देहरादून। नियम कानूनों को ताक पर रखकर देहरादून प्रेस क्लब का नाम बदल कर उत्तरांचल प्रेस क्लब तो कर दिया लेकिन मठाधीशों की मनमानी के चलते इस क्लब का विवादों से नाता टूटने का नाम नहीं ले रहा है। नए विवाद में क्लब के वर्तमान अध्यक्ष अजय राणा ने एक मैसेज के जरिये अपनी पीड़ा जाहिर कर इन मठाधीशों की मनमानी को लेकर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि मौजूदा कार्यकारिणी सभी को साथ लेकर प्रेस क्लब के हित में निरन्तर रचनात्मक कार्य कर रही है। वह सबके साथ मिलकर कोशिश कर रहे हैं कि क्लब के संविधान को और ज्यादा व्यवहारिक बनाया जाए। इसके लिए संविधान के कुछ जटिल प्राविधानों का सरलीकरण किया जाना जरूरी था। उसके लिए संविधान में दी गई व्यवस्था के तहत उन्होंने संविधान संशोधन आम सभा बुलाई थी। जिसमें सभी सम्मानित सदस्यों के साथ चर्चा करने के पश्चात कुछ संशोधन प्रस्ताव लाए गए, जिनमें अध्यक्ष व महामंत्री पद का चुनाव लड़ने की अहर्ता का सरलीकरण और फोटोग्राफर व कैमरामैन साथियों की शैक्षणिक अर्हता को अन्य सदस्यों के समान करना प्रमुख था।
उन्होंने कहा कि ये संशोधन संविधान संशोधन बैठक में सर्वसम्मति से पारित हुए। क्लब कार्यकारिणी इन संशोधनों को रजिस्ट्रार कार्यालय की वेब साइट में अपलोड करने ही जा रही थी कि उससे पहले ही क्लब के कुछ सदस्यों ने इन संशोधनों के विरोध में रजिस्ट्रार के पास आपत्ति दाखिल कर दी। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि आपत्ति दाखिल करने वाले सदस्यों में कुछ सदस्य ऐसे हैं जिन्होंने संविधान संशोधन आम सभा में उक्त प्रस्तावों का खुले दिल से समर्थन किया था। आपत्ति की जानकारी मिलने के बावजूद कार्यकारिणी ने संशोधित संविधान रजिस्ट्रार कार्यालय की वेब साइट में अपलोड कर दिया। जिसके बाद रजिस्ट्रार का एक पत्र कार्यकारिणी को प्राप्त हुआ है। जिसमें कुछ सदस्यों द्वारा दर्ज की गई आपत्ति का पत्र भी संलग्न है। अजय राणा ने आगे कहा है कि इन आपत्तियों को पढ़कर उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। संशोधन का विरोध करने वाले कुछ सदस्यों ने आम सभा में कहा था कि उन्होंने संशोधनों के खिलाफ कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है। उन्होंने तो सिर्फ इस सूचना पर कि मौजूदा कार्यकारिणी गुपचुप तरीके से अपना कार्यकाल एक और वर्ष का बढ़ाना चाहती है, को लेकर अपनी आपत्ति दाखिल की है। लेकिन अब जबकि रजिस्ट्रार के जरिए आपत्ति की एक कॉपी कार्यकारिणी को उपलब्ध हो चुकी है, जिससे संशोधन का विरोध कर रहे कुछ सदस्यों की मंशा का भंडाफोड़ हो चुका है। क्योंकि यह आपत्ति दो साल का कार्यकाल बढ़ाने को लेकर नहीं बल्कि संविधान संशोधन आम सभा में पारित सभी संशोधनों के खिलाफ की गई है। इस आपत्ति पत्र में दो साल के कार्यकाल का तो कहीं जिक्र है ही नहीं बल्कि संविधान संशोधन आम सभा को ही फर्जी व नियम विरुद्ध बताया गया है।
इतना ही नहीं वर्तमान कार्यकारिणी ने जो नए सदस्य बनाए हैं और पुराने सदस्यों की सदस्यता बहाल की है, उस पर भी रजिस्ट्रार के पास आपत्ति दाखिल की गई है।
उन्होंने कहा है कि हकीकत इससे इतर है क्योंकि वर्तमान कार्यकारिणी से पहले हर साल नए सदस्य बनाने में प्रेस क्लब के संविधान का उल्लंघन होता रहा। उसकी विस्तृत जानकारी वर्षवार उपलब्ध कराई जा सकती है। उन्होंने कहा कि आपत्ति पत्र में रजिस्ट्रार को यह चेतावनी तक दी गई है कि प्रेस क्लब के संविधान में किसी भी प्रकार के संशोधन नहीं होने चाहिए। रजिस्ट्रार को यहां तक धमकाया गया कि यदि एक भी संशोधन लागू हुआ तो उनके कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन किया जायेगा। अजय राणा ने कहा है कि
मित्रो, मैं बड़े आहत मन से आपको बताना चाहता हूं कि उन पर भी पर सीधा आरोप लगाया गया है कि वह अपने कुछ चहेते सदस्यों को चुनावी लाभ पहुंचाने के लिए संविधान में संशोधन करवा रहे हैं। इसके लिए संविधान संशोधन आम सभा के रजिस्टर पर उन्होंने सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर करवाए हैं।
जबकि हकीकत आप सभी को पता है। संविधान में संशोधन की जरूरत इसलिए महसूस हुई ताकि अधिक से अधिक लोग चुनाव लड़ सकें और आम सदस्य उनमें से सबसे बेहतर विकल्प का चुनाव अपने पदाधिकारी के रूप में कर सकें।
उन्होंने आगे कहा इन षड्यंत्रों का सामना करते हुए उनकी कार्यकारिणी सदस्यों के हित में संविधान संशोधन करने को लेकर कृत संकल्प है। वह संविधान में दी गई व्यवस्था के तहत हर एक आपत्ति का जवाब देंगे और प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे।
अंत में उन्होंने कहा है कि क्लब हित में उनके प्रयास निरंतर जारी रहेंगे। यहां पर यह बताना जारी है कि कालांतर में देहरादून क्लब के नाम से चलने वाले इस उत्तरांचल प्रेस क्लब का विवादों से चोली दामन का साथ रहा है। विवादों के चलते प्रेस क्लब लम्बे समय तक बंद भी रहा। वर्ष 2016 में हरीश रावत सरकार के समय क्लब में करवाये जा रहे चुनाव में इन्हीं मठाधीशों की मनमानी के चलते विवाद हुआ था। जिसके बाद यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है । नियम विरुद्ध इस क्लब का नाम बदल कर उत्तरांचल प्रेस क्लब तो कर दिया गया। लेकिन आज भी कुछ मठाधीश क्लब पर अपना प्रभुत्व नहीं छोड़ना चाहते। अब देखना यह है कि भविष्य में यह मनमानी क्या रंग दिखाती है।
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