( डॉ. अनिल चन्दोला)
पूर्व अपर निदेशक, सूचना विभाग। समुद्र तल से लगभग 5945 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आदि कैलाश भारत के उत्तराखंड राज्य में सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में चीन सीमा के नजदीक है। इसी क्षेत्र में प्रसिद्ध ओम पर्वत भी स्थित है। आदि कैलाश देखने में बिल्कुल कैलाश की ही तरह दिखता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह ही आदि कैलाश यात्रा भी रोमांच और खूबसूरती से लबरेज है। आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आदि कैलाश में भगवान शिव एवं माता पार्वती का निवास स्थान है और आदि कैलाश के समीप पार्वती सरोवर है। कहा जाता है कि माता पार्वती इस सरोवर में स्नान के लिए आती थी। इस वर्ष अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आदि कैलाश दर्शन और पार्वती सरोवर/मंदिर की यात्रा करने से पिथौरागढ़ जिले में स्थित इस शिव धाम की देश एवं दुनिया में व्यापक ब्रांडिंग हुई है। भविष्य में इस स्थल के पर्यटन की दृष्टि से तेजी से विकसित होने की आशा जगी है, क्योंकि इस क्षेत्र में तीर्थ यात्रियों को आधारभूत सुविधाएं देने के लिए व्यापक कार्य शुरू हो गया है।
कैलाश के प्रवेश द्वारा गुंजी गांव में शिवधाम बनाने की योजना है। स्वदेश दर्शन योजना के तहत इसके लिए 75 करोड़ रुपये मंजूर किए गए है। शिवधाम में भव्य स्मारक बनाने के साथ ही यात्रियों के लिए यहां होटल, रेस्टोरेंट, ध्यान और योग केन्द्र का भी निर्माण किया जायेगा। स्मारक में फोटो गैलरी म्यूजियम और शिव की भव्य मूर्ति भी स्थापित की जायेगी। गूंजी से बांई ओर लगभग 40 कि.मी. दूरी पर आदि कैलाश और दाई ओर लगभग 18 कि.मी. की दूरी पर ओम पर्वत है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा का भी यही मार्ग रहा है और वर्ष 2019 तक कैलाश मानसरोवर यात्रा पिथौरागढ़-धारचूला-लिपुले से होकर चलती थी। राज्य सरकार द्वारा वायुसेना के साथ समन्वय कर वर्ष 2018 में कैलाश मानसरोवर यात्रियों को पिथौरागढ़ से हैली सेवा के माध्यम से कैलाश मानसरोवर की यात्रा कराई गई थी। वर्ष 2019 के पश्चात इस मार्ग से कैलाश मानसरोवर की यात्रा बंद होने से अब यात्री भारी संख्या में आदि कैलाश की यात्रा पर जा रहे है। यह यात्रा अप्रैल ,मई से अक्टूबर तक संचालित होती है और इस वर्ष तेरह हजार से अधिक यात्रियों ने आदि कैलाश की यात्रा की है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह ही आदि कैलाश यात्रा का महत्व है और यह पंच कैलाशों में एक कैलाश है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार आदि कैलाश और ओम पर्वत को बहुत पवित्र माना जाता है। स्कन्ध पुराण के मानसखंड में आदि कैलाश और ओम पर्वत की यात्रा को कैलाश-मानसरोवर यात्रा के बराबर का महत्व दिया गया है। आदि कैलाश की यात्रा के लिए हल्द्वानी-काठगोदाम- अल्मोड़ा होकर पिथौरागढ़ या फिर टनकपुर- चम्पावत होकर पिथौरागढ़ आना पड़ता है। यहां से धारचूला आते है। धारचूला तहसील मुख्यालय है । यहां से गुंजी की दूरी लगभग 72 किलोमीटर है। गुंजी से ही आदि कैलाश और ओम पर्वत की यात्रा आगे बढ़ती है। इनर लाइन में होने के कारण इस क्षेत्र की यात्रा बाहरी व्यक्ति यात्री परमिट लेकर ही करते है। एस.डी.एम. कार्यालय धारचूला से परमिट प्राप्त किया जाता है। जहां यात्रियों का स्वास्थ्य परीक्षण कर परमिट निर्गत किया जाता है। विदेशियों के लिए यहां परमिट नही दिया जाता है। जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से धारचूला की दूरी 90 कि.मी. है। धारचूला से उच्च हिमालयी क्षेत्र की अदभुत रोमांचकारी यात्रा शुरू होती है। पहाड़ी के नीचे कल कल बहती काली नदी यात्रा का रोमांच और भी बढ़ा देती है। छियालेख में स्थित आई.टी.बी.पी. की चैक पोस्ट पर यात्रियों के परमिट की जांच कर ही आगे यात्रा की अनुमति दी जाती है। इस उच्च हिमालयी सीमांत क्षेत्र में सेना, आई.