देहरादून: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली में आयोजित त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय वैदिक संगोष्ठी में डॉ. ज्योति प्रसाद गैरोला ( निवासी ग्राम भांगला जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड) ने अथर्ववेद में वृक्ष वनस्पतियों के उपकारक तत्व विमर्श पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। डॉ गैरोला ने बताया कि अथर्ववेद में विभिन्न वृक्ष व वनस्पतियों से विभिन्न औषधियों और जीवनदायिनी उत्पादों का निर्माण किया जाता था। जो की न केवल मानव जीवन की रक्षा करता था अपितु मानव की आर्थिक उन्नति व उनके जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति में भी सहायता प्रदान करते थे। इसके साथ-साथ विभिन्न वनस्पतियों पेड़ पौधों का विभिन्न ग्रह- नक्षत्रों की शांति व उपाय हेतु एक समृद्ध ज्योतिष ज्ञान परंपरा विकसित हुई। वैदिक काल से ही मानव ने वनस्पतियों के साथ सतत विकास की अवधारणा का विकास किया । जो की धीरे-धीरे समय के साथ आधुनिक युग में विकास प्रक्रिया की गति के फल स्वरुप कहीं ना कहीं बाधित हुई।
भारत में पर्यावरण वन्य जीव व वनस्पतियों के संरक्षण हेतु विभिन्न विधियां का निर्माण तथा विभिन्न आंदोलन संपादित हुए हैं। उदाहरण के रूप में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 आदि कानूनी उपायों के साथ-साथ उत्तराखंड में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में प्रारंभ हुए चिपको आंदोलन या कर्नाटक में प्रारंभ हुए एपिको आंदोलन आदि पर्यावरण संरक्षण की इन पहलों के मूल में कहीं ना कहीं वैदिक युगीन अभिप्रेरणा सम्मिलित है।
वर्तमान में भारत सरकार पर्यावरण, वृक्ष-वनस्पतियों के संरक्षण हेतु प्रयासरत है। इसके संदर्भ में नवग्रह वाटिका, पवित्र वन क्षेत्र ,राष्ट्रीय अभ्यारण ,वन्य जीव अभ्यारण आदि की स्थापना की जा रही है और साथ ही नई शिक्षा नीति 2020 के द्वारा नवीन पाठ्यक्रम में पर्यावरण वृक्ष वनस्पतियों आदि के प्रति भावी पीढ़ी को जागरूक व संवेदनशील बनाने के लिए उपाय किए गए हैं। इस अवसर पर प्रो. श्रीनिवास बरखेड़ी कुलपति राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली, प्रो. सतीश चंद्र गढ़कोटी कुलदेशिक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली, पद्मश्री डॉ. सुकमा आचार्या आदि गणमान्य विद्वान उपस्थित थे।
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