गुलदार के आतंक और दहशत के साये में ‘पहाड़‘

देव कृष्ण थपलियाल। देहरादून। ये तो सर्वविदित ही है, कि पहाड में खेती-किसानी की संभावनाऐं बहुत कम है, किन्तु जो लोग थोडी-बहुत खेती-कृषि तरफ मेहनत-मजदूरी कर उसे जीवित रखे हुऐ भी थे, वे भी उससे पूरी तरह पल्ला झाडते हुऐ नजर आ रहे हैं, राज्य के कई हिस्सों में कुछ अच्छी पैदावार होती भी थीं, लोंग उससे अच्छी आमदनीं भी अर्जित कर लेते थे, किन्तु अब जंगली हिंसक जानवरों व पालतू आवारा पशूओं से कृषि को क्षति पहुॅचना अब आम बात हो गईं है, जिसकी भरपाई होंना, मुश्किल ही नहीं असंभव भी है, दिन-ब-दिन बंदरों का आतंक, सुअरों तथा हाथी-भालू से खडी फसलों को जो नुकसान पहॅुचा कर चले जाना मेहनतकश किसान के लिए किसी सदमें से कम नहीं है ? उधर सरकार और नीति-निर्धारकों का मौंन भी कम आश्चयजनक नही है ? पहाड सारी आर्थिकी चौपट होंनें के बाद भी सरकार, उच्चाधिकारी और जनप्रतिनिधियों का शान्त बैठे रहना अखरता है ? बात अब की करें तो अब फसलों को नष्ट करनें बाद समस्या कुछ आगे बढनें लगी है, जो और भयावह व विचलित करनें वाली है ?
जिस समृद्व वन संपदा और प्रचूर प्राकृतिक शौंदर्य के लिए पहाड विख्यात है, वह आजकल खासे चर्चा में हैं, यह चर्चा किसी बडी उपलब्धि की न होकर ’दशहत और भय’ की है, जहॉ लोग रात-शाम की बात छोड दीजिए, दिन में भी अपनें घरों से निकलनें के लिए कतरा रहें हैं ? जब हिंसक जंगली जानवर खासकर गुलदार गॉव-गलियों से लेकर शहर-बाजारों में सरेआम घूम-घूम कर लोंगों को निशाना बना रहा हैं । पिछले दिनों ग्राम गोदी बडी विकासखण्ड दुगड्डा की गृहणी रीना देवी जब अपनें बच्चे को पास के स्कूल राजकीय इंटर कालेज दुगड्डा, कोटद्वार में पढनें के लिए छोड कर वापस आ रही थीं तो उसे नहीं मालूम था कि वो उसका अपनें बच्चे के साथ आखिरी मिलन है ? वापस आते वक्त गुलदार नें रीना देवी पर घात लगाकर हमला कर उसे अपना निवाला बना दिया, जिससे उसकी मौके पर मौत हो गई । दुर्गा मंदिर के निकट बाइक सवार एक सैंनिक पर झपटा मारा था, अगले ही दिन रात को केद्रीय विद्यालय और कालागढी बाजार के लिए गुजरनें वाली सडक पर एक और बाइक सवार कर्मचारी पर गुलदार नें हमला कर काफी दूर तक उसका का पीछा किया, घर नजदीक आनें पर शोर मचानें पर वह पास के जंगल में भाग खडा हुआ ? लक्ष्मण झूला-कॉडी-धूमाकोट स्टेट हाइवे पर दूगड्डा और सैंधीखाल के बीच बाघ नें बाइक सवार शिक्षक पर हमला कर दिया, हमले से बचनें के प्रयास में शिक्षक की बाइक पलट गईं जिससे वे बूरी तरह से घायल हो गये ? श्रीनगर गढवाल के अत्यन्त भीड-भाड वाले शहर के एक घर में गुलदार का शावक घूस गया, गनीगत कि उस समय घर में कोई नहीं था, कोई बडी अनहोंनी टल गई , मकान के पिछले हिस्से गैलरी में सूस्ता रहे शावक को वन विभाग नें बडी मशक्कत बाद उसे ट्रेक्यूलाइज कर पिंजरे में कैद लिया । श्रीनगर क्षेत्र में जुलाई महिनें में दो बार गुलदार को पिंजरे में कैद करनें के बावजूद उसका खौप बरकरार है, कारण गुलदार दिन में भी नगर क्षेत्र के आसपास देखा जा रहा है, नगर क्षेत्र के ऐंजेंसी मोहल्ला, तोल्यू श्रीकोट और घस्या महादेव सहित अन्य क्षेत्रों में कई दिनों से गुलदार की उपस्थिति बनीं हुई है। हे0न0ब0गढवाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के चौरास गर्ल्स