नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन की जंग अब एक महायुद्ध में तब्दील हो चुका है। शनिवार को रूसी सेना ने यूक्रेन के खिलाफ महाविनाशक हाइपरसोनिक मिसाइलों से हमला किया। रूसी रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को खुद यह दावा किया कि उन्होंने हाइपरसोनिक एरोबैलिस्टिक मिसाइलों के साथ किंजल एविएशन मिसाइल सिस्टम से यूक्रेन के मिसाइलों और विमानों के गोला बारूद वाले एक बड़े अंडरग्राउंड गोदाम को नष्ट कर दिया है। रूस यूक्रेन जंग में ऐसा पहली बार हुआ है, जब हाइपरसोनिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया है। हाल में महाशक्तियों के बीच हाइपरसोनिक मिसाइल हासिल करने की होड़ की खबरे सुर्खियों में थी। खासकर अमेरिका और चीन के बीच यह मिसाइल चर्चा में रही है। आखिर क्या है हाइपरसोनिक मिसाइल? क्यों खतरनाक है ये मिसाइल? कैसे मचाती हैं ये तबाही? दुनिया में किन देशों के पास है यह खतरनाक हथियार? क्या भारत ने यह क्षमता हासिल कर ली है?
हाइपरसोनिक मिसाइल की गणना महाविनाशक हथियार के रूप में की जाती है। हाइपरसोनिक से आशय उन मिसाइलों से है जो आवाज की गति से पांच गुना तेज गति से उड़ते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं। हालांकि, हाइपरसोनिक हथियारों को उनका विशेष दर्जा उनकी स्पीड से नहीं मिलता है। हाइपरसोनिक मिसाइल पिछले तीन दशकों से सबसे आधुनिक मिसाइल तकनीक है। इसके तहत पहले एक व्हीकल मिसाइल को अंतरिक्ष में लेकर जाता है। इसके बाद मिसाइल इतनी तेजी से लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं कि एंटी मिसाइल सिस्टम इन्हें ट्रैक करके नष्ट नहीं कर पाते।
बैलिस्टिक मिसाइल भी हाइपरसोनिक गति से चलती है, लेकिन जब उसे एक जगह से लांच किया जाता है तो पता चल जाता है कि वह कहां गिरेगी। ऐसे में इन मिसाइलों को ट्रैक करना आसान होता है। इसके अलावा बैलिस्टिक मिसाइल को लांचिंग के बाद इन मिसाइलों की दिशा में बदलाव नहीं किया जा सकता है। हाइपरसोनिक मिसाइल का दिशा परिवर्तन संभव है। यह मिसाइल दुश्मन देश की रणनीति के हिसाब से अपनी दिशा परिवर्तन करने में सक्षम है। यह मिसाइल वायुमंडल में हाइपरसोनिक स्पीड से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं। हाइपरसोनिक एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम की पकड़ में नहीं आती हैं। इसलिए यह ज्यादा खतरनाक हो जाती हैं। यह मिसाइल राडार की पकड़ में भी नहीं आती हैं। इससे इन मिसाइलों के लक्ष्य को लेकर एक भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
भारत भी हाइपरसोनिक हथियार के तकनीक पर काम कर रहा है। भारत इसका परीक्षण भी कर चुका है। डीआरडीओ ने मानवरहित स्क्रैमजेट का हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट का सफल परीक्षण वर्ष 2020 में किया था। इसे हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक वाहन कहते हैं। भारत के हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमान्स्ट्रेटर व्हीकल का परीक्षण 20 सेकेंड से भी कम समय में किया गया था। इसकी गति 7500 किलोमीटर प्रति घंटा की थी, लेकिन भविष्य में इसे बढ़ाया या घटाया भी जा सकता है। चूंकि चीन इस तकनीक से लैस है, इसलिए भारत अपनी सुरक्षा और सामरिक रणनीति के तहत इसका विकास कर रहा है।
रक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ अभिजीत सिंह का कहना है कि क्यूबा संकट के बाद दुनिया को यह समझ में आ गया कि परमाणु हथियार अगर एक देश चलाएगा तो दूसरा देश भी चला सकता है। इसकी वजह से दोनों की तबाही हो सकती है। इसकी वजह से कई संधियां हुईं और परमाणु युद्ध टाले जा सके। वर्ष 2001 में अमेरिका ने एबीएम ट्रीटी से खुद को बाहर करके एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम बनाने शुरू किए। अमेरिका का तर्क था कि वह उत्तर कोरिया जैसे देशों से अपनी रक्षा करने के लिए डिफेंस सिस्टम बना रहा है। इसके बाद चीन और रूस ने भी हाइपरसोनिक मिसाइल पर काम शुरू किया। रूस और चीन ने यह कदम इसलिए उठाया कि अगर अमेरिका मिसाइल सिस्टम से अपनी रक्षा कर सकता है तो हमारी मिसाइल ऐसी होगी कि वह इंटरसेप्टर को चकमा देकर निशाने तक पहुंच जाएगी। युद्धग्रस्त एक मुल्क हाइपरसोनिक मिसाइल लांच करता है तो भ्रमपूर्ण स्थिति में परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हाइपरसोनिक मिसाइल को परमाणु बम से लैस मानकर अपनी ओर से परमाणु बम लांच कर सकता है। इससे दोनों मुल्कों की ओर से न चाहते हुए भी परमाणु युद्ध शुरू हो सकता है।
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