पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती वनाग्नि

गर्मी का मौसम आते ही देश के पहाड़ी राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड के वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है। वनाग्नि न केवल जंगल, वन्यजीवन और वनस्पति के लिये नए खतरे उत्पन्न कर रही है, बल्कि समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव पड़ता है। वनाग्नि के कारण केवल वनों को ही नुकसान नहीं पहुँचता है बल्कि उपजाऊ मिट्टी के कटाव में भी तेजी आती है, इतना ही नहीं जल संभरण के कार्य में भी बाधा उत्पन्न होती है। वनाग्नि का बढ़ता संकट वन्यजीवों के अस्तित्व के लिये समस्या उत्पन्न करता है। यूँ तो वनों में आग लगने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे वास्तविक कारण हैं, जिनकी वजह से विशेषकर गर्मियों के मौसम में आग लगने का खतरा हमेशा बना रहता है। प्राकृतिक कारण यथा- बिजली का गिरना, पेड़ की सूखी पत्तियों के मध्य घर्षण उत्पन्न होना, तापमान में वृद्धि होना आदि की वजह से वनों में आग लगने की घटनाएँ सामने आती हैं। वनों में अतिशय मानवीय अतिक्रमण हस्तक्षेप के कारण इस प्रकार की घटनाओं में बारंबरता देखने को मिलती है। वनाग्नि में कुछ पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं, जबकि कुछ ऐसे भी वृक्ष होते हैं जो जलकर पूरी तरह नष्ट नहीं होते है, साथ ही कुछ सुप्त बीज आग में जलकर पुनर्जीवित हो जाते हैं। वास्तव में कई स्थानिक पेड़-पौधे आग के साथ विकसित होते हैं, इस प्रकार आग कई प्रजातियों के निष्क्रिय बीजों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है। कुछ वैज्ञानिक वनाग्नि को पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिये पूरी तरह से हानिकारक मानते हैं जबकि इस संबंध में हुए बहुत से अध्ययनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वनाग्नि से अधिकांशतः आक्रामक प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। प्रभावी कार्यवाही करने के लिये वन अधिकारियों और स्थानीय जनजातियों द्वारा आपसी बातचीत से इस मुद्दे को सुलझाया जाना चाहिये ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी दुर्घटना को होने से रोका जा सके। वनों में रहने वाले अधिकतर जनजातीय समुदायों को वन्यजीवों की भाँति वनों में रहने तथा वन उत्पादों का इस्तेमाल करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। इन्हें कृषि कार्यों के लिये वनों की भूमि को जोतने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त है। जंगली हाथियों द्वारा इन अधिवासी लोगों की फसलों को नुकसान पहुँचाने तथा जंगली जानवरों द्वारा बाड़े में बँधे मवेशियों को हानि पहुँचाए जाने के कारण अक्सर आदिवासी लोग जंगलों को आग लगा देते हैं ताकि इससे वन्यजीवों को हानि पहुँचाई जा सके। वनाग्नि को फैलने से रोक पाना संभव नहीं है। अतः इसके लिये अग्नि रेखाएँ निर्धारित किये जाने की आवश्यकता हैं। वस्तुतः अग्नि जमीन पर खिंची वैसी रेखाएँ होती हैं जो कि वनस्पतियों तथा घास के मध्य विभाजन करते हुए वनाग्नि को फैलने से रोकती हैं। चूँकि ग्रीष्म ऋतु के आरंभ में वनों में सूखी पत्तियों की भरमार होती हैं अतः इस समय वनों