बड़े जिम्मेदारों तक नहीं पहुंची जांच की आंचः डा हरक

देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध कॉर्बेट नेशनल पार्क की पाखरो रेंज में टाइगर सफारी के नाम पर हुए घोटाले की जांच भले ही सीबीआई कर रही हो, लेकिन इसका एक पहलू ये भी है कि इससे पहले कभी बड़े ओहदेदारों तक जांच एजेंसियां पहुंच ही नहीं पाई। ऐसे में गड़बड़ी के नाम पर जांच का दायरा जेल जा चुके किशनचंद और बृज बिहारी शर्मा तक ही सीमित दिखाई दिया। जबकि इससे पहले विभागीय जांचों में शासन से लेकर महकमे के अफसरों तक पर टिपणियां की गई। हालांकि अब पहली बार तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह ने बड़े अफसरों के नाम लेकर राजनीतिक रूप से सनसनी मचा दी है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हजारों पेड़ों के अवैध कटान की खबर राष्ट्रीय मुद्दा रही है। उत्तराखंड सरकार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पाखरो टाइगर सफारी का मुद्दा पहुंचा। तमाम जांचों के बावजूद शिकंजा केवल तत्कालीन डीएफओ किशन चंद और रिटायर्ड रेंजर बृज बिहारी शर्मा तक ही सीमित दिखा। इन दोनों रिटायर्ड अफसरों को सलाखों के पीछे तक भेज दिया गया। लेकिन मामले में बाकी किसी भी बड़े अधिकारी या सफेदपोश का नाम न तो एफआईआर में आया, न ही इनसे कड़ी पूछताछ की ही कोई जानकारी आयी।
यह स्थिति तब है जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के स्तर पर गठित तीन सदस्यीय कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कई अफसरों को इसके लिए जिम्मेदार माना है। इसी साल 2023 में जनवरी और फरवरी के महीने में स्थलीय निरीक्षण के बाद इस टीम ने विभिन्न स्तर पर हुई गड़बड़ियों की रिपोर्ट तैयार की थी।
इस तरह कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के भीतर पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर कई तरह के काम किए गए और इसके लिए बड़े अफसरों ने कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया। बड़ी बात यह है कि इन तमाम कामों में शासन से लेकर विभाग और कॉर्बेट प्रशासन तक की अपनी अपनी भूमिका रही, लेकिन कोई भी गड़बड़ी और नियम विरुद्ध हो रहे कामों को रोकने की जिम्मेदारी नहीं निभा पाया। हालांकि इस मामले में सीबीआई जांच से ठीक पहले विजिलेंस ने तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत की भी घेराबंदी करते हुए उनके ठिकानों पर छापेमारी की थी। लेकिन इन तमाम स्थितियों के बीच हरक सिंह रावत ने शासन से लेकर वन महकमे तक के उन अफसरों को भी लपेटे में लिया है जो महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों पर थे और जिनकी भूमिका भी सवालों के घेरे में हैं।

पाखरो टाइगर सफारी निर्माण के दौरान कार्यरत बड़े अधिकारियों के नाम
उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री के तौर पर हरक सिंह रावत संभाल रहे थे जिम्मेदारी। प्रमुख सचिव वन के तौर पर आनंद वर्धन की महत्वपूर्ण भूमिका थी। पीसीसीएफ हॉफ की अहम जिम्मेदारी पर राजीव भरतरी थे। पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ के तौर पर विनोद सिंघल और अनूप मलिक के पास अलग अलग समय में दायित्व रहा।चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन जेएस सुहाग रहे, जिन्हें निलंबित किया गया था। हाल ही में उनका निधन हो गया है। तत्कालीन पीसीसीएफ गढ़वाल के पद पर रहे सुशांत पटनायक पर भी कमेटी ने टिप्पणी की है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में निदेशक की सबसे अहम जिम्मेदारी पर राहुल थे, जिनपर नहीं हुआ कोई एक्शन।

सवालों के घेरे में कई जिम्मेदार अधिकारी
वैसे तो इस मामले की अलग-अलग कई जांच हुई हैं, लेकिन भारत सरकार की एक जांच में अलग-अलग स्तर पर कई अधिकारियों को पाखरो टाइगर सफारी के नाम पर हुए अवैध कामों के लिए जिम्मेदार माना है। भारत सरकार से अंतिम मंजूरी मिलने के बावजूद सफारी और दूसरे कामों के लिए शासन स्तर पर प्रशासनिक और वित्तीय मंजूरी दिए जाने को भी गलत ठहराया गया है। यानी इसमें शासन स्तर के अधिकारी की जिम्मेदारी भी सवालों के घेरे में है।

हरक सिंह रावत इन अधिकारियों का सीधे तौर लिया नाम
विभाग के मुखिया तत्कालीन पीसीसीएफ हॉफ राजीव भरतरी को इसमें आरोप पत्र दिया गया, लेकिन तत्कालीन प्रमुख सचिव, पीसीसीएफ वाइड लाइफ, डायरेक्टर कॉर्बेट के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत ने पहली बार शासन के बड़े अधिकारी से लेकर विभाग के बड़े अधिकारियों के सीधी तौर पर नाम लेते हुए उनकी गलत कामों को रोकने के लिए अहम जिम्मेदारी होने की बात कह दी है। हरक सिंह रावत का यह बयान उस समय आया है, जब सीबीआई मामले की जांच कर रही है और लगातार वन विभाग के अधिकारियों से भी दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।

नवंबर 2020 में तत्कालीन वन मंत्री ने पाखरो टाइगर सफारी का शिलान्यास किया था।
वन संरक्षण अधिनियम 1980 का इसे माना गया घोर उल्लंघन।
भारत सरकार से फाइनल मंजूरी मिले बिना सफारी के लिए प्रशासनिक, वित्तीय और कार्यदेश जारी कर दिया गया।
इसके लिए कमेटी ने उन सभी अधिकारियों को जिम्मेदार माना, जिन्होंने राज्य स्तर पर वित्तीय और प्रशासनिक स्वीकृति दी।
मोरघट्टी में बिना स्वीकृति के बना दिए गए फॉरेस्ट रेस्ट हाउस।
कुगड्डा फॉरेस्ट कैंप में भी किया गया अवैध कंस्ट्रक्शन।
सनेह में बनाया गया भवन। इसके लेआउट प्लान के विपरीत हुआ तैयार।
पाखरो फॉरेस्ट रेस्ट हाउस के पास भी बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान किया गया।
केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से अंतिम मंजूरी के बिना टाइगर सफारी के लिए बजट का प्रावधान किया गया।
हाथी दीवार के निर्माण में भी काटे गए पेड़ और बिना प्रॉपर प्लानिंग के बनाई गई दीवार।