-ओम प्रकाश उनियाल–
जिस प्रकार से हर मौसम में प्रकृति अपना विकराल रूप धारण कर सबकुछ नष्ट करने पर तुली हुई है ऐसी उथल-पुथल करने वाली परिस्थितियां यदि कुछ सालों तक लगातार बनी रहेंगी तो वह दिन दूर नहीं जब इस धरती पर कुछ नहीं बचेगा। हर तरफ प्रलय ही प्रलय का भयानक वातावरण होगा। आखिर कौन जिम्मेदार है ऐसी परिस्थितियां पैदा करने के लिए? इस सवाल पर सब चुप्पी साधे रहते हैं।
ज्यों-ज्यों धरती पर आबादी का बोझ बढ़ रहा है त्यों-त्यों प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी प्रचुर मात्रा में किया जा रहा है। इससे पृथ्वी का पर्यावरणीय-संतुलन बिगड़ रहा है। जलवायु व भूगर्भीय परिवर्तन हो रहा है। जो कि समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। प्राकृतिक आपदाएं तब भी आती थी जब पृथ्वी पर सब कुछ सुरक्षित था लेकिन आपदाएं कम आती थी और नुकसान भी कम ही होता था। पिछले कुछ सालों से तो प्रकृति का स्वभाव बिल्कुल ही बदलता जा रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से जो भयंकर तबाही अब हर साल होती है उससे रुह कांप उठती है। पहाड़ हो या समुद्र अपनी सीमाएं लांघ रहे हैं। प्रकृति इंसान को बार-बार सचेत भी कर रही है लेकिन स्वार्थी इंसान बेफिक्र होकर अनजान बना रहता है। वह भूलता जा रहा है कि पृथ्वी जो उसकी या अन्य प्राणियों का जीवन आधार है उसके साथ हम ऐसा खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं जिससे विनाश ही विनाश हो। हरदम, हरसमय, हरतरफ त्राहि-त्राहि का वातावरण बना रहे। इंसान विज्ञान और विकास को ज्यादा महत्व देने लगा है, ताकि उसकी जिंदगी विलासितापूर्ण बन सके। वह भौतिक सुख-सुविधाओं का भरपूर आनंद ले सके। विज्ञान और विकास की सोच अपनी जगह ठीक है। मगर एक नजर प्रकृति के साथ अधिक की जाने वाली छेड़छाड़ की तरफ भी डालनी चाहिए। प्रकृति रुष्ट होगी तो पृथ्वी पर अपना प्रभाव दिखाएगी और पृथ्वी पर जब उथल-पुथल मचेगी तो उससे सभी प्रभावित होंगे। तो सोचिए जब जीवन ही खत्म हो जाएगा तो फिर ऐसी मारामारी करने का क्या फायदा होगा? आओ, धरती सुरक्षित, जीवन सुरक्षित रखने का संकल्प लें।