वन कार्बन स्टॉक के मापन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

देहरादून। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् द्वारा छत्तीसगढ राज्य़ वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग वन विभाग के लिए वन कार्बन स्टॉक के मापन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् के द्वारा छत्तीसगढ राज्य वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारियो एवं कर्मचारियों की क्षमता विकास के लिए पांच दिवसीय वन कार्बन मापन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन का शुम्भारम देहरादून में किया गया। छत्तीसगढ में संचालित विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त पारितंत्र सेवाए सुधार परियोजना के बारे में चर्चा की गई। कंचन देवी उपमहानिदेशक (शिक्षा) एवं परियोजना निदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् ने बताया के जलवायु परिवर्तन एक ऐसा खतरा है जिसका मानव और प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ने दुनियाभर में मनुष्यों को चिंतित कर दिया है और उपयुक्त जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण और अनुकूलन के उपायों को विकसित करने के लिए वैज्ञानिक समुदायों का ध्यान आकर्षित किया है।
विभिन्न मानव जनित गतिविधियाँ जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना, औद्योगीकरण, शहरीकरण, वनों की कटाई और वन क्षरण मुख्य रूप से वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। राजेश शर्मा सहायक महानिदेशक भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद ्ने परिषद् द्वारा किये गए सतत भूमि प्रबंधन के क्रियाकलापों पर चर्चा की। डॉ. आर. एस रावत वैज्ञानिक व परियोजना प्रबंधक पारितंत्र सेवाए सुधार परियोजना के तहत जलवायु परिवर्तन में वन कार्बन मापन की भूमिका के महत्व को बताया। कार्यक्रम में श्री वी आर एस रावत जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ ने बताया के जलवायु परिवर्तन को रोकने में जंगलो की अहम् भूमिका है। जंगल कार्बन सोखकर मनुष्य को पारितंत्र सेवाएं प्रदान करते है। भारत ने पेरिस समझौता के तहत 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन सिंक को अतिरिक्त वनों एवं पेड़ो के माध्यम से तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वनों की कटाई और वन क्षरण कार्बनडाइऑक्साइड के रूप में संग्रहित कार्बन को छोड़ते हैं। श्री राजेश कुमार वन विशेषज्ञ ने देश में मौजूद वन कार्बन को मापने के तरीको पर विस्तृत जानकारी साझा की। डॉ. सुरेश कुमार मृदा विशेषज्ञ ने वन कार्बन मापन के लिए सुदूर संवेदन प्रणाली का उपयोग के बारे में बताया। डॉ. मोहम्मद शाहिद ने बताया कि वन कार्बन पांच पूल में रहती है जैसे की पेड, किशोरेपेड़, झाडिया, पोधे, करकट, मृत काष्ट एवं मृदा। प्रशिक्षण कार्यक्रम में जंगल में सैंपल प्लाट डालना, मिटटी एवं पोधे के नमूने लेना, मृत काष्ठ नापना, एवं पेड़ की गोलाई नापना बताया गया है। प्रशिक्षण का उद्देश्य वन विभाग के कर्मचारियों को वन कार्बन मापन मापने के लिए मास्टर ट्रेनर तैयार करना है। यह मास्टर ट्रेनर वन विभाग के लिए बहुत वन कार्बन मापने के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। जंगल जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बहुत उपयोगी जो की कार्बन डाइ ऑक्साइड को सोखते है और पर्यावरण को हानिकारक गैसों से मानव को बचाते है। राजेश शर्मा, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि वन कार्बन मापन एक महत्वपूर्ण विषय है जिससे की जंगल में मोजूद वन कार्बन के बारे में जानकारी होती हैै। कार्यक्रम में सुभाष गोदियाल, वित्तीय परामर्शदाता (ई0एस0आई0पी0) आदि उपास्थित रहे।

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