प्रेमसुख दरबार परिसर में मनाया गया पर्युषण पर्व

देहरादून। गुरु प्रेमसुखधाम में अंतगढ़ सूत्र की वाचना लोकमान्यसन्त अनुपम मुनि जी मव के द्वारा किया गया। दोपहर बाद 3 बजे से 4 बजे तक महामन्त्र नवकार का सामूहिक जाप किया गया। जैन परंपरा में परवा धीराज पर्व पर्युषण का विशेष रूप से महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह जैन धर्म का पर्वों का पर्व महापर्व है इसे पर्युषण, पजुषन, प्रशमन आदि अनेक नाम हैं दिगंबर जैन परम्परा में इसे अष्ठानिका भी कहते हैं बाकी जैन परम्परा में स्थानकवासी ,तेरापंथ,मूर्तिपूजक जैन परम्परा में पर्वो का पर्व महा पर्व पर्युषण से जाना जाता हैं इसे आत्मिक पर्व कहते है। वे दिन आठ दिनों के होते हैं। इन दिनों जैन समाज के सन्त साध्वी, श्रावक,श्राविका ,परिचित भक्त श्रद्धा, आस्था से भरकर श्रीमत अन्तकृत दशांग सूत्र आठवे अंग सूत्र के रूप में पंच महाव्रत के धारी,समिति गुप्ति के पुजारी,सन्त साधु ,यति सती सदगुरुदेव के मुखारविंद से व्रत उपवास, आत्म ,चिंतन आदि सामयिक साधना के साथ कथा श्रमण करने में अपना शोभाग्य मानते हैं।
 इन 8 दिनों में जैन लोग प्रतिदिन कथा सुनते हैं णमोकार महामंत्र का जाप करते हैं व्रत उपवास करते हैं प्रतिदिन दान पुन करते हैं सामायिक संभल माला जाप आदि अनुष्ठान करते हैं कई लोग तो 8 दिन महीने साल भर का उपवास करते हैं कई लोग ध्यान आतम चिंतन आत्म दामन में लगे रहते हैं कई लोग 8 दिन जनसभा में ही रह कर के आत्म चिंतन गुरु दर्शन शास्त्र सरवन धर्म कथाएं प्रतिदिन सुनते हैं जैसे हिंदुओं का पर्व शिवरात्रि होता है जन्माष्टमी होता है और नवरात्रि पर्व होते हैं इसी प्रकार से जैन परंपरा का पर्व पर्यूषण आध्यात्मिक आत्मिक पर्व है क्योंकि सभी पर्वों में कुछ ना कुछ खाया पिया जाता है घुमा फिरा जाता है आरंभ समारंभ होते हैं नाचने गाने सभी चलते हैं लेकिन यह पर्व आध्यात्मिक पर्व हैं इसीलिए किसी आत्मिक पर्व कहा जाता है इस पर्व को नवकारसी पोरसी परपोषी एक आसना।  आयं विल और उपवास किया जाता है।
 इसीलिए इस पर्व को आध्यात्मिक और आत्मिक पर्व कहते हैं हमारे भारतवर्ष में लौकिक पर्व भी हैं जैसे रक्षाबंधन दशहरा दीपावली और होली आदि पर्वों को अलौकिक पर्व कहते हैं लोक व्यवहार में चलने वाले पर्वों को अलौकिक पर्व कहा जाता है और आध्यात्मिक पर्व को लोकोत्तर पर्व कहते हैं
 गुरु प्रेमसुख धाम 16 नेशनल रोड लक्ष्मण चैक स्थानकवासी परंपरा के जैन संत जैन मुनि जैन साधु श्री अनुपम मुनि जी महाराज ने परवा धीराज पर्व पर्युषण का स्वागत करते हुए श्रीमद् भागवत संस्कृत अक्षांश सूत्र की वासनी करते हुए कहा यह पर्व आध्यात्मिक पर्व है इसीलिए आतंक चिंतन करते हुए अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए जिनवाणी सुनने के लिए तैयार रहें। उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद्भागवत अंतर्दशांग सूत्र में 99 आत्माओं का भगवान महावीर ने जिक्र किया हुआ है की इन आत्माओं ने जिन साधना करके जैन भागवती दीक्षा लेकर जैन साधना करके जैन आराधना करके जैन तपस्या करके मुक्ति को प्राप्त किया इसलिए इस सूत्र को अंकित दशांग सूत्र कहते हैं मुनि श्री ने आगे बताया कि इन दिनों दोपहर में कल्पसूत्र की आवाज नहीं होती है जिसमें भगवान महावीर 24 तीर्थंकर की जीवन गाथा स्तबिरों की स्त्रावी रावली और 10 प्रकार के कल्पर की मर्यादाओं की चर्चा विशेष रूप से की जाती है।

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