हॉस्टल में सुबह गुलदार के घुसनें की सूचना से छात्राओं सहम गईं, वि0वि0 प्रशासन को दिनभर परेशान रहा, सुबह ही कुछ छात्राओं नें गुलदार को हॉस्टल के आसपास घुमते देखा ? देवप्रयाग तहसील वनगढ पट्टी के देवका गॉव में गुलदार की दशहत बनीं हुई है, दिन में बस्ती व गॉव में खुंखार गुलदार देखा जा रहा है, जिस कारण वन विभाग की आर0आर0टी रैपिड रिस्पांस टीम व क्यू0आर0टी क्वीक रिस्पांस टीम गश्त लगा रही है। गुलदार के खौफ के कारण यहॉ फॉक्स लाइटें लगाईं गईं हैं।
जनपद चमोली के कोब गॉव में गुलदार नें तीन बंधे हुए पशुओं का शिकार कर दिया जिससे गरीब ग्रामीण मुआवजे की मांग कर रहे हैं। टिहरी जिले के खांड गॉव में गरीब सुरेन्द्र दास की तीन बंधी हुई बकरियों को गुलदार नें अपना निवाला बनाया, चंबा ब्लाक के धार-अक्रिया पट्टी की ग्राम पंचायत खांड निवासी सुरेन्द्र दास जब सुबह अपनीं गौशाला पहुॅचे तो वहॉ तीन बकरियॉ मरी पडी थीं और गुलदार कौंनें में बैठा था, वे किसी तरह बाहर निकले और गॉव वालों को सूचित किया। वीरोंखाल विकासखण्ड के ग्राम ग्वील तल्ला गॉव के भीतर घूसे गुलदार के हमले नें दो बुजूर्ग महिलाओं सहित तीन ग्रामीणों को घायल कर दिया, गॉव के निवासी केशर सिंह के आवास पर रात को गुलदार घूस गया शुक्र है, कि केशर सिंह का परिवार घर पर नहीं रहता है। चौबट्टाखाल तहसील के पाटीसैंण सकिंण्डा क्षेत्र में लोग अपने बच्चों को स्कूल भी नही भेज पा रहे हैं, पिछले 22 जुलाई को अपनी बकरियों चुगानें गया सुनील रावत गुलदार का निवाला बना, तो चार-पॉच लोंगों पर वह झपट्टा भी मार चूका है। 28 जुलाई की रात को ग्राम बडेथ विकासखण्ड थैलीसैण पौडी गढवाल का पॉच साल का बच्चा जब अपनीं मॉ के पीछे पास बनीं गोशाला में जा रहा था, तो महज चार कदम पीछे से गुलदार नें उसे उठाकर उस घर चिराग को हमेशा के लिए बुझा दिया, तीन बहिनों के पीछे उनका लाडले भाई के अचानक मौत से परिवार सदमें से नहीं उभर पा रहा है ? कहीं दूर जाकर मासूम बच्चे का क्षत-विक्षत शव मिला, परिवार व गॉव के लोगों का रो-रो कर बुरा हाल है ? इस क्षेत्र में गुलदार की यह दूसरी बडी वारदात हैं, इससे पहले पाबौं विकासखण्ड के ग्राम सपलौडी हुईं घास लेंनें गई महिला को उसनें अपना निवाला बनाया था ? वन विभाग की टीम नें जब मौके पर गुलदार को पकडनें गईं तो आक्रोशित महिलाओं नें पिंजरे में बंद गुलदार को आग लगा दी ?
असल में पहाड के जन्म के साथ-साथ हिंसक जंगली जानवरों का भय भी जन्मा है, लोग पहले भी इन जंगली जानवरों के शिकार हुऐ हैं, भले संख्या बहुत कम रही हो, परन्तु उसके स्पष्ट कारण भी थे । ये घटनाऐं अक्सर जंगलों में घटा करती थीं जब महिलाऐं घास-पत्ती-चारें के लिए उनके आवास तक पहॅुच जातीं थीं, किन्तु आज ये हिंसक जानवर आवासीय बस्तियों शहर-कस्बों-गॉवों ंमें घुसकर शाम ढलनें से पहले ही लोगों को अपना निशाना बना रहें हैं, जो एक बडी चिंता का विषय है, ? अगर इसी तरह से जंगली जानवर लोगों को अपना निवाला बनाते रहे तो पहाड में रहना मुश्किल हो जायेगा ? वैसे भी रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य की असुविधा के चलते लोग लगातार पलायन कर रहे हैं, पहाड खाली हो रहे हैं, अब गुलदार और दूसरे हिंसक जानवरों के कारण लोगो को राज्य से पलायन करनें को मजबूर होंना पडेगा ?
