महर्षि महेश योगी की विरासत चैरासी कुटिया अपने पुराने वैभव में लौटेगी

देहरादून। ऋषिकेश स्थित महर्षि महेश योगी की विरासत चैरासी कुटिया अपने पुराने वैभव में लौटेगी, इसके लिए प्रयास शुरु हो गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस आश्रम के बारे में जानने के बाद उत्तराखंड सरकार को इसके पुनरोद्धार की योजना पर काम करने का आग्रह किया था। पिछले दिनों वन विभाग ने पीएमओ को पत्र भेजकर जानना चाहा था कि प्रधानमंत्री चैरासी कुटिया का किस रूप में पुनरोद्धार चाहते हैं, इस पर पीएमओ की ओर से भी एक खाका भेजा गया है। बताया जा रहा है कि चैरासी कुटिया को ध्यान-योग केंद्र के साथ ही वन और वन्य जीवन से जोड़ते हुए कायाकल्प किया जाएगा। केंद्र सरकार का आयुष मंत्रालय भी इस परियोजना में शामिल रहेगा। आयुष से जुड़ी गतिविधियों को इसमें शामिल किया जाएगा। योजना का खाका तैयार होने के बाद प्रस्ताव को मंजूरी के लिए कैबिनेट में लाया जाएगा।
महर्षि महेश योगी ने ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में 60 के दशक में जिस शंकराचार्य नगर (चैरासी कुटिया) की स्थापना की थी, वह आज बदहाल स्थिति में है। प्रसिद्ध अमेरिकन म्यूजिकल ग्रुप बीटल्स ग्रुप के चार सदस्य जॉन लिनोन, पॉल मेकार्टनी, जार्ज हेरिशन व रिगो स्टार वर्ष 1967-68 में पूरे एक साल इस केंद्र में रहे और भावातीत ध्यान की दीक्षा ली थी। बीटल्स ग्रुप के इन सितारों ने यहां रहते हुए महर्षि महेश योगी के सानिध्य में 48 गीतों की रचना की। इनमें से 18 गाने उनकी प्रसिद्ध एलबम द व्हाइट में शामिल किए गए। इन गानों ने पूरी दुनिया में धूम मचाई। तब से इस स्थान को पूरी दुनिया में बीटल्स की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार चैरासी कुटिया के विकास की योजना पर काम किया जा रहा है। परिक्षेत्र में जो कुछ पहले से वहां मौजूद है, उसे पुराने स्वरूप में लाया जाएगा। यहां वन, वन्यजीव संसार के साथ ध्यान-योग, मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य, पंचकर्म इत्यादि गतिविधियां शुरू की जाएंगी।
इस परिसर के सबसे आखिर में मेडिटेशन हॉल और 84 कुटिया स्थित है। यह एक भवन है जिसमें 84 छोटे-छोटे कमरे हैं जिसमें साधक ध्यान लगाते थे। असल में इन्हीं कुटिया के नाम पर इस आश्रम का नाम चैरासी कुटिया पड़ा। कमरे बहुत छोटे किंतु रोशनीदार और हवादार हैं। योग के 84 मुद्राओं पर आधारित इन चैरासी कुटिया का निर्माण किया गया था। इसको पार करते ही एक खुला प्रांगण है जो कि मेडिटेशन हॉल है। यहां पर एक साथ कई लोग मेडिटेशन कर सकते हैं। द बीटल्स बैंड में 4 सदस्य थे जिनके नाम जॉन लेनन, पॉल मकार्टने, जॉर्ज हैरिसन और रिंगो स्टार है। जॉर्ज की पत्नी ने वेल्स में महर्षि महेश योगी जी के सेमिनार में हिस्सा लिया और उन्होंने जॉन को इसके बारे में बताया। जॉन की उत्सुकता ने बैंड के बाकि तीनों सदस्यों को भी योगी जी के सेमिनार तक पंहुचा दिया। सेमिनार के दौरान वे योगी जी द्वारा सिखाये गए अतीन्द्रिय ध्यान (ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन) से बहुत प्रभावित हुए। इसी ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन की कला सीखने के लिए उन्होंने ऋषिकेश जाने का निश्चय किया। सन 1968 में ये सभी अपनी पत्नियों महिलामित्रों के साथ भारत आये। अपनी यात्रा के दौरान वे इसी चैरासी कुटिया में ठहरे थे। उनके आने के पश्चात ही इस स्थान को ख्याति प्राप्त हुई और यह बीटल्स आश्रम के नाम से भी जाना जाने लगा। फिर क्या था, इस स्थान पर पर्यटकों का हुजूम आने लगा और योग के प्रचार प्रसार को और बल मिला। बीटल्स बैंड का मुख्य उद्देश्य ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन सीखना था। योग और ध्यान का यह समय उनके करियर के लिए एक वरदान साबित हुआ। ऋषिकेश में उन्होंने कई गानें रिकॉर्ड किये जिसे बाद में उन्होंने अपने एल्बम (द वाइट एल्बम) में सम्मिलित किया। ये गानें आगे चलकर काफी प्रसिद्द हुए। आश्रम के वातावरण में शांति, आध्यात्मिकता और सुकून था, जो संगीत बनाने के लिए अनुकूल था। यहाँ तक कि जॉर्ज हैरिसन ने मशहूर सितार वादक पंडित रवि शंकर जी से सितार बजाना भी सीखा। दोनों में काफी गहरी मित्रता भी हो गयी। महर्षि महेश योगी जी को अपनी ऋषिकेश यात्रा के दौरान गंगा किनारे का यह स्थान भा गया। उन्होंने उस समय उत्तर प्रदेश सरकार से यह भूमि 15 साल के लिए लीज पर लेने का आग्रह किया। सरकार से उनको वह भूमि 40 साल के लिए प्राप्त हो गयी। बताते चले की यह स्थान राजाजी नेशनल पार्क का ही एक हिस्सा है। अपने एक विदेशी अनुयायी के किये गए सहयोग से योगी जी ने इस स्थान का निर्माण कार्य करवाया। उस समय इसका नाम योगी जी ने इंटरनेशनल अकेडमी ऑफ मेडिटेशन रखा। निर्माण के बाद योगी जी ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन का प्रचार प्रसार करने के लिए यूरोपीय देशो के दौड़े पर चले गए। उनका ज्यादातर समय विदेशो में योग की आध्यात्मिकता विश्व भर में पहुंचाने में व्यतीत होने लगा। इसी बीच बीटल्स के साथ-साथ अन्य विदेशी पर्यटक कुछ समय तक स्थान का भ्रमण करने आते रहे। देखरेख और संचालन की कमी होने के कारण धीरे-धीरे यह आश्रम वीरान होता गया। सभी इमारतंे खंडहर में बदलने लगी। सन 2000 के आसपास प्रशासन ने इस जमीन को फिर अपने अधिकार में ले लिया और इसको पर्यटकों के लिए खोल दिया। तब से यह ऋषिकेश का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।

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