देहरादून। देहरादून के शिक्षित छात्र समूह मेकिंग अ डिफरेंस बाय बीइंग द डिफरेंस (मैड ) ने रविवार को सुबह 6.30 बजे से 10.30 बजे तक टपकेश्वर महादेव मंदिर में चलो टपकेश्वर सफाई अभियान चलाया। इस अभियान में सैकड़ों नागरिकों व विभिन्न संगठनों ने भाग लिया। देहरादून सिविल सोसाइटी में से बीन देयर दून दैट, पराशक्ति, वेस्ट वॉरियर्स, पंख, डीबीएस-एनएसएस, मिशन क्लीन दून, द ह्यूमैनिटेरियन क्लब, आर्यन ग्रुप, संयुक्त नागरिक संगठन, मिलियन डॉटर फाउंडेशन, आगाज, प्राउड पहाड़ी, एसएफआई, आरंभ, आसरा ट्रस्ट, तारा फाउंडेशन, ग्राफिक एरा (मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग) जैसी संस्थाओं के सहयोग से यह सफाई अभियान चलाया गया। इस आयोजन में महापौर सुनील उनियाल गामा ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की।
मैड, 2011 में अपनी स्थापना के बाद से ही, दून घाटी की विलुप्त होती धाराओं के कायाकल्प के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चला रहा है। इस सफाई अभियान का उद्देश्य शहर का ध्यान तमसा नदी की दयनीय स्थिति की ओर आकर्षित करना है, जो देहरादून में शेष स्वच्छ पानी की एकमात्र धारा है। इस क्षेत्र में 300 से अधिक स्वयंसेवकों जब मंदिर परिसर की सफाई करी तो पाया की प्लास्टिक, दीये , कपड़े, कांच के टुकड़े, भगवान की मूर्तियां तथा जलधारा को दूषित करने वाले पदार्थोंकी मात्रा नदी में अधिक है। तमासा नदी की दुर्दशा पर संस्था के सदस्यों ने कहा कि ष्हमें धर्म का पालन करने के पर्यावरण अनुकूल तरीकों पर खुद को शिक्षित करने की जरूरत है, जबकि एक अन्य स्वयंसेवक ने कहा की, स्वयं भगवान शिव भी गंदे परिसर में रहना पसंद नहीं करेंगे। स्थानीय निवासियों ने मंदिर परिसर और शासी निकायों से स्थायी प्रभाव बनाने के लिए नियामक कार्रवाई करने की अपेक्षा व्यक्त की। इसी बीच महापौर ने युवाओं को नदियों के कायाकल्प की दिशा में गतिविधियों को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
इस मेगा सफाई अभियान का उद्देश्य स्थानीय निवासियों और तीर्थयात्रियों की सोच में परिवर्तन लाना भी रहा। सफाई अभियान के साथ साथ डोर-टू-डोर जागरूकता अभियान भी चलाया गया, जिसका उद्देश्य अपशिष्ट प्रबंधन पर इलाकों के परिप्रेक्ष्य को समझना था, साथ ही तीर्थयात्रियों के साथ अनुवाद स्थापित करना रहा। सभी संगठनों ने 400 बोरी से अधिक कचरे के साथ सफाई अभियान समाप्त किया, तथा कचरे के उचित निस्तारण के लिए मानव श्रृंखला बनाकर नगर निगम की गाड़ियों तक कचरा पहुंचाया गया।
इस अभियान के माध्यम से सरकार और मंदिर अधिकारियों से प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों को सक्रिय रूप से शुरू करने का आग्रह भी किया गया। हालांकि विभिन्न माध्यमों से लोगों को पारिस्थितिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक मूल्यों के बारे में जागरूक किया जा रहा है, लेकिन एक स्थायी प्रभाव केवल सरकारी पहलों से ही लाया जा सकता है। सरकार को हितधारकों – उपासकों और पर्यावरण हित को ध्यान में रखते हुए आध्यात्मिक अपशिष्ट प्रबंधन के विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है। इसमें पूजा के कचरे को डंप करने के लिए विशेष स्थान बनाना, खतरनाक रसायनों वाली पूजा सामग्री के उत्पादन और बिक्री पर नियामक नियंत्रण सुनिश्चित करना शामिल किया जा सकता है, फूलों और पत्तियों जैसे जैविक कचरे का उपयोग बगीचे के लिए खाद बनाने के लिए किया जा सकता है या अगरबत्ती बनाने के लिए पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है। निःसंदेह, सरकार ने वर्षों से इस समस्या से निपटने के प्रयास किए हैं लेकिन अभी भी उचित प्रयास करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर मैड संस्था के संस्थापक अभिजय नेगी, आर्ची, अस्मिता, शार्दुल, शिवम, दरिश, चेतना, कार्तिकेय, सौरभ, स्वाति, देवयश, शगुन, आर्यमन, वंदना, अतुल, अर्नव सहित अन्य कोर टीम के सदस्य मौजूद रहे।
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