#टिहरी के #देवलसारी में #बसा है #तितलियों का #संसार

देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। टिहरी जनपद के देवलसारी में ति‍तलियों का संसार बसा हुआ है। यहां पर तितलियों व पक्षियों की डेढ़ सौ से अधिक प्रजातियां पाई जाती है। जिला मुख्यालय से करीब 85 किमी दूर चंबा-मसूरी मार्ग पर देवलसारी प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। इस स्थल की कई खूबियां हैं जो पर्यटकों व प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर खींच लाती है। इस जगह पर तितलियों की करीब डेढ़ सौ प्रजातियां पाई जाती है। रंग-विरंगी तितलियां प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। तितलियों के अलावा यहां पर सौ से भी ज्यादा पक्षियों की प्रजाति भी पाई जाती है। अन्य जगहों पर जहां पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है वहीं इस जगह पर आज भी विभिन्न प्रजाति की पक्षियां देखने को मिलती है।
यह स्थल अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए यहां पर पर्यावरण विशेषज्ञ, शोध छात्र, प्रकृति प्रेमी समय-समय पर आते रहते हैं। यहां की जैव विविधता को जानने व तितलियां की प्रजातियों के संरक्षण को देवलसारी पर्यावरण संरक्षण एवं विकास समिति ने यहां पर वर्ष 2018 से तितली महोत्सव की शुरूआत की। यहाँ कैक्टस प्रजाति के वृक्षों और टिसरू प्रजाति की वनस्पति भी अधिक मात्रा में पाई जाती हैं, जो लिललियों के अनुकूल होते हैं। कॉमन पिकाज प्रजाति की तितली टिमरू के पेड़ पर बैठकर ही अंडे देती है। देवलसारी समुद्र तल से 1550 मीटर की ऊँचाई पर स्थित स्थित है। यह 80 किमी. आरक्षित वन भू-भाग में फैला हुआ है। देवलसारी में उड़ने वाली गिलहरी भी पाई जाती है, जो किसी अन्य स्थान पर नहीं पाई जाती है। यहाँ चमगादड़ की भी 18 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ हिमालयन ग्रेको प्रजाति की छिपकली भी पाई जाती है जो केवल रात के समय ही बाहर निकलती है। देवलसारी में पाई जाने वाली तितलियों की प्रमुख प्रजातियों में कॉमन लेपई, लाइन बटरफ्लाई, लाइम बटरफ्लाई, इंडियन मोरमोन, प्लेन टाइगर, स्ट्राइप्ड टाइगर, ब्ल्यू टाइगर, ग्लॉसी टाइगर, कॉमन रोज, कैबेस व्हाइट, स्पॉटेड स्वार्ड टेल, बैरोनेट आदि शामिल हैं।
कॉमन पीकॉक को उत्तराखंड में पांचवें प्रतीक का दर्जा मिला हुआ है। देखने में इस तितली के पंखों पर मोर पंखों जैसे चित्र बनें हुए हैं। जो इसकी खूगसूरती में चार-चांद लगाते हैं। काॅमन पीकाॅक पहले पपिलिया पालिक्टर के नाम से जानी जाती थी। पपिलिया बिआनौर के नाम से यह चीन, जापान, कोरिया पूर्वी रूस में पाई जाती थी। 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में चीन ने अपने बटर फ्लाई फर्म में पिपलिया बिआनौर का व्यवसायिक उत्पादन बाहरी देशों के बटर फ्लाई हाउस के लिये करना प्रारंभ किया। तो चीन में 23वीं पीढ़ी तक पिपलिया बिआनौर को पाला पर 24 वीं पीढ़ी में प्यूपा से पिपलिया पालिक्टर पैदा हो गया। जिससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि दोंनों ही तितलियां एक ही हैं। आईसीजेडएन (इंटरनेशनल कमिशन फार जूलौजिकल नामन क्लेचर) के नियमानुसार सबसे प्राचीन नाम से ही इसका नाम कपिलिया बिआनौर रखा गया। काॅमन पिकाॅक के विशेष भोज्य पदार्थ हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले तिमूर के पेड़ हैं। काॅमन पिकाॅक का अस्तित्व तिमूर के पेड़ पर निर्भर है, इसका लार्वा तिमूर के पत्तों पर पलता है। कामन पीकाक जाड़ों में प्यूपा के रूप में सुप्त अवस्था में चली जाती है मार्च में प्यूपा फिर से सक्रिय हो जाता है और मार्च से अक्टूबर तक इसकी लगातार पीढ़ियां उत्पन्न होते रहती हैं।

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