सन 1984 में जब अलीगढ़ मैं था, 1984 में हल्की सी भनक मुझे प्रथक उत्तराखंड राज्य की सुगबुगाहट के रूप में लगी थी,हालांकि इससे पहले भी कई बार राज्य के बारे में चर्चाएं उठी थीं। सन 1984 में ही ट्रांसफर होकर देहरादून आया। मेरे दिमाग में तब उत्तराखंड राज्य के प्रति हमेशा इच्छा जाग्रत रहती थी जिसका प्रमाण यह था की 1986 में एक लेख " जरूरत है उत्तराखंड के साथ के न्याय की " लिख कर दैनिक हिंदुस्तान दिल्ली को भेजा था,पर तब आश्चर्य हुआ देखा जब वो प्रकाशित हुआ,तब लगा था मेरी सोच सही है। फिर मेरा ट्रांसफर चिन्यालीसौड़ मनेरी भाली निर्माणाधीन प्रोजेक्ट में हुआ। जहां सिंचाई विभाग और हाईडिल के कई डिविजन थे और गांव बहुत दूर दूर ऊंची पहाड़ियों पर बसे थे। कालोनी के नीचे उत्तरकाशी टिहरी मार्ग पर एक इंटर कॉलेज तथा चंद दुकानें थीं। जल्दी लेखन और क्रिकेट के कारण मेरी वहां अच्छी पहचान बन गई थी।
तभी 16 जून 1994 में शिक्षा में आरक्षण की घोषणा के साथ ही आरक्षण के विरोध में आंदोलन एकाएक गर्म हो उठा था और जल्द ही आरक्षण विरोधी आंदोलन ने, उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के लिये, धीमे धीमे जलते आंदोलन में अपने को समाहित कर आग में और घी का काम किया था।
अब आरक्षण विरोधी लक्ष्य नहीं रह गया था, लक्ष्य पर था एक ही उद्देश्य ' पृथक उत्तराखंड राज्य'। ' आज दो अभी दो उत्तराखंड राज्य दो ' जैसे स्वरों से पहाड़ घाटियां पगडंडियां गूंजने लगी थी। उत्तरकाशी अभी शांत ही था कि दिनांक 1 सितंबर में खटीमा गोलीकांड फिर शाम को हमें चिन्यालीसौड़ पीपल मंडी में घूमते मसूरी गोली कांड में 8 लोगों के मरने की खबर ने सकते में डाल दिया था। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा हो गया होगा। हम सब भाग भाग कर एक दूसरे से मिलकर सच्चाई जानने में लगे थे पर विश्वास तभी हुआ जब आकाशवाणी से समाचार सुना। क्योंकि तब मसूरी की टेलीफोन लाइन बंद कर दी गई थी। वहां से कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। पूरी कॉलोनी, बाजार में मातम छा गया था ।
सुबह 10:00 बजे मैंने, प्रीतम सिंह पंवार जी, शूरवीर सिंह रांगड जी, रावत जी, नौटियाल जी, सत्य प्रसाद रमोला जी,आदि ने सैकड़ों लोगों को एकत्रित किया और जल्दी बाजार कार्यालय सब बंद करा दिए थे। फिर तो यह बंद रैली हर रोज का कार्यक्रम हो गया था। टिहरी, पौड़ी, श्रीनगर, देहरादून, ऋषिकेश की प्रतिदिन की खबरें चिन्यालीसौड़ के आंदोलनकारियों में जोश का संचार कर देती थीं।
जल्दी ही राजकीय इंटर कॉलेज चिन्यालीसौड़ के प्राध्यापक प्रह्लाद सिंह बिष्ट जी आंदोलनकारियों से आ मिले। खटीमा,मसूरी गोलीकांड से वातावरण और गरमा उठाता था। ब्लॉक कार्यालय में अनशन प्रारंभ हो गया था। बलवीर सिंह बिष्ट ग्राम प्रधान एवं एडवोकेट भी आंदोलन में आ गए और हम लोगों के साथ जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। एक दिन सड़क पर चलते-चलते मुझ से बोले सकलानी जी कुछ ऐसा करो लिखो कोई अच्छी कविता लिखो जो मीटिंग में उत्तेजना भर दे। जुलूस में चलते चलते 10 मिनट में ही अंदर ही अंदर भावों का ऐसा