटीए के बाद अब भारत के द्वारा ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, इजरायल, भारत, गल्फ कंट्रीज काउंसिल और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा। हम उम्मीद करें कि देश मुक्त व्यापार समझौतों की ताकत के साथ आगे बढ़ेगा, साथ ही देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों के अनुरूप तैयार की गई विकसित भारत रू 2047 की विस्तृत कार्ययोजना के एजेंडे पर 8 से 9 फीसदी विकास दर के साथ विकसित भारत की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़ेगा।