विशेषज्ञों की मानें तो पहाडी क्षेत्रों के विकास नें प्रकृति और पर्यावरण को बूरी तरह से रौंदा है, शुरू से ही सरकारों और उनके चहेते ठेकेदारों की नजरें यहॉ की प्रफ्फुलित प्राकृतिक संपदा को भुनानें में लगी रही, आज विकास के नाम पर यहॉ की सदानीरा नदियों, जंगलों और वन-बुग्यालों में तमाम प्रकार के निर्माण कार्य किये जा रहे हैं, जिससे उन स्थानों में रहनें वाले जंगली जानवरों की रोजमर्रा की जींदगी प्रभावित हो रही है, पर्यटन और तीर्थाटन के लिए इन सूनसान जगहों के इस्तेमाल से यहॉ के पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हो रहा है, मसलन जंगली जानवरों के पानी पीनें के पारम्परिक स्थल, नदि, झील, और पोखरों में पर्यटकों की आवाजाही देर रात तक बनीं रहती है, तमाम किस्म की लाइटों से जगमगानें से प्रभावित जानवरों का मानव वस्तियों तरफ भागना व ज्यादा हिंसक होकर उन पर हमला करना स्वाभाविक है। जगह-जगह सडक मार्ग बनानें के लिए जंगलो को तो काटा ही जा रहा है, साथ ही जंगलों के बीच से गुजरती गाडी-मोटरों के भारी शोर-शराबे से भी जानवर प्रभावित होते हैं ? पहाडों को धनी लोंगों की ऐशगाह समझनें व बनानें की प्रवृत्ति नें यहॉ के पर्यावरण और उसको संरक्षित करनें वाले जानवरों को बहुत नुकसान पहुॅचाया है ?
चार धाम यात्रा को सुगम बनानें के लिए प्राकृतिक संपदा का अनेक प्रकार से दूरूपयोग किया गया ? मसलन जिन निर्जन स्थानों पर मनुष्यों की पहुॅच नहीं थी वहॉ भी भारी-भरकम हैलीकॉफ्टरों के शोर नें वहॉ के शर्मीले जानवरों को त्राहिमाम मचानें को बाध्य किया ? तीर्थयात्रियों के लिए बनाये गये अत्याधुनिक व मॅहगें होटल-रिर्सोटों व उसमें भारी भीड, चहल-पहल व शोर-शाराबे के कारण वहॉ प्राकृतिक निवासियों का विचलित होंना स्वाभाविक है ?
प्रति वर्ष उत्तराखण्ड के जंगलों में लगनें वाली आग से कई-कई हैक्टैयर जंगल जलकर राख हो जाता हैं, जिससे वनों पर आश्रित रहनें जीवों का जीवन कष्टमय व अशान्त होंना स्वाभाविक है ? प्राकृतिक वन संपदा के नष्ट होंनें से जीवन की मूलभूत जरूरतें भी प्रभावित होंनें लग जाती है, जैस प्राकृतिक जलस्रोतों का सूखना/समाप्त होंना इन प्राणियों के जीवन को संकट में डाल देता है, तब ये पानी पीनें के लिए मानव बस्तियों की तरफ भागते हैं, जहॉ इनसे छेडछाड होंनें से ये और ज्यादा अक्रामक व खुंखार हो जाते जा रहे हैं ? जिससे ऐसी घटनाओं का ग्राफ निरंतर बढ रहा है ?
मानव जीवन के साथ-साथ वन्य जीवों की सुरक्षा और संरक्षण भी जरूरी है, इसके लिए जरूरी है, की दोंनों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो ? बढते शहरीकरण व सिकुडते वनों नें दोंनों के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह खडा कर दिया है ? वन्य जीवों खासकर बाघ जिसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है, भी लगातार बेमौत मारे जा रहे हैं । देश में बाघों के प्रजनन के लिए कई स्तरों पर प्रयास हुऐ हैं, कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व के अलावा देश में 53 टाइगर रिर्जव हैं, बाघों के संरखण के लिए प्रत्येक साल 29 जुलाई को ’अर्न्तराष्ट्रीय बाघ दिवस’ मनाया जाता है, बावजूद पर्यावरण मंत्री अश्वनी चौबे के अनुसार 3 साल में 329 बाघों की जानें चलीं गईं ? जबकि इन तीन वर्षों में बाघ नें 125 नागरिकों का शिकार किया, वन्य जीवन के महत्व को समझते हुए जरूरी है की सरकार, पर्यावरणविद, व आम बुद्विजीवियों को किसी ठोस नीति पर यथाशीघ्र विचार करना चाहिए।

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