देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। यूनाईटेड नेशन्स की पहल पर विश्व स्तर पर प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के अन्तर्राष्ट्रªीय पक्षी वैज्ञानिक व पर्यावरणविद् डा0 दिनेश भट्ट ने बताया की उनकी शोध टीम हिमालय की पक्षी प्रजातियों एवं दूर देशों से आने वाली पक्षी प्रजातियों के बारे में इकोलोजिकल स्ट्डी पिछले दो दशकों से करती आ रही है। विलुप्त प्राय गिद्धों की प्रजातियों पर डा0 रोमेश, संकटग्रस्त गौरेया पर डा0 विकास सैनी, मधुर संगीत गाने वाली इंडियन चैट, मैगपाइ रोबिन व पाइड बुशचैट पर डा0 विनय सेठी, डा0 अमर सिंह व डा0 अमित त्यागी घटती जनसंख्या वाली बर्ड रफस वैलिड वुडपेकर पर पारुल भट्नागर द्वारा अत्यन्त रूचिकर व महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गई है।
ज्ञात हुआ है कि इन प्रजातियों के सफल प्रजनन में मानवीय दखल मुख्यकारक है जैसे बाग बगीचों व खेतों पर कालोनियों का निर्माण, जंगलो में अतिक्रमण व वनाग्नि इत्यादि जिनसें इनकी ‘ब्रिडिंग सक्सेस’ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लिहाजा इनके अण्डे व चूजें कम संख्या में ही जीवित रह पाते है। प्रो0 भट्ट ने बताया की प्रकृति के साथ समरसता में जीवन जीना ही पर्यावरण दिवस को सही रुप से समझना है। शोध टीम ने बताया की उत्तराखण्ड में अतिसंकटग्रस्त पक्षियों में हिमालय क्वेल, व्हाइट वैक्ड वल्चर, स्लेन्डर विल्ड वल्चर, हिमालयन वल्चर, बियर्स पोचार्ड इत्यादि है। कम संकटग्रस्त पक्षियों में चीर फैजेन्ट, वेस्टर्न ट्रªेगोपैन, मारबल्ड डक, लेसर एडजुटेन्ट, इम्पीरियल ईगल, स्लेटी वुडपेकर, ग्रे-क्राउन्ड प्रीनिया, व्हाइट थ्रोटेड बुशचैट, डार्टर, लेसर फिश ईंगल, रिवर लैपविंग, रिवर टर्न, ग्रेट हार्नबिल, रफस वैलिड वुडपेकर, पेन्टेड स्टार्क, स्टीर्पी इंगल इत्यादि है। भारतवर्ष में विश्वविद्यालय स्तर पर केवल प्रो0 दिनेश भट्ट की लैब द्वारा ही प्रो0 विनय सेठी एवं अन्य शोधार्थियों (डा0 विकास सैनी, पारुल, शिप्रा इत्यादि) के साथ मिलकर गौरेंया संरक्षण पर महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है व लगभग 15000 हजार नेस्ट बॉक्स वितरित कर गौरेंया की संख्या में उत्तराखण्ड में लगभग 10 प्रतिशत का इजाफा किया गया है।सूच्य है कि प्रो0 दिनेश भट्ट ‘विश्व पक्षी कांग्रेस’ व ‘वर्किग ग्रुप ऑफ बर्डस ऑफ साउथ एशिया’ में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहें है। पक्षी सर्वे, संरक्षण, प्रजनन व संवाद के क्षेत्र में इनकी लैब अग्रणी भूमिका मे है। अभी हाल ही में शोध छात्र आशुतोष सिंह द्वारा फलाई केचर की एक नई प्रजाती का पता हिमालय क्षेत्र में लगाया गया है जिसका प्रकाशन इंग्लैड की आईबिश नामक पत्रिका में हुआ है। सरकारी प्रयासों के अतिरिक्त उत्तराखण्ड वासियांें से अपेशा की जाती है की वे वन सम्पदा व पशु पक्षियों के संरक्षण में जनजागरुकता के माध्यम से अपनी भूमिका निभायें।——————————————
492 total views, 2 views today