मंथन हुआ की मैंने "जन्म इसे लेने दो" कविता लिखकर जहां बलवीर सिंह जी बैठे थे के ऊपर दीवार में टांग दी थी। कविता सबको बहुत पसंद आई,जो कई जगह प्रकाशित हुई। श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी ने इसे अपनी पुस्तक "उत्तराखंड अत्याचार एवं पुकार" में प्रकाशित किया। फिर कोटद्वार से श्री पद्मेश बुडाकोटी जी ने इसे अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "उत्तराखंड आंदोलन का दस्तावेज" की शुरुआत इसी कविता से प्रारंभ की थी। बाद में मुंबई से प्रकाशित एक पुस्तक में लेखक ने अपनी पुस्तक में इसे स्थान दिया। फिर दैनिक जागरण ने अपने रविवारीय परिशिष्ट में बहुत आकर्षक ढंग से इसे प्रस्तुत किया था और फिर बाद में श्रीनगर से "वर्तमान उत्तराखंड" पत्रिका ने इसे प्रकाशित किया था।
रोज बाजार कार्यालय स्कूल जुलूस निकालकर प्रदर्शन कराकर बंद कराए जाते थे। सभा में उत्तेजक भाषण होते थे। चिन्यालीसौड़ बाजार में मैंने मुलायम सिंह यादव और नरसिम्हा राव की मृत्यु की घोषणा कर 1 मिनट की शोक सभा भी करवा दी थी जिस पर उनके समर्थक मुझ पर काफी नाराज हुए थे। हर दूसरे दिन पुतले फूंके जाते थे। मशाल जुलूस एक शाम 7:00 बजे हम लोगों ने निकाला उसके जवाब में छोटे बच्चों से रात को 12:00 बजे मैंने निकलवाया था। 16 अगस्त को मेरे द्वारा उत्तराखंड राज्य पर शाम को शिशु मंदिर स्कूल में गोष्ठी आयोजित की गई,जिसका संचालन मैंने और अध्यक्षता प्रधानाचार्य तिवारी जी ने की थी, गोष्टी में अनेक लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए थे। अगले दिन टिहरी आंदोलनकरियों की एक टीम आई उसने मेरे घर पर आगे के कार्यक्रम की मीटिंग रखी, फिर कुछ फंड आंदोलन के लिए एकत्रित करने की शुरुआत की। जब मैंने राशि देनी चाही तो आंदोलनकारियों ने यह कहा कर लेने से इंकार कर दिया की वैसे भी आप आंदोलन के हित में बहुत कार्य कर रहे हैं इसलिए आपसे नहीं लेंगे। बीच बीच में देहरादून में सुशील बलूनी जी,रविंद्र जुगरण जी,कमला पैंट जी,रंजीतसिंह वर्मा जी से बात होती रहती थी।
इस बीच कुछ लोगों ने रात में धरासू के फारेस्ट विभाग के गोदाम से कुछ विस्फोटक चुरा लिया था। रात में 12:00 बजे मुझे फोन पर आदेश हुआ कि कुछ लोगों ने विस्फोटक चुरा कर छुपा दिया है,भागीरथी के किनारे। इस कारण हम लोग अंडर ग्राउंड हो रहे हैं, कल से समाचार पत्रों के लिए सारी रिपोर्टिंग आप करेंगे।
रामपुर तिराहा कांड से आंदोलनकारी बहुत व्यथित हो उठे थे और तब दशहरे के पर्व पर हम सब ने घोषणा की है कि कोई दशहरा नहीं मनाएगा रावण के स्थान पर नरसिम्हा राव और मुलायम सिंह के पुतले फूंके जाएंगे। दिवाली पर किसी ने घर में दिया तक नहीं जलाया। पूरा चिन्यालीसौड़, पीपल मंडी,बाजार, कॉलोनी, में अंधेरा छाया रहा था। देश के इतिहास में यह अनोखी दीपावली थी। एक रात बच्चों का जलूस निकलने के लिए मैंने बच्चों को बुलाया जब, तब मेरी बेटी जो मसूरी में तीसरी कक्षा में पढ़ रही थी चिन्याली आई हुई थी क्योंकि स्कूल आंदोलन के कारण बंद थे,से मैंने कहा तुम भी जलूस में चलो तो उसने कहा 'हमें क्या मिलेगा जलूस में जा कर' तो मैंने उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया था यह कह कर जिन्होंने जान दे दी क्या कुछ पाने के लिए दी थी,बाद में मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ था।