की किसी भी भावी दुर्घटना से सुरक्षा किये जाने की अत्यधिक आवश्यकता होती है। एकीकृत वन संरक्षण योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य को वनाग्नि प्रबंधन योजना का प्रारूप तैयार करना होता है। इस प्रारूप के अंतर्गत वनाग्नि को नियंत्रित एवं प्रबंधित करने संबंधी सभी घटकों को शामिल करना अनिवार्य है। इन घटकों के अंतर्गत फायर लाइन्स का निर्माण किया जाने का भी प्रावधान है। इन फायर लाइन्स में वैसी वनस्पतियों (सूखी पत्तियों एवं घास युक्त वनस्पति) को उगाया जाएगा जो आग को फैलने से रोकने में कारगर साबित हों। इसके अतिरिक्त, कुछ अन्य उपायों जैसे वॉच टावर का निर्माण करने तथा ठेका श्रमिकों द्वारा रोपिंग की स्थापना करने पर अधिक बल दिया जाता है ताकि जमीनी स्तर पर आग के संबंध में सटीक निगरानी एवं प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके।
अधिकांश जंगल की आग मानवीय गतिविधियों के कारण लगती है। जंगल की आग से बचाव विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है, लेकिन अंत में विभिन्न उपायों का संयोजन सर्वोत्तम सुरक्षा प्रदान करता है। जंगल की आग बुझाने का मुख्य साधन अभी भी पानी ही है। इसलिए बड़े, सन्निहित और आग से खतरे वाले वन क्षेत्रों में उपयुक्त जल प्रवाह के भीतर अग्निशमन जल आपूर्ति प्रणाली का निर्माण या रखरखाव करना या जल निकासी के लिए कृत्रिम जलाशय बनाना आवश्यक है। नए जलाशय बनाते समय वन मालिकों, वन अधिकारियों और अग्निशमन सेवा के बीच एक समझौते की आवश्यकता होती है। यह महत्वपूर्ण है कि ये निष्कर्षण बिंदु पर्याप्त रूप से पहचाने जाएं और अग्निशमन इंजन द्वारा आसानी से पहुंच योग्य हों।
प्राकृतिक जलस्रोतों के साथ-साथ, गहरे या उथले कुओं, कृत्रिम तालाबों, बांधों, भूमिगत जल टैंकों (कुंडों) या जंगलों में या उनके निकट सहायक जल आपूर्ति का उपयोग अग्निशमन जलाशयों के रूप में किया जा सकता है। इन जल निकासी बिंदुओं की कार्यक्षमता और पहुंच की नियमित रूप से जांच की जानी चाहिए। अग्निशमन वाहनों को वन स्टैंड तक पहुंचने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि सड़कें भारी वाहनों को सहन कर सकें। इसी प्रकार टर्निंग और पासिंग बे और पर्याप्त निकासी बनाए रखी जानी चाहिए या बनाई जानी चाहिए। जल जलाशयों के निर्माण की तरह, इस वन बुनियादी ढांचे पर वन अधिकारियों, मालिकों और अग्निशमन सेवा के साथ सहमति होनी चाहिए। आजकल, आग बुझाने के लिए मोबाइल उपकरणों के साथ-साथ, जंगल की आग से लड़ना बहुत से लोगों के लिए कठिन शारीरिक कार्य बना हुआ है, जो आग से लड़ने के लिए उपलब्ध हैं। इसलिए मध्यम से उच्च वन अग्नि जोखिम वाले क्षेत्रों में उपयुक्त अग्निशमन उपकरण और मशीनरी बनाए रखना सभी स्वामित्व प्रकार के वन उद्यमों की जिम्मेदारी है। इनमें कुदाल, फावड़े, आग बुझाने वाले यंत्र और कुल्हाड़ी जैसे हाथ के औजारों के साथ-साथ जंगलों में काम करने के लिए उपयुक्त परिवहन वाहन या ट्रैक्टर और हल शामिल हैं। ऐसे उपकरण और मशीनरी या तो वन उद्यम द्वारा स्वयं रखे जाते हैं या अनुबंधित होते हैं। स्वचालित, कैमरा समर्थित वन अग्नि अवलोकन प्रणालियों की शुरूआत के बाद से, जंगल की आग की संख्या कम नहीं हुई है, लेकिन उनकी सीमा कम हो गई है।