वर्ष 2023 में बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में देश ने हासिल की उल्लेखनीय सफलताएं

वर्ष 2023 में ऐसी दो घटनाएं हुईं जो देश की सामूहिक चेतना पर अमिट छाप छोड़ गईं। पहला, जब भारत ने अंतरिक्ष में लंबी छलांग लगाई और चंद्रयान सफलतापूर्वक चांद पर उतरा। दूसरा, जब देश ने अपनी अंतरात्मा में झांक कर देखा और एक सुर में तय किया कि अब वह न तो अपने बच्चों को बाल विवाह के नाम पर दासता की बेड़ियां पहनाएगा और न ही उन्हें और यातनाओं का शिकार होने देगा। पहली उपलब्धि बहिर्मुखी थी। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक लंबी छलांग थी जिसे देखा जा सकता था लेकिन दूसरी उपलब्धि जमीनी प्रयासों का नतीजा थी जहां देशवासियों ने एक साथ हाथ उठाकर निश्चय किया कि वे बाल विवाह की सदियों पुरानी कुरीति को खत्म करके मानेंगे।

दुनिया में कुल 223 मिलियन बाल वधुएं हैं हैं जिसमें एक तिहाई अकेले भारत की हैं। स्वतंत्र भारत में बाल विवाह के खिलाफ आज से कुछ वर्षों पहले तक समाज सुधारकों से लेकर सरकारी विभागों तक के प्रयास कभी अनसुने हो कर रह गए तो कभी मामूली से शोर से आगे नहीं बढ़े। और ये किसी बदलाव के लिए पूरी तरह नाकाफी थे। लेकिन अब स्थिति अलग है। आज से चंद वर्षों बाद अगर कोई बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत और इसके खात्मे का क्रमिक वृतांत लिखेगा तो 2023 को उस साल के रूप में याद किया जाएगा जहां बच्चों के साथ इस अपराध के खात्मे के अभियान ने निर्णायक शक्ल अख्तियार की। पहली बार 2023 में यह हुआ जब देश के 17 राज्यों ने एक साथ मिलकर ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ छेड़ा जो जल्द ही सुनामी में बदल गया। देश के 3,79,972 गांवों और 9,91,859 स्कूलों में बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाई गई और कुल 4,91,25,475 लोगों ने शपथ लेकर कहा; बहुत हो चुका, बाल विवाह की आड़ में बच्चों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या अब और नहीं।

एक अभिनव पहल और बाल विवाह के खिलाफ बेमिसाल राष्ट्रव्यापी अभियान में 16 अक्टूबर को पूरे देश से सरकारी विभागों के कर्मचारी, युवा और बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे नारे लगाते हुए सड़कों, गलियों और गांवों की पगड़ंडियों पर निकले। बाल विवाह को रोकने की शपथ लेते हुए इन्होंने पूरे दिन तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया और शाम को हाथ में मशाल और मोमबत्ती लेकर जुलूस निकाल कर इस कुप्रथा के खिलाफ अलख जगाया। बाल विवाह मुक्त भारत अभियान में हिस्सेदारी करते हुए थानों से लेकर कचहरी तक, पंचायतों से लेकर सामुदायिक भवनों तक बच्चों से लेकर वृद्ध महिलाएं और बाल विवाह की पीड़िताओं सहित पूरे देश ने इस अभियान के प्रति व्यापक समर्थन जताया और देश से इस अभियान के खात्मे की प्रतिबद्धता जताई। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि खामोशी से शुरू हुआ ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ अब सुनामी में तब्दील हो चुका है। तमाम सरकारी विभाग खुद आगे आकर इस अभियान को दिशा दे रहे हैं और इसे सफल बनाने के लिए जीतोड़ प्रयास कर रहे हैं। इस राष्ट्रव्यापी अभियान की अगुआई महिला कार्यकर्ताएं और 160 सामुदायिक संगठन मिलकर कर रहे हैं। देश के 300 जिलों में चलाए जा रहे इस अभियान का लक्ष्य 2030 तक बाल विवाह का खात्मा करना है।

इसी बीच, प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भुवन ऋभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ का 11 अक्टूबर को देश के 200 जिलों में एक साथ लोकार्पण हुआ। यह चर्चित किताब 2030 तक भारत से बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी कदमों और उपायों की एक स्पष्ट रूपरेखा पेश करती है। इस किताब ने ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान से जुड़े 160 सामुदायिक संगठनों की इस साझा लड़ाई को एक सशक्त रणनीतिक औजार मुहैया कराया है।
भारत को 2030 तक बाल विवाह मुक्त कराने का यह महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के उन अनुमानों के विपरीत है कि अगर देश में बाल विवाह के खिलाफ प्रगति की मौजूदा रफ्तार पिछले दशक जैसी ही रही तो 2050 तक कहीं जाकर बाल विवाह की दर छह फीसद तक आ पाएगी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-21) के अनुसार 20 से 24 साल के आयुवर्ग की 23.3 फीसद महिलाओं का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था।

इस संदर्भ में देखें तो बाल विवाह के खिलाफ महज साल भर से कुछ ज्यादा के अर्से में 4,91,25,475 लोगों के शपथ लेने की घटना अभूतपूर्व है। यह भले ही दिल्ली के अखबारों की सुर्खियां नहीं बन पाई लेकिन इस उपलब्धि को देश के हर व्यक्ति को बताने की आवश्यकता है ताकि लोग इसके बारे में जान सकें और साथ ही इस अभियान ने जो रफ्तार पकड़ी है, वह मद्धिम नहीं होने पाए।

 

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