चिन्यालीसौड़ आंदोलन की खबरें सुन तब राजनाथ सिंह, मुरलीमनोहर जोशी, कलराज मिश्र, साध्वी ऋतंभरा कुछ कुछ दिन के अंतराल से चिन्यालीसौड़ आए थे जिनका मैंने और आंदोलनकारियों ने स्वागत किया था। आंदोलन के दौरान बाजार में एक दिन सभा को संबोधित करते मैंने लोगों से कहा - एक दिन ऐसा आपके जीवन में आएगा जब आप अपने बच्चों को गर्व से बताएंगे कि आपने किस तरह आंदोलन में भाग लिया था। जैसे-जैसे समय बिता सरकार के रवैए से लोग निराश हुए थे। इन छ वर्षों के दौरान हर आदमी निराश हो उठा था। वो लोग भी जिन्होंने संघर्ष में अभूतपूर्व योगदान दिया था। चिन्यालीसौड़ की एक सभा में मैंने उत्तराखंड राज्य के ऊपर लोगों को एक संदेश इन पंक्तियों के माध्यम से दिया था "न जुल्मों से रुका हूं ना गोलियों से दबूंगा, मैं उत्तराखंड राज्य हूं समय के माथे पर लिखा हूं।"
सन 1999 में मुझे लखनऊ कुछ काम से जाना पड़ा। तब पर्वतीय क्षेत्र के सारे एम एल ए भी उस ट्रेन में जा रहे थे क्योंकि अगले दिन उत्तराखंड राज्य का प्रस्ताव विधान सभा में रखा जाना था। उस दिन पहली बार मैं भी विधानसभा की कार्यवाही देखने गया तथा देखने गया कैसे प्रस्ताव पास होता है। दुर्भाग्य से उस दिन सदन में कुछ ऐसा हंगामा हुआ की प्रस्ताव पुटप नहीं हो पाया जिससे सभी बहुत निराश हुए थे। लौटते हुए ट्रेन में विधायक निराश थे और उन्हें लग रहा था अब राज्य बन नहीं पाएगा। लौट कर आने पर डाकपत्थर में भी लोगों ने कहा अब राज्य नहीं बन पाएगा। पर मैं यही कहता रहा विचार कभी मरता नहीं समय, काल, परिस्थितियां, विरोधी शक्तियां कितना ही जोर लगा लें,दबा लें लेकिन जब कभी इस बीज को,विचार को ऊर्जा मिलेगी यह बीज प्रस्फुटित होगा और उत्तराखंड राज्य एक दिन जरूर बनेगा। तब यह कविता लिखी थी --
———– सपना पूरा होगा एक दिन ————
उत्तराखंड के दीवानों का, यह सपना पूरा होगा
देख लेना एक दिन,
प्रसव पीड़ा के वेदना से जन्म लेगा हमारा राज्य
देख लेना एक दिन।
यह गंगा – जमुना की धारा,बद्री केदार की धरा
क्या कहती है सुन,
बनेगा, उत्तराखंड राज्य कह रहा है,पंच प्रयाग
देख लेना एक दिन।
मौत बन कर होगा कोई खड़ा यदि हमारे सामने
कभी नहीं डरेंगे हम,
देते रहेंगे तब – तक हम कुर्बानियां जब – तक
न गिन सकोगे तुम।
गोलियों से छलनी कर दे या हमें अलकनंदा में
फिंकवा दे देखना,
हम स्वर्ग जाएंगे देवताओं के फूलों से सज हम
शहीद कहलाएंगे।
उत्तराखंड है,पूजा तपस्या उद्देश्य है हमारा, हम
हर कीमत पर पाएंगे,
नहीं मिलेगी तेरी आहुति तो अपनी आहुतियों से
यह यज्ञ संपन्न कराएंगे।
राम,कृष्ण,गौतम,गांधी के, इस देश में सभ्यता
संस्कृति के परिवेश में,
प्रेम से शांति से नहीं दोगे तो तुम दोगे कांति से
देख लेना एक दिन।
यह वह बीज था जो ऊर्जा पाते ही पीपल और बड़ के बीज की तरह सीमेंट की दीवार फाड़ के संघर्षों से निकला और 9 नवंबर को उत्तराखंड राज्य का जन्म हुआ।