टी.बी.पी. पूरी मुस्तैदी के साथ सीमाओं की सुरक्षा के साथ ही स्थानीय लोगों की चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध करा रही है। छियालेख से सड़क बिल्कुल नीचे पाताल की तरफ जाती है, जिसमें कई मोड़ यात्रा का रोमांच और भी बढ़ा देते है। अनेक मोडो से गुजरने के पश्चात ब्यास घाटी के गर्बियांग, बून्दी गुन्जी, नाबि, कुटी, नपलच्यूं आदि गांव आते है। ब्यास घाटी में सात गांव है। जिसमें अंतिम गांव कुटी है। शीत ऋतु में इन गांवों के निवासी धारचूला चले जाते है। गुंजी,नपल्यूं में काली नदी का संगम कुटी, नदी से होता है। यहां की स्थानीय भाषा में नदी को यागंति कहते है। गुंजी से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर नाबि गांव है। जहां यात्रा काल में खूब रौनक रहती है। स्थानीय लोगो द्वारा यहां कई होम स्टे संचालित किये जा रहे है। इस गांव में एक दो सौ वर्ष पुराना ऐतिहासिक मकान आज भी सुरक्षित है।
आदि कैलाश की यात्रा के लिए नाबि गांव से आगे बढ़ा जाता है, जहां पर इस घाटी का अंतिम गांव कुटी आता है। कुटी से बर्फीले मार्ग से आगे बढ़ते हुए 4572 मी. की ऊंचाई पर ज्योलीकांग आता है, जहां से बिल्कुल सामने आदि कैलाश के दर्शन होते है। हिमाच्छित चोटियों के मध्य भगवान शिव का यह धाम छोटा कैलाश अदभुत है। जो ब्रहम पर्वत के समीप स्थित है। ज्योलीकांग में सेना का शिविर है, जो आदि कैलाश आने वाले यात्रियों को मेडिकल सुविधा भी आवश्यकता पर उपलब्ध कराते है। ज्योलिकांग का तापमान शून्य डिग्री से नीचे रहता है और प्रकृति का अदभुत नजारा यहां दिखता है।
ज्योलीकांग से ट्रेकिंग करते हुए लगभग तीन से चार कि.मी. दूर पर पार्वती सरोवर है । इसके पास ही एक मंदिर है। पार्वती सरोवर का पानी बिल्कुल साफ एवं स्वच्छ है, इसके पास ही गौरीकुंड है। पार्वतीकुंड उच्च हिमालयी क्षेत्र में 4497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि यहां माता पार्वती ने शिव की अराधना की थी। पार्वती मंदिर कुण्ड से बिल्कुल सामने आदि कैलाश के दर्शत होते है।
आदि कैलाश की यात्रा कुछ समय पहले तक एक कठिन यात्रा थी। पैदल मार्ग और ट्रेकिंग के द्वारा यात्री इस यात्रा का आनंद लेते थे। अब भारत सरकार के द्वारा इस क्षेत्र में सड़क का निर्माण किया जा चुका है। आज भी बी.आर.ओ. इस सड़क को ठीक करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य कर रहा है। एक दुरूह यात्रा को सुगम बनाने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार पूरी सक्रियता से कार्य कर रही है। स्थानीय युवाओं द्वारा गुंजी नाबि आदि गांवों में बड़े पैमाने पर होम स्टे शुरू किए गए है। नाबि में अतिथि होम स्टे संचालित करने वाले युवा युग नबियाल प्रधानमंत्री की इस क्षेत्र की यात्रा में बहुत आशन्वित है। उनका मानना है कि अब इस क्षेत्र के पर्यटन विकास को एक नया आयाम मिलेगा। आदि कैलाश यात्रा को और बेहतर ढंग से संचालित करने के लिए कुमाऊं मण्डल विकास निगम भी पूरी मुस्तैदी से आगे आया है। भविष्य में नैनीसैनी हवाई पट्टी, पिथौरागढ़ के क्रियाशील हो जाने तथा धारचूला से ज्योलीकांग तथा सड़क सुविधा बेहतर हो जाने से आदि कैलाश और ओम पर्वत आने वाले यात्रियों की संख्या में भारी इजाफा होने के पूरे आसार है।
ब्यास घाटी का यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। केन्द्र एवं राज्य सरकार इसके विकास के लिए पूरी तरह से कार्य कर रही है। इस क्षेत्र में एक पावर हाउस का निर्माण अंतिम चरण पर है, जिससे इस क्षेत्र में एक नई रोशनी पहुंचेगी। अभी इन गांवों में सोलर प्रकाश की व्यवस्था है। आने वाले समय में भोले का यह धाम पर्यटन एवं तीर्थ का